Bisrakh Ravan Mandir: मान्यता के अनुसार रावण का जन्म नोएडा के बिसरख गांव में हुआ था, यहां रावण का मंदिर भी है. पहली बार मंदिर परिसर में भगवान राम के साथ-साथ सीता जी और लक्ष्मण जी की मूर्तियां पूरे अनुष्ठान के साथ स्थापित की गईं.
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Ayodhya: अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हो गई है. इसके साथ ही नोएडा के पास स्थित उस मंदिर में भी पहली बार भगवान राम की मूर्ति की स्थापना की गई, जहां रावण की पूजा की जाती है. यह प्राचीन शिव मंदिर बिसरख गांव में स्थित है, जिसे स्थानीय लोग रावण का जन्मस्थान मानते हैं. इस मंदिर के मुख्य पुजारी महंत रामदास ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘आज पहली बार मंदिर परिसर में भगवान राम के साथ-साथ सीता जी और लक्ष्मण जी की मूर्तियां पूरे अनुष्ठान के साथ स्थापित की गईं.’’ इस मंदिर में 40 वर्ष से अधिक समय से सेवाएं दे रहे पुजारी ने कहा कि ये मूर्तियां राजस्थान से लाई गई हैं.
दशहरे पर होगी रावण की प्राण प्रतिष्ठा
हाल ही में खबर आई थी कि मंदिर में रावण की मूर्ति की भी प्राण प्रतिष्ठा होगी. जयपुर के मूर्तिकार दशानन की प्रतिमा बना रहे हैं. मंदिर में रावण की एक प्रतिमा पहले से है. हालांकि उसे सिर्फ दशहरे के दिन दर्शन के लिए बाहर लाया जाता है. नई प्रतिमा की स्थापना के बाद श्रद्धालु प्रतिदिन रावण के दर्शन कर सकेंगे. पीतल धातु से बनी यह प्रतिमा लगभग दो फीट की है. इसके दस मुख होंगे. आगामी दशहरे पर दशानन की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा होगी.
कहां है बिसरख गांव?
बिसरख गांव ग्रेटर नोएडा से करीब 15 किमी दूर बसा है. मान्यता है कि बिसरख रावण के पिता विश्रवा ऋषि का गांव हुआ करता था. उन्हीं के नाम पर इस जगह का नाम बिसरख पड़ा था. विश्व ऋषि यहां रोज पूजा करने के लिए आया करते थे. उनके बेटे रावण, कुंभकरण, सूर्पणखा और विभीषण का यहां जन्म हुआ था. इसके अलावा पूरे देश में बिसरख एक ऐसी जगह है, जहां अष्टभुजीय शिवलिंग स्थित है. यहां नवरात्रि के दौरान शिवलिंग पर बलि चढ़ती है. हिंडन नदी के मुहाने पर बने स्थित दुधेश्वर नाथ शिवलिंग को रावण ने ही स्थापित किया था. दावा है कि मंदिर में स्थापित शिवलिंग का कोई छोर नहीं है. मंदिर की जमीन पर अतिक्रमण को लेकर कई बार प्रयास हुए. शिवलिंग को निकालने के लिए खुदाई की गई, लेकिन इसका दूसरा छोर नहीं मिला. इससे इस मंदिर के प्रति श्रद्धा और बढ़ती चली गई.
नहीं मनाया जाता दशहरा
इस गांव में दशहरा नहीं मनाया जाता है और न ही रावण के पुतले को जलाया जाता है. यहां पर रामलीला का आयोजन भी नहीं किया जाता है. स्थानीय लोगों के मुताबिक, गांव के लोगों ने दो बार रामलीला का आयोजन किया था. रावण दहन भी किया था, लेकिन दोनों बार रामलीला के समय किसी न किसी की मौत हो गई. तब से अब तक यहां कभी रावण का दहन नहीं किया जाता.