नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल में जीत की हैट्रिक लगाने वाली टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी का दिल्ली दौरा सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है. इसे 2024 से पहले बीजेपी के खिलाफ दीदी की मोर्चाबंदी बताई जा रही है, तो क्या लोकसभा चुनाव के लिए विपक्ष एकजुट होने जा रहा है. क्या ये इतना आसान होगा, मोदी के खिलाफ विपक्ष का चेहरा कौन होगा? ऐसे कई सवाल हैं जिनका जवाब हर कोई जानना चाह रहा है.
2024 के लिए ममता का मोर्चा
बंगाल की सीएम ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने इन दिनों दिल्ली आने का मन बना लिया है, पहले दौरे के बाद उन्होंने ये ऐलान कर दिया है कि वो हर महीने दिल्ली का रुख करेंगी. दीदी के दौरे के पीछे की राजनीति को समझना जरूरी है.
राज्य के मसलों को लेकर पीएम से उनकी मुलाकात हुई, लेकिन उससे ज़्यादा चर्चा उनके विपक्ष के नेताओं से मुलाकातों और उसके मायनों को लेकर है. दरअसल बंगाल की जीत से गदगद ममता दीदी की ये मुलाकातें 2024 में बीजेपी के खिलाफ जमीन तैयार करने की कवायद मानी जा रही है.
वो बंटे हुए विपक्ष को एक करने की मुहिम में जुटी हैं. कांग्रेस, एनसीपी, आरजेडी और एसपी सभी के नेताओं से मिलकर वो गैर बीजेपी मोर्चा खड़ा करना चाहती हैं. 2019 लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी पार्टियों का न कोई तीसरा मोर्चा बना और न ही कांग्रेस के साथ कोई बड़ा गठबंधन हो सका. लेकिन ये पहला मौका है जब ममता बनर्जी खुद सबको साथ आने के लिए कह रही हैं.
BJP के खिलाफ देश मे खेला करेंगी दीदी!
बंगाल में खेला होबे नारे के हिट होने के बाद ममता बनर्जी 2024 के लिए भी इसी नारे पर ताल ठोक रही हैं ममता का कहना है कि जब तक भाजपा पूरे देश से साफ नहीं हो जाती, तब तक सभी राज्यों में खेला होगा. बीजेपी को देश से खदेड़ने तक खेला चलता रहेगा.
ममता बनर्जी कह रही है कि 'बीजेपी को देश से खदेड़े बिना लोकतंत्र को बचाना मुश्किल होगा. हमने बंगाल में एक बार खेला दिखा दिया है. अब देश भर में फिर से भगवा पार्टी को खेला दिखाएंगे. 16 अगस्त को हम खेला होबे दिवस मनाएंगे.'
दरअसल, टीएमसी के इस नारे ने लोगों को ममता सरकार की ओर खूब आकर्षित किया था. पीएम नरेन्द्र मोदी गृहमंत्री अमित शाह की ताबड़तोड़ रैलियों के बावजूद बीजेपी का सोनार बांग्ला का सपना टूट गया और तीसरी बार बंगाल में दीदी की सरकार बनी.
ममता के चेहरे पर विपक्ष एक होगा?
बंगाल विजय के बाद विपक्षी राजनीति का केंद्र बनकर उभरीं ममता बनर्जी भाजपा विरोधी राजनीतिक दलों के गठबंधन का संभावित चेहरा हो सकती हैं, लेकिन सवाल है कि क्या ममता बनर्जी के चेहरे पर विपक्ष एकजुट होगा. क्या ममता गैर एनडीए मोर्चा खड़ा कर पाएंगी? क्योंकि कोशिशें इससे पहले भी की गई थी लेकिन मुकम्मल नहीं हो पाई.
ममता कहती हैं कि "मैं नहीं जानती 2024 में क्या होगा, लेकिन इसके लिए अभी से तैयारियां करनी होंगी. हम जितना समय नष्ट करेंगे, उतनी ही देरी होगी. बीजेपी के खिलाफ तमाम दलों को मिल कर एक मोर्चा बनाना होगा. ऐसा नहीं हुआ तो लोग हमें माफ नहीं करेंगे."
दीदी जगन मोहन, चंद्रबाबू नायडू, नवीन पटनायक सबसे अच्छे रिश्ते की बात कह रही हैं. वो कहती है ये आज साथ नहीं है, लेकिन कल तो आ सकते हैं. इस बीच विपक्षी नेताओं के मेल मुलाकातों का दौर जारी है शरद पवार, ममता बनर्जी, रामगोपाल यादव ने आरजेडी चीफ लालू यादव से भी मुलाकात की, ममता 2022 यूपी चुनाव में बीजेपी को हराने के लिए भी सभी दलों से साथ आने की अपील कर रही हैं.
कांग्रेस को ममता का नेतृत्व मंज़ूर होगा?
