Haldwani News: मकर संक्रांति क़े अवसर पर कत्युर वंश क़े लोग यहां माता जियारानी की पूजा अर्चना कर उनका आशीर्वाद लेते हैं और पवित्र गौला नदी में स्नान कर अपने घरों को लौटते हैं.
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विनोद कांडपाल/हल्द्वानी: "जियारानी"वो राजमाता जिन्होंने मुगलों का डटकर सामना किया, जियारानी जो कत्युर वंश की इष्टदेवी हैं, जियारानी माता का मंदिर हल्द्वानी क़े रानीबाग चित्रशीला घाट पर स्थित है, मकर संक्रांति क़े अवसर पर कत्युर वंश क़े लोग यहां माता जियारानी की पूजा अर्चना कर उनका आशीर्वाद लेते हैं और पवित्र गौला नदी में स्नान कर अपने घरों को लौटते हैं.
जिया रानी ने बनवाया रानीबाग
लगभग आज से 800 साल पहले 12वीं शताब्दी में कत्यूरी राजवंश का राज्य था. जिसकी राजधानी कत्युर घाटी बागेश्वर हुआ करती थी, कत्युरी राजवंश की रानी थी जियारानी, 12 वीं शताब्दी में मुगल और तुर्कों का शासन बढ़ता चला गया, मुगलों ने उत्तराखंड को लूटने के लिए गढ़वाल में हरिद्वार और कुमाऊं में हल्द्वानी को अपना रास्ता बनाया, लेकिन इस दौरान मुगलों को कत्युरी सेना से मुंह की खानी पड़ी और युद्ध हार गए, जिया रानी जब बड़ी हुईं तो अपने राज्य का कार्यभार देखने के लिए गौला नदी के घाट पर आ गयी. जहां उन्होंने एक बाग बनवाया और इस पूरे इलाके का नाम रानीबाग पड़ गया.
पत्थर की शिला में तब्दील हो गया माता जियारानी का लहंगा
जियारानी शिवजी की परम् भक्त थीं. बताया जाता है कि जब वो रानीबाग गौला नदी के तट पर चित्रेश्वर महादेव यानी शिवजी के दर्शन करने आई थीं तो उनके स्नान करने के दौरान मुगल दीवान उनकी सुंदरता पर मोहित हो गया, मुगल सैनिकों से लड़ते-लड़ते उस स्थान को अपवित्र होने से बचाने के लिए जियारानी वहां से अंतर्ध्यान हो गयी.
मकर संक्रांति पर होती पूजा
बताया जाता है कि जिया रानी ने उस समय अपना लहंगा उसी स्थान पर छोड़ दिया और जब मुगलों ने लहंगे को छूकर जिया रानी को ढूंढना चाहा तो लहंगा पत्थर की शिला में तब्दील हो गया. मुगलों को जिया रानी का कोई अता पता नहीं चल सका, यह पत्थर आज भी चित्र शिला घाट पर मौजूद है और मकर सक्रांति के दिन लोग यहां पर जिया रानी के नाम की पूजा अर्चना कर अपने लिए सुख समृद्धि और खुशहाली की कामना करते हैं.
आज भी है माता जिया रानी की गुफा
पहाड़ों में जब किसी भी तरह की जागर का आयोजन होता है तो जजिया शब्द का उच्चारण होता है. जिसका अर्थ है "जय जिया" यानी जियारानी माता की जय. चित्रशिला घाट के ठीक ऊपर माता जिया रानी की गुफा भी है, बताया जाता है कि जब मुगलों ने माता जियारानी का पीछा किया तो वें अंतर्ध्यान होकर इस गुफा में आकर छिप गयी, यहां से अपने इष्ट देव के दरबार में प्रकट हुई.
मकर संक्रांति पर लगता है मेला
जियारानी की गुफा आज भी यहां मौजूद हैं, मकर सक्रांति पर कत्यूरी वंश के लोग यहां आकर माता जिया रानी की पूजा अर्चना कर रहे हैं, और माता जियारानी यहां प्रकट होकर उन्हें अपना आशीर्वाद भी दे रही है, हर साल मकर संक्रांति के अवसर पर माता जिया रानी के दरबार में यहां मेला भी लगता है.
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