Mahakumbh 2025 Basant Panchami Snan: महांकुभ में मौनी अमावस्या स्नान के बाद कल बसंत पंचमी पर तीसरा अमृत स्नान होगा. इस दौरान आप प्रयागराज के इन खास मंदिरों के दर्शन कर पुण्य की प्राप्ति कर सकते हैं.
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Mahakumbh 2025 Basant Panchami Snan: महाकुंभ 2025 का तीसरा और अंतिम अमृत स्नान कल तीन फरवरी बसंत पंचमी को है. बसंत पंचमी में स्नान को लेकर प्रयागराज महाकुंभ में तैयारियां पूरी कर ली हैं. अगर आप भी महाकुंभ में बसंत पंचमी पर स्नान करने जा रहे हैं तो यहां के 5 प्रसिद्ध मंदिरों का दर्शन करना न भूलें. ये मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण हैं.
बसंत पंचमी में संगम स्नान के बाद इन मंदिरों का करें दर्शन
महाकुंभ 2025 का आयोजन 13 जनवरी से ही हो रहा है, जो 26 फरवरी तक चलेगा. महांकुभ में मौनी अमावस्या स्नान के बाद कल बसंत पंचमी पर अमृत स्नान होगा. इस दौरान आप प्रयागराज के इन खास मंदिरों के दर्शन कर पुण्य की प्राप्ति कर सकते हैं. इन मंदिरों के दर्शन के बिना महाकुंभ की यात्रा अधूरी रह जाएगी. आइए जानते हैं इन मंदिरों के बारे में...
लेटे हनुमान जी मंदिर
लेटे हनुमान जी का मंदिर महाकुंभ में संगम क्षेत्र में ही स्थित है. मान्यता है कि हर साल मां गंगा पहले लेटे हुए हनुमान जी को स्नान कराती हैं. ये इकलौता मंदिर है जहां हनुमान जी लेटे हुए हैं. इस प्रतिमा की लंबाई करीब 20 फीट बताई जताई है. कहा जाता है कि संगम स्नान के बाद इनके दर्शन बेहद जरूरी है, अगर इनके दर्शन नहीं किए तो आपका आना व्यर्थ माना जाएगा.
अक्षय वट
प्रयागराज में ही एक काफी पुराना अक्षय वट (बरगद का पेड़) मौजूद है, जिसे देखने दूर-दराज से लोग आते हैं. संगमनगरी प्रयागराज में अक्षय वट का भी विशेष धार्मिक महत्व है. मान्यता है कि यहां का बरगद का पेड़ चार युगों से अस्तित्व में है. महाकुंभ आए श्रद्धालुओं को इस जगह जरूर जाना चाहिए. पुराणों की माने तो प्रलय के समय जब पूरी पृथ्वी डूब जाती है तो वट का एक वृक्ष बच जाता है. वही अक्षयवट कहलाता है. कहा जाता है कि त्रेतायुग में भगवान श्रीराम, माता सीता और भाई लक्ष्मण यहां आए थे. इस पेड़ के नीचे विश्राम किया था. इसलिए आप यहां पर दर्शन के लिए आ सकते हैं.
सरस्वती कूप
सरस्वती कूप एक पवित्र कुआं है, जो त्रिवेणी संगम स्थित किले के अंदर है. यहां पर सरस्वती की एक मूर्ति भी है. जहां ये भूमिगत जलधारा है, उसे ‘सरस्वती कूप’ का नाम दिया गया. मान्यता है कि सरस्वती भूलोक में गंगा और यमुना के संगम से भी मिलती है. ऐसा भी कहा जाता है कि सरस्वती कूप त्रिवेणी की गुप्त धारा है.
पातालपुरी मंदिर
पातालपुरी मंदिर में भगवान शिव अपनी अर्धनारीश्वर रूप में हैं. यहां पर तीर्थों के राजा प्रयागराज की मूर्ति भी स्थापित है. इस मंदिर में एक अनंत ज्योति भी जलती रहती है, जो भगवान शनि को समर्पित है. यह ज्योति 12 महीने तक जलती रहती है. यह मंदिर महा कुंभ के दौरान तीर्थ यात्रियों के लिए महत्वपूर्ण स्थल बन जाता है.
नाग वासुकी मंदिर
इस मंदिर में नागों के राजा वसुकी की पूजा होती है. पौराणिक कथाओं के मुताबिक, समुद्र मंथन के बाद देवताओं और असुरों ने नाग वासुकी को सुमेरु पर्वत रस्सी जैसा लपेटा था, जिसे कारण नागवासुकी घायल हो गए थे और फिर भगवान विष्णु ने उन्हें प्रयागराज में इसी जगह आराम करने को कहा था. इसी वजह से इसे नागवासुकी मंदिर कहा जाता है. मान्यता है कि प्रयागराज आने वाले तीर्थ यात्रियों की यात्रा तब तक अधूरी रहती है जब तक इनके दर्शन न कर लें.
अलोपशंकरी मंदिर
मां दुर्गा के कई रूप हैं, जिनके दर्शन के लिए शक्तिपीठ मंदिरों में भीड़ लगी रहती है. देवी के इन्हीं मंदिरों में एक पीठ संगम नगरी में मौजूद हैं. यहां मां दुर्गा की मूर्ति रूप में पूजा नहीं होती बल्कि यहां एक चुनरी में लिपटे एक पालने की पूजा होती है. यहां मां दुर्गा को अलोपशंकरी देवी के रूप में जाना जाता है. मान्यता है कि मां सती के दाहिने हाथ का पंजा यहा गिरा था, जो विलुप्त हो गया था. इस कारण इस मंदिर का नाम अलोप शंकरी पड़ा.
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