Mirwaiz Umar Farooq News: उमर फारूक के पिता मौलवी फारूक की हत्या के बाद 17 साल की उम्र में उन्हें मीरवाइज बनाया गया था. वो आज भी इस पद पर हैं. कभी केंद्र से 36 का आंकड़ा रखने वाले उमर जब जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटने के बाद नजरबंदी से रिहा हुए तो धीरे-धीरे, भारत की मुख्य धारा से जुड़ने लगे.
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Hurriyat Chief Mirwaiz Umar Farooq : 1947 में अंग्रेजों से आजाद होते ही भारत, विभाजन की विभीषिका में फंस गया. इस विषय पर सुभाष चंद बोस से लेकर गांधी, नेहरू और मोहम्मद अली जिन्ना की अपनी सोच रही है. यूं तो बंटवारे का दंश पूरे भारत ने झेला था, लेकिन जम्मू - कश्मीर (Jammu Kashmir) इकलौता प्रदेश रहा, जिसे पाकिस्तान की नापाक नजर से उबरने में करीब 70 साल लग गए. इतने लंबे अंतराल में वहां आतंकवाद के बीज बोने के साथ अलगाववाद की फसल उगाई गई. अलगाववादियों के कई संगठन खड़े हुए. एक ऐसा ही धड़ा था हुर्रियत कांफ्रेंस (Hurriyat Conference) जिसकी कमान संभालने वाले मीरवाइज उमर फारुक लंबे समय बाद राज्य से बाहर निकले तो उनका दिल्ली दौरा भी बड़ी खबर बन गया.
'हुर्रियत कॉन्फ्रेंस'
जम्मू कश्मीर में करीब 32 सालों से अलगाववादियों की अगुवाई कर रहे इस संगठन पर केंद्र सरकार की टेढ़ी नज़र रही है. इनके इरादों के चलते अलगाववादी धड़ों के खिलाफ UAPA के तहत प्रतिबंध लगा. दिसंबर 2023 में जम्मू कश्मीर के संगठन तहरीक ए हुर्रियत पर प्रतिबंध लगा. इसी तरह मुस्लिम लीग जम्मू कश्मीर (मसरत आलम गुट) पर भी बैन लगा.
अमित शाह की अगुवाई वाले गृह मंत्रालय यानी MHA ने यूएपीए (Unlawful Activities prevention act (UAPA) कानून के तहत यह कार्रवाई की गई थी. इस बैन को जून, 2024 में बढ़ाया गया.
मीरवाइज उमर फारुक कौन है?
मीरवाइज उमर फारुक हुर्रियत के नेता रहे हैं. भारत सरकार ने 5 अगस्त 2019 को जम्मू और कश्मीर को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत दी गई विशेष स्थिति या स्वायत्तता को रद्द कर दिया इसके बाद हालात संभालने के लिए तमाम संगठनों और नेताओं पर प्रतिबंध लगा. इसी सिलसिले में मीरवाइज उमर फारुक को नजरबंद किया गया. आगे जम्मू-कश्मीर में हालात सामान्य हुए तो मीरवाइज उमर फारुक पर लगाई गई बंदिशें कम होने लगीं.
हुर्रियत कांफ्रेंस के अध्यक्ष मीरवाइज उमर फारूक की नजरबंदी चार साल बाद 22 सितंबर 2023 शुक्रवार को हटा दी गई और उन्हें रिहा कर दिया गया था. मीरवाइज उमर फारूक ने शुक्रवार को श्रीनगर की ऐतिहासिक जामिया मस्जिद में जुमे की नमाज का नेतृत्व किया. फारूक को अगस्त 2019 में संविधान के अनुच्छेद 370 के प्रावधान रद्द किए जाने के मद्देनजर नजरबंद किया गया था.
ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के चेयरमैन मीरवाइज उमर फारूक ने 5 अक्टूबर 2024 को जम्मू-कश्मीर को लेकर बड़ा बयान दिया था. मीरवाईज उमर फारूक ने करीब 5 साल बाद सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने, अपनी नजरबंदी जैसे मुद्दों पर बात की थी.
मीरवाइज उमर फारूक कश्मीर के अलगाववादी संगठन हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष हैं. 23 मार्च 1973 को जन्मे मोहम्मद उमर फारूक कश्मीर के मीरवाइज हैं. वह कश्मीर घाटी के एक इस्लामी धार्मिक मौलवी भी हैं. मीरवाइज कश्मीर में धर्मगुरुओं का एक सिलसिला है. श्रीनगर की जामा मस्जिद के प्रमुख मीरवाइज ही होते हैं.
फारूक श्रीनगर के बर्न हॉल स्कूल से पढ़े हैं. कंप्यूटर साइंस में दिलचस्पी रखने वाले फारुक सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनना चाहते थे. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उनके पास 'मौलवी फ़ाज़िल' नामक इस्लामी अध्ययन में स्नातकोत्तर की डिग्री है. आगे उन्होंने कश्मीर यूनिवर्सिटी से 'शाह-ए-हमदान की राजनीतिक-इस्लामिक भूमिका' विषय पर पीएचडी की. जो कि 14वीं शताब्दी के इस्लामी विद्वान थे जिन्होंने घाटी में इस्लाम की शुरुआत की थी.
फारूक की शादी 2002 में कश्मीरी-अमेरिकी शीबा मसूदी से हुई है. उनकी दो बेटियां- मरियम और ज़ैनब, और एक बेटा, इब्राहिम है. शीबा मसूदी श्रीनगर के बरज़ुल्ला इलाके के एक डॉक्टर सिब्तैन मसूदी की सबसे छोटी बेटी हैं.
अचानक क्यों चर्चा में आए मीरवाइज उमर फारुक?
मीरवाइज उमर फारुक के हालिया पोर्टफोलियो की बात करें तो कश्मीर के मुत्तहिदा मजलिस-ए-उलेमा के संरक्षक मीरवाइज उमर फारूक शुक्रवार को दिल्ली में थे. जहां उन्होंने जेपीसी यानी संयुक्त संसदीय समिति के सामने वक्फ (संशोधन) बिल का विरोध किया.
लंबे समय बाद बाहर निकले मीरवाइज उमर फारुक
उमर फारुक के विरोध से इतर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कई सदस्यों ने संवैधानिक प्रक्रिया का हिस्सा बनने के उनके फैसले का समर्थन किया. मीरवाइज कश्मीर घाटी में अलगाववादी राजनीति से जुड़े रहे हैं. आपको बताते चलें कि यह पहला मौका था जब लगभग निष्क्रिय हो चुके अलगाववादी समूह हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के प्रमुख मीरवाइज ने पूर्ववर्ती जम्मू कश्मीर राज्य का विशेष दर्जा समाप्त होने के बाद कश्मीर घाटी से बाहर कदम रखा है.
वक्फ संशोधन विधेयक पर विचार कर रही संयुक्त संसदीय समिति के सदस्य और बीजेपी सांसद संजय जायसवाल ने कहा, ‘सबसे अच्छी बात ये थी कि उन्होंने अपनी बात मजबूती से रखी और विधेयक के विभिन्न प्रावधानों पर अपनी आपत्तियां व्यक्त करने के अपने संवैधानिक अधिकार का हवाला दिया.’