भारत का वो गांव जिसने दिए 35 से ज्यादा खुफिया एजेंट्स, यहां घर-घर से निकले 'जेम्स बॉन्ड'!

भारत में एक ऐसा गांव है जहां हर घर से एक खुफिया एजेंट की कहानी सुनने को मिल जाती है. यहां के लोगों का दावा है कि आजादी के बाद से इस गांव से 35 से भी ज्यादा जासूस निकल चुके हैं. हालांकि, उनके पास अपनी इस बात को साबित करने का कोई सबूत नहीं है.

Written by - Bhawna Sahni | Last Updated : Jan 31, 2025, 06:00 PM IST
    • ये गांव करता है जासूस देने का दावा
    • देश ने किया स्वीकारने से इनकार
भारत का वो गांव जिसने दिए 35 से ज्यादा खुफिया एजेंट्स, यहां घर-घर से निकले 'जेम्स बॉन्ड'!

नई दिल्ली: जासूस या खूफिया एजेंट का नाम सुनते ही हम सभी के जहन में जेम्स बॉन्ड का ख्याल आ जाता है. वहीं, कई फिल्मों में खुफिया एजेंट्स को काम करते हुए देखा चुके हैं. हालांकि, रियल लाइफ के जासूस फिल्मी पर्दे से बिल्कुल अलग होते हैं. ऐसे में आज हम आपको भारत के एक ऐसे गांव के बारे में बताने जा रहे हैं जहां से सबसे ज्यादा खुफिया जासूस निकले हैं. यह गांव है पंजाब के गुरदासपुर में स्थित दादवान गांव. इसे 'जासूसों का गांव' भी कहा जाता है.

कई जासूसों ने पार की सरहदें

दादवान के रहने वाले दावा करते हैं कि आजादी के बाद 35 से भी ज्यादा खुफिया एजेंट्स इसी गांव से निकले हैं. हालांकि भारतीय सरकार ने इन दावों को आधिकारिक रूप से कभी स्वीकार नहीं किया. गांव के लोगों का कहते हैं कि उन्होंने अपने देश के लिए सरहद पार कर जासूसी की थी, लेकिन अपनी इस बात को साबित करने के लिए उनके पास कोई सबूत नहीं है. दूसरी तरफ, सरकारी अधिकारियों का दावा है कि ये लोग जासूसी नहीं, बल्कि तस्करी करते थे, ये सरहद पार शराब बेचने के लिए जाते थे. इस दौरान पाकिस्तान की सुरक्षा एजेंसियों ने इन्हें पकड़ा और उन पर जासूसी का आरोप लगाया गया. इस कारण कई लोगों को पाकिस्तान की जेल में काफी समय भी बिताना पड़ा.

कई दिल दहलाने वाली कहानियां आईं सामने

हालांकि, हम पहले भी इस तरह की कहानियां सुन चुके हैं कि कोई भी खुफिया जासूस पकड़े जाने के बाद देश उनके अस्तित्व को पूरी तरह से नकार देता है. वहीं, हम बहुत सारी फिल्मों में भी इस तरह के वाकये देख चुके हैं, लेकिन दादवान गांव से निकले जासूसों की कई दिल दहला देने वाली कहानियां सामने आ चुकी हैं. इन्हीं में से एक नाम है सतपाल का. कहा जाता है कि उन्होंने कई बार देश सेवा के लिए पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान की जमीन पर कदम रखा था.

14 सालों तक की देश की सेवा

सतपाल के बेटे सुरिंदर पाल सिंह दावा करते हैं कि उनके पिता ने 14 सालों तक देश की सेवा की, लेकिन कभी पाकिस्तानी सेना के हाथ नहीं आए. हालांक, 2000 में वह आखिरी बार पाकिस्तान गए थे, जिसके बाद उनका शव ही भारत लौट पाया. उनका शव वाघा बॉर्डर पर BSF को सौंपा गया था. सतपाल के मृत्यु प्रमाण पत्र पर उनकी मौत की वजह ट्यूबरकुलस मेनिनजाइटिस नाम की बीमारी को बताया गया था. हालांकि, परिजन उनके शव को देख इस बात पर यकीन ही नहीं कर पाए, क्योंकि उनकी बॉडी पर कई चोट के निशान थे.

संवेदनशील मुद्दा

इसी तरह की कई कहानियां दादवान गांव में सुनने को मिल जाती हैं, लेकिन इनकी पुष्टि कोई नहीं कर पाता. इस गांव के कई लोग अपना जीवन पाकिस्तान की जेल में सजा काटते हुए भी बिता चुके हैं और खुफिया एजेंसियों ने उन्हें स्वीकारने से इनकार कर दिया. इस गांव की कहानियां बहुत संवेदनशील मुद्दा रही हैं.

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