नई दिल्ली: छठ पर्व पर छठी माता की पूजा की जाती है, जिसका उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी मिलता है. एक कथा के अनुसार प्रथम मनु स्वायम्भुव के पुत्र राजा प्रियव्रत को कोई संतान नहीं थी. इस वजह से वे दुःखी रहते थे. महर्षि कश्यप ने राजा से पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करने को कहा. महर्षि की आज्ञा अनुसार राजा ने यज्ञ कराया. इसके बाद महारानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया लेकिन दुर्भाग्य से वह शिशु मृत पैदा हुआ.
इस बात से राजा और अन्य परिजन बेहद दुःखी थे. तभी आकाश से एक विमान उतरा जिसमें माता षष्ठी विराजमान थीं. जब राजा ने उनसे प्रार्थना कि, तब उन्होंने अपना परिचय देते हुए कहा कि- मैं ब्रह्मा की मानस पुत्री षष्ठी देवी हूं. मैं विश्व के सभी बालकों की रक्षा करती हूं और निःसंतानों को संतान प्राप्ति का वरदान देती हूं.” इसके बाद देवी ने मृत शिशु को आशीष देते हुए हाथ लगाया, जिससे वह जीवित हो गया. देवी की इस कृपा से राजा बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने षष्ठी देवी की आराधना की. ऐसी मान्यता है कि इसके बाद ही धीरे-धीरे हर ओर इस पूजा का प्रसार हो गया.
छठ पूजा के दौरान बरतें विशेष सावधानी
- छठ पूजा सदैव स्वच्छ कपड़ों में करनी चाहिए और यदि संभव हो, तो नए कपडे धारण करके पूजा करें.
- इस महापर्व के दौरान मुख्यतः नहाय-खाय से लेकर छठ के समापन तक व्रती का बिस्तर पर सोना निषेध होता है.
- छठ पूजा के दौरान सात्विक भोजन ही करना चाहिए, साथ ही शराब के सेवन से बचना चाहिए.
- इस पूजा के दौरान साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए.
- भगवान सूर्य को स्टील, प्लास्टिक, शीशे, चांदी आदि के बर्तन से अर्घ्य नहीं देना चाहिए.
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