मिशन 2024 के तहत टीएमसी सुप्रीमो की नजर पीएम की कुर्सी पर है. लेकिन, ये बात ममता बनर्जी को भी पता है कि कांग्रेस को दरकिनार कर आम सहमति बना पाना टेढ़ी खीर है. सोनिया और ममता के मुलाकात से इसका अंदाजा लगाया जा सकता है कांग्रेस के बिना यूपीए की कल्पना नहीं की जा सकती है.
जब बात यूपीए की होती है तो राहुल गांधी अघोषित रूप से चेहरा बन जाते हैं तो क्या ममता कांग्रेस को किनारे कर टीएमसी की अगुवाई में यूपीए की सोच सकती हैं, आज की तारीख में तो नहीं, तो क्या ममता एनडीए, यूपीए से अलग कोई तीसरा मोर्चा खड़ा कर सकती हैं. लेकिन फिर यहां सवाल है कि उस मोर्चे में कितने दल शामिल होंगे और क्या वो इतने मजबूत होंगे कि बीजेपी को टक्कर दे सकें.
ममता दीदी अच्छी तरह जानती है कि अगर ममता बनर्जी खुद को चेहरा बनाने पर अड़ती हैं, तो 2019 की तरह ये गठबंधन बनने से पहले ही फेल हो जाएगा. इसलिए ममता दीदी कह रही हैं कि अगर विपक्ष की ओर से कोई दूसरा चेहरा भी सामने आता है तो मुझे कोई दिक्कत नहीं है. जब मामले पर चर्चा होगी तो हम इस पर फैसला करेंगे.
मिशन 2024 के पीछे ममता के रणनीतिकार PK
प्रशांत किशोर ने ही पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी के लिए चुनावी रणनीति बनाई और दीदी को तीसरी बार सत्ता तक पहुंचाया. ममता के मिशन 2024 के पीछे भी पीके की भूमिका का जिक्र हो रहा है. पीके पिछले डेढ़ महीने में शरद पवार समेत विपक्ष के कई नेताओं से मुलाकात कर चुके हैं.
हाल ही में पीके की मुलाकात सोनिया , राहुल और प्रियंका गांधी से भी हुई थी. पीके का मानना है कि अगर विपक्ष एकजुट होता है तो बीजेपी के गेमप्लान को चौपट किया जा सकता है, ऐसे में 2024 के चुनाव से पहले ये फायदेमंद होगा. महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे बड़े राज्यों में इस वक्त विपक्षी पार्टियों की सरकार है, लेकिन पीके विपक्ष के कुनबे में कुछ और पार्टियों को जोड़ना चाहते हैं वो बीजेडी के नवीन पटनायक को भी साथ लाना चाहते हैं.
2018 में एक मंच पर दिखा था विपक्ष
3 साल पहले 2018 में कर्नाटक में विपक्ष की एकता देखने को मिली थी, जब कर्नाटक में कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में शिरकत करने विपक्ष के तमाम नेता पहुंचे थे. ये नजारा पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आपातकाल के बाद कांग्रेस के खिलाफ जनता पार्टी के साथ आए दलों की याद ताजा करा रहा था.
सोनिया मायावती की हंसती-मुस्कुराती तस्वीरें सोशल मीडिया पर सुर्खियां बटोर रही थी, लेकिन बेंगलुरू से शुरू हुई विपक्षी एकजुटता की कहानी कर्नाटक विधानसभा में कुमारस्वामी के विश्वासमत गंवाने के साथ ही खत्म हो गयी.
2019 में चंद्रबाबू की कोशिश हुई थी नाकाम?
2019 में विपक्ष को एकजुट करने की टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू की कोशिशों की तुलना 1996 में सीपीएम के दिवंगत नेता हरकिशन सिंह सुरजीत से की जा रही थी. जब सुरजीत के समर्थन से यूनाइटेड फ्रंट की सरकार बनी थी जिसको कांग्रेस ने समर्थन दिया था.
2019 के चुनावों के दौरान चंद्रबाबू नायडू ने भी बीजेपी के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश की थी नतीजों से पहले नायडू की कोशिश थी कि अगर आंकड़े भाजपा के पक्ष में नहीं आते हैं और विपक्ष की सरकार बना पाने की कोई संभावना जगती है, तो विपक्ष के सहयोगी दल पहले से तैयार हों. लेकिन बीजेपी की लहर ने विपक्षी एकजुटता के सपने को चकनाचूर कर दिया.
2024 से पहले फिर से विपक्ष को लामबंद करने की कोशिश हो रही है, ममता बनर्जी के मुताबिक अभी 3 साल का वक्त है लेकिन शुरुआत अभी से होनी चाहिए. अब देखना है कि 2024 में विपक्ष के इतिहास रचने का दीदी का दावा परवान चढ़ पाता है या नहीं.
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