नई दिल्ली: राजेंद्र कुमार (Rajender Kumar) की आंखों में एक अलग सी नमी थी. इमोशनल सीन हो या रोमांटिक वो अपनी आंखों से ही लोगों के दिलों तक अपनी बात पहुंचाने में माहिर थे. आज भी आशिक मिजाजी लोगों की जुबान पर 'बहारों फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है' हमेशा चढ़ा ही रहता है.
अपने 4 दशक के सक्सेसफुल करियर में उन्होंने कई हिट फिल्में (Rajender Kumar Hit) दी. यही वजह थी कि राजेंद्र कुमार को जुबली कुमार (Jubilee Kumar) कहा जाने लगा.
पाकिस्तान से आए थे भारत
राजेंद्र कुमार पाकिस्तान से भारत आए और आते ही किस्मत बदल गई नहीं इन्हें फिल्मों में नहीं बल्कि पुलिस विभाग में काम मिल गया था. कहते हैं ना कि दोस्त आपके लाइफ को बदल सकते हैं इनके साथ भी कुछ ऐसा हुआ इनके दोस्त ने इन्हें फिल्मी दुनिया का सपना दिखाया और मुंबई ले आए. पुलिस की ट्रेनिंग छोड़ अब सपनों के शहर में राजेंद्र कुमार स्ट्रगल कर रहे थे.
फिल्मी सफर रहा बेहद ही कमाल
पहली बार राजेंद्र कुमार ने 'जोगन' फिल्म में अपनी लुक्स से आग लगा दी. 'मदर इंडिया' में उनका रोल बेहद ही छोटा सा था लेकिन उनकी मौजूदगी को फिल्म में लोगों ने बहुत सराहा. अपने करियर में 80 से ज्यादा फिल्मों में काम कर चुके राजेंद्र की 35 फिल्में सिल्वर जुबली रहीं. उन्हें जवाहर लाल नेहरू ने नेशनल अवॉर्ड से नवाजा. 1969 में राजेंद्र कुमार को पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया. 60 का दशक जहां उनके काम और नाम से पहचाना जा रहा था वहीं 70 के दशक तक आते आते उनका चार्म फीका पड़ गया.
गुमनामी का वो दौर
एक वक्त पर हर डायरेक्टर उन्हें साइन करने के लिए उनके आगे पीछे घूमता रहता था. फिर एक दौर आया जब सब धुंधला पड़ गया. चार्म फीका पड़ता दिख रहा था. हालात इतने खराब हो गए कि उनके पास अपना बंगला बेचने के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचा. मजबूरी के चलते उन्होंने राजेश खन्ना को ही अपना लकी बंगला बेच दिया. 12 जुलाई 1999 को भले ही ये सितारा हमेशा से दुनिया से विदा हो गया हो लेकिन भारतीय सिनेमा की आकाशगंगा में ये हमेशा चमकता रहेगा.
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