नई दिल्ली: Lal Krishna Advani Birthday: साल 1995 में 12 नवंबर को भाजपा का मुंबई में अधिवेशन चल रहा था. पार्टी कार्यकर्ताओं का जोरदार हुजूम था. सबको उम्मीद थी कि अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए पार्टी के अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी अपनी दावेदारी पेश करेंगे. आडवाणी भाषण देने खड़े हुए तो उनके पक्ष में नारे लगने लगे. आडवाणी ने कहा कि अब समय आ गया है कि भाजपा अध्यक्ष के नाते मैं ये कहूं कि अबकी बारी अटल बिहारी. आडवाणी ने अटल से बिना पूछे उन्हें आगामी चुनाव के लिए भाजपा का पीएम उम्मीदवार बना दिया.
अटल ने भाषण के बीच में उनकी बात काटने की कोशिश भी की, लेकिन आडवाणी ने कहा कि बतौर अध्यक्ष मैं इसकी घोषणा कर चुका हूं. भारतीय राजनीति में आडवाणी का यह त्याग सदियों तक याद रखा जाएगा. आज लाल कृष्ण आडवाणी का जन्मदिन है, वे 96 साल के हो गए हैं.
दोनों कैसे मिले
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी की दोस्ती के किस्से सियासी गलियारों में आम हैं. दोनों की पहली मुलाकात 50 के दशक में हुई थी. उस दौरान वाजपेयी जनसंघ के अध्यक्ष के साथ राजस्थान की यात्रा पर थे, यहीं उनकी मुलाकात आडवाणी से हुई. दूसरी मुलाकात सीधे लोकसभा के परिसर में हुई, जब दोनों सांसद बनकर वहां पहुंचे थे. समय के साथ दोस्ती इतनी गहरी हो गई कि साल 1980 में दोनों ने भाजपा नाम से अपनी पार्टी बना ली.
इस तरह खत्म होते थे मतभेद
कहा जाता है कि जब भी आडवाणी और वाजपेयी में किसी बात को लेकर मनमुटाव होता था, तब आडवाणी की पत्नी कमला मध्यस्थता करती थीं. कमला वाजपेयी को डिनर के लिए घर बुला लिया करती थीं और डिनर टेबल पर ही दोनों के गिले-शिकवे दूर कर देती थीं.
'मैं विचारक, अटल नायक'
साल 1995 में अटल को पीएम पद का दावेदार बनाने के बाद आडवाणी को संघ और पार्टी से काफी खरी-खोटी सुननी पड़ी थी. लोगों का कहना था आप सरकार चलाएंगे तो बेहतर होगा. तब मैंने कहा कि मैं इस बात से सहमत नहीं हूं, जनता की नजर में मैं एक जननेता से ज्यादा विचारक हूं. अटल जी नायक हैं.
65 साल की दोस्ती
पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के निधन के बाद लाल कृष्ण आडवाणी दुखी थे. उन्होंने कहा था कि भारत के सबसे बड़े स्टेट्समेन के जाने से हम सब काफी दुखी हैं. मेरे लिए अटलजी एक सीनियर साथी से कहीं ज्यादा थे. असल में वह 65 सालों तक मेरे सबसे करीबी दोस्त रहे.
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