मौसम की तरह करवट लेती है उत्तराखंड की सियासत, 2022 चुनाव में किसका होगा उद्धार?

आगामी वर्ष 2022 में चुनावी मौसम अपने अलग ही मिजाज में होगा. यूपी, उत्तराखंड और पंजाब के चुनावों पर हर किसी की निगाहें होगी. इनमें उत्तराखंड की सियासत किस ओर कटवट लेगी ये वाकई दिलचस्प है, क्योंकि यहां बीते 4 महीने में 3 सीएम बदल चुके हैं.

Written by - Pratyush Khare | Last Updated : Jul 30, 2021, 07:30 AM IST
  • 2022 में उत्तराखंड में किस तरफ करवट लेगी सियासत?
  • पहाड़ में कमल और पंजे के बीच झाड़ू मारने की तैयारी!
मौसम की तरह करवट लेती है उत्तराखंड की सियासत, 2022 चुनाव में किसका होगा उद्धार?

नई दिल्ली: उत्तराखंड के पहाड़ों में मौसम जितनी बार बदलता है, उससे ज्यादा बार यहां की सियासत करवट ले लेती है. 21 साल में आधा दर्जन से ज्यादा बार सूबे ने अपना मुखिया बदलता देख लिया है. अब 6 महीने बाद यहां चुनाव होने वाले हैं, जाहिर है उत्तराखंड की खूबसूरत और ठंडी वादियों में राजनीतिक तपिश भी बढ़नी शुरू हो गई है.

BJP ने की जातीय समीकरण साधने की कोशिश

उत्तराखंड में 4 महीने में बीजेपी ने 3 सीएम बदल दिए, इसे लेकर विपक्ष ने जहां बीजेपी पर निशाना साधा वहीं सोशल मीडिया पर भी ये सुर्खियों में रहा. लेकिन इसके पीछे 2022 के लिए बीजेपी की सोची समझी रणनीति है. जिसके जरिए वो जातीय और क्षेत्रीय समीकरण साधना चाहती है. उत्तराखंड में भी जातीय समीकरण का रोल काफी अहम है.

उत्तराखंड में ठाकुर वोट सबसे ज्यादा है, करीब 35 फीसदी वोटर इस समुदाय से आते हैं. उसके बाद ब्राह्मण वोट है, जो करीब 25 फीसदी तक है. इन दोनों ही जातियों को नाराज करने का जोखिम कोई भी राजनीतिक दल नहीं उठाना चाहता.

बीजेपी ने भी चुनाव से पहले जातीय बैलेंस बरकरार रखने की कोशिश की है इसलिए बंशीधर भगत की जगह मदन कौशिक को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया. हरिद्वार विधायक मदन कौशिक ब्राम्हण चेहरा हैं, यानी ब्राह्मण की जगह ब्राह्मण को ही प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी गई. पार्टी को जातीय समीकरण साधने के लिए ब्राह्मण के साथ राजपूत चेहरे की भी जरूरत थी. इसलिए ठाकुर सीएम रावत की जगह पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाया गया.

गढ़वाल और कुमाऊं में संतुलन से जीत का रास्ता

उत्तराखंड 2 मंडल और 13 जिलों में फैला है, इस पर्वतीय प्रदेश में राज करने के लिए यहां संतुलन बैठाना सियासत की पहली शर्त माना जाता है. सत्ता में कोई भी पार्टी हो कुमाऊं और गढ़वाल मंडल से प्रतिनिधित्व बराबर रखना ही पड़ता है. जाति के साथ क्षेत्रीय संतुलन बनाना भी बीजेपी के लिए जरूरी था.

बीजेपी के लिए कुमाऊं कमजोर कड़ी माना जाता है. गढ़वाल में बीजेपी की जो पकड़ है, वह कुमाऊं में नहीं है. बीजेपी अब तक गढ़वाल को ही ज्यादा तवज्जो देती रही है, जब त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाकर तीरथ सिंह रावत को सीएम बनाया गया उस वक्त भी कुमाऊं रीजन में बीजेपी के फैसले को लेकर नाराजगी थी.

गढ़वाल मंडल से ही मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष होने के कारण पार्टी दोनों मंडलों में संतुलन कायम नहीं कर पा रही थी. ऐसे में कुमाऊं के सीमांत से पुष्कर धामी को सीएम का चेहरा घोषित कर संतुलन बनाने की कोशिश की गई है.

CM बदलने से BJP की गुटबाजी खत्म हो गई?

जब से उत्तराखंड अपने अस्तित्व में आया है, तब से यहां सिर्फ मुख्यमंत्री बदले जा रहे हैं. बीजेपी हो या कांग्रेस, दोनों दलों ने एक परंपरा बना दी है कि 5 साल तक कोई भी मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं करेगा. 2002 से 2007 तक एनडी तिवारी को छोड़कर कोई भी 5 साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया, हालांकि कांग्रेस ने भी 2013 में सीएम बहुगुणा को हटाकर हरीश रावत को सीएम बनाया था.

लेकिन सबसे ज्यादा 6 बार बीजेपी ने सीएम बदला है. पिछले 4 महीने में सूबे में 3 सीएम बदल कर बीजेपी ने तो रिकॉर्ड ही बना दिया. 2017 में बहुमत के साथ बीजेपी ने त्रिवेंद्र सिंह रावत को सीएम बनाया लेकिन त्रिवेंद्र के 4 साल के कार्यकाल के बाद पार्टी हाईकमान ने उन्हें सीएम पद छोड़ने को कह दिया.

त्रिवेंद्र सिंह रावत से पार्टी के कई विधायक नाराज थे और उन्हें हटाए जाने की मांग कर रहे थे. त्रिवेंद्र की जगह  तीरथ सिंह रावत को सूबे की कमान सौंप दी गई, मगर उनके एक के बाद एक विवादास्पद बयानों ने सरकार की अच्छी खासी किरकिरी करवा दी. पार्टी ने भी बिना देर किए तीरथ को हटा कर पुष्कर सिंह धामी को सीएम की कुर्सी सौंप दी, लेकिन हकीकत ये है कि अब भी पार्टी के अंदर बड़ा खेमा नाराज है.

कांग्रेस से भाजपा में आए सतपाल महाराज के अलावा बीजेपी के कई नेता भी कम अनुभवी पुष्कर सिंह धामी के मुख्यमंत्री बनने से नाराज दिख रहे हैं. भगत सिंह कोश्यारी खेमे से जुड़े पुष्कर सिंह धामी के मुख्यमंत्री बनने से बीसी खंडूड़ी से जुड़ा खेमा नाराज है. यही नहीं डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक खेमे को साथ लेकर चलना भी पुष्कर सिंह धामी के लिए बड़ी चुनौती है. चुनाव में महज 6 महीने का वक्त बचा है, ऐसे में धामी चाहते हुए भी ज्यादा कुछ नहीं कर सकते हैं. वो कुछ महीनों के लिए नाइट वॉचमैन की तरह ही हैं.

किसान आंदोलन की तपिश, BJP का 60+ का दावा

उत्तराखंड के बीजेपी का दावा है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में फिर से अच्छे बहुमत से जीतेगी और 60 से अधिक सीटें लाएगी. एक तरफ संयुक्त किसान मोर्चा के साथ मिल कर कांग्रेस राज्य में किसान आंदोलन को धार देने में जुटी है, तो वहीं बीजेपी ने इसे बेअसर करने के लिए रणनीति बनाई है.

मदन कौशिक को प्रदेश अध्यक्ष और धामी को सीएम बनाने के पीछे पहाड़ और मैदान में बैलेंस बनाकर विधानसभा की 19 सीटों को साधने के अलावा किसान आंदोलन की तपिश थामने की रणनीति भी है. 2017 के  विधानसभा चुनाव में तराई में बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 9 सीटों में 8 पर कब्जा जमाया था, लेकिन अब किसान आंदोलन की वजह से तराई में बीजेपी के लिए अपने गढ़ को बचाना बड़ी चुनौती है.

ऊधमसिंहनगर जिले में बहुसंख्यक सिख समुदाय के साथ ही किसानों में भी पार्टी के खिलाफ काफी नाराजगी है. ऐसे में बीजेपी तराई से ही धामी के चेहरे को आगे रख कर डैमेज कंट्रोल की कोशिश में जुटी है.

पुष्कर सिंह धामी साध पाएंगे युवा वोट?

चुनाव से पहले तीरथ सिंह रावत की जगह सीएम बनाए गए 45 साल के पुष्कर सिंह धामी के जरिए बीजेपी का टारगेट युवा मतदाताओं को अपने पाले में लाना है. उत्तराखंड में करीब 57 प्रतिशत मतदाता युवा मतदाता हैं, जिनकी उम्र 18 से 45 साल के बीच है.

यानी ये युवा मतदाता चुनाव में निर्णायक भूमिका हैं. लिहाजा 2022 के चुनाव के लिए पार्टी ने युवा चेहरे के साथ युवाओं को साधने की मुहिम शुरू की है. मुख्यमंत्री धामी ने कैबिनेट की पहली ही बैठक में 22 हजार से ज्यादा खाली पदों को भरने का निर्णय लिया ताकि युवाओं के सहारे 2022 की सियासी नैया पार लग सके.

2017 में बीजेपी बिना किसी चेहरे के चुनावी मैदान में उतरी थी जिसका फायदा उसे मिला, लेकिन उससे पहले 2012 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 'खंडूड़ी है जरूरी' का नारा देकर अनुभवी और बुजुर्ग राजनेता को चुनावी चेहरा बनाया था, लेकिन वह कामयाब नहीं हो पाई थी. इस बार युवा कार्ड खेलकर बीजेपी एक बड़े वोटबैंक को साधना चाहती है    

कांग्रेस का उत्तराखंड में पंजाब वाला प्लान

उत्तराखंड में 2022 के विधानसभा चुनावों की रणनीति के तौर पर कांग्रेस ने अपनी नई टीम तैयार की है, जिसमें अधिकांश चेहरे तो पुराने ही हैं लेकिन भूमिकाएं नई होंगी. दरअसल कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव को देखते हुए उत्तराखंड में भी 4 कार्यकारी अध्यक्ष वाला पंजाब का फॉर्मूला अपनाया है.

इस बदलाव का गणित जातीय समीकरणों को साधने से लेकर हर खेमे और हर दिग्गज को संतुष्ट करना समझा जा रहा है. प्रदेश कांग्रेस कमेटी में महत्वपूर्ण बदलाव किया गया है, प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल के अलावा अब जीत राम, भुवन कापरी, तिलकराज बेहर और रंजीत रावत वर्किंग प्रेसिडेंट के तौर पर दिखेंगे. पार्टी में गुटबाजी को रोकने की कवायद के लिए सभी दिग्गजों और उनके करीबियों की भूमिका तय की गई है.

पार्टी के सीनियर नेता हरीश रावत को चुनाव प्रचार की कमान दी गई है. इसके अलावा  कैंपेन कमेटी, समन्वय कमेटी, मैनिफेस्टो कमेटी और कोर कमेटी में राज्य सभा सदस्य प्रदीप टम्टा और दिनेश अग्रवाल प्रमुख भूमिका में होंगे. कोर कमेटी के अध्यक्ष कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव होंगे, जबकि पूर्व उत्तराखंड अध्यक्ष किशोर उपाध्याय समन्वय की जिम्मेदारी संभालेंगे. नवप्रभात को मैनिफेस्टो कमेटी का चेयरपर्सन बनाया गया है, तो पूर्व सांसद महेंद्र पाल को वाइस चेयरपर्सन..

सीएम चेहरे को लेकर कांग्रेस में घमासान

कांग्रेस में संगठन में ओहदों को लेकर भले ही पार्टी ने गुटबाजी को फिलहाल थामने की कोशिश की हो, लेकिन 2022 के लिए सीएम फेस को लेकर तकरार जारी है. उत्तराखंड में होने वाले विधानसभा चुनाव में हरीश रावत के सीएम चेहरा बनाने के नए प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल के बयान के बाद तकरार तेज हो गई है.

सीएम के लिए हरीश रावत का नाम सुनते ही नए नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह ने कह दिया कि पार्टी सामूहिक नेतृत्व में विधानसभा का चुनाव लड़ेगी. प्रीतम सिंह ने कहा कि कांग्रेस आलाकमान ने अभी कोई चेहरा घोषित