Bengaluru News: बेंगलुरु के उडुपी जिला में नवलगुंडा के इतिहासकार डॉ. रविकुमार ने 30 शिलालेखों की खोज की है. ये शिलालेख 450 साल पुरानी बसदी के भीतर अलग-अलग स्थानों पर पाए गए हैं. इनमें से 29 शिलालेख कन्नड़ लिपि में हैं और एक नागरी लिपि में मौजूद है, जिसमें सिर्फ तीर्थंकर का नाम है.
Trending Photos
Bengaluru News: बेंगलुरु का उडुपी जिला इस वक्त काफी सुर्खियों में है. इसकी वजह जिले के कारकला तालुक के मुदारू गांव में स्थित अब्बाना बेट्टू बसदी में 30 शिलालेखों की खोज है. बताया जा रहा है कि इनमें से 29 शिलालेख कन्नड़ लिपि में हैं, जबकि एक नागरी लिपि में मौजूद है, जिसमें सिर्फ तीर्थंकर का नाम है.
रिपोर्ट के मुताबिक, ये शिलालेख 450 साल पुरानी बसदी के भीतर अलग-अलग स्थानों पर पाए गए हैं. इसमें दो पार्श्वनाथ तीर्थंकर की पत्थर की मूर्तियों के पीछे और 24 शिलालेख जैन तीर्थंकरों का प्रतिनिधित्व करने वाली पीतल की मूर्तियों के आसन पर मिले हैं. वहीं, एक पार्श्वनाथ तीर्थंकर की मूर्ति के पास और आदिनाथ तीर्थंकर प्रतिमा के चांदी के मेहराबों पर दो शिलालेख पाए गए हैं.
नवलगुंडा के इतिहासकार डॉ. रविकुमार ने यह खोज की है. उनका माना है कि 'यह खोज महत्वपूर्ण है क्योंकि यह व्यापक संग्रह में 30 शिलालेख जोड़ती है.' उन्होंने बताया कि सबसे पुराना शिलालेख 25 मार्च, 1586 ई. का है, जो कलसा-करकला के काल है. 16वीं शताब्दी के अंत में जैन राजवंश के शासक सलुवा भैररासा (भैररासा द्वितीय) वहां के शासक थे.
इस 16-पंक्ति के शिलालेख में दर्ज सलुवा भैररासा की पत्नी लक्ष्मणदेवी ने 24 तीर्थंकरों की एक लिस्ट बनाई है और इसे बसदी को दान किया. इसमें लक्ष्मनादेवी के नाम पर करकला महल के पास पार्श्वनाथ बसदी में आयोजित धार्मिक अनुष्ठानों का भी उल्लेख है. यह शिलालेख भैररासा (संतारा) राजवंश के भीतर उनकी पूर्व अज्ञात भूमिका को भी उजागर करता है, जो करकला में गोमतेश्वर प्रतिमा जैसे योगदान के लिए जाना जाता है.
शिलालेख पर और क्या मिला
पार्श्वनाथ तीर्थंकर प्रतिमा पर पाए गए 16वीं शताब्दी के एक अन्य शिलालेख से पता चलता है कि इसे देवरसा नामक संरक्षक द्वारा बनवाया गया था. पीतल के तीर्थंकर स्तंभों पर शिलालेख उन व्यक्तियों के बारे में विस्तार से बताते हैं, जिन्होंने इन मूर्तियों को बनवाया है. जबकि झांझ पर 18वीं शताब्दी का शिलालेख हैं, चांदी के मेहराब पर शिलालेख खोजों में सबसे नया है और 19वीं शताब्दी के हैं.
बसदी का इतिहास
अतिकारी बसदी के नाम से भी जानी जाने वाली इस बस्ती का नाम अतिकारी परिवार के नाम पर रखा गया है. इस बस्ती को मूल रूप से 24 में से 12 पीतल की तीर्थंकर मूर्तियों, झांझ और जैन मंदिर के रखरखाव के लिए भूमि का योगदान देने के अलावा इसे बनाया था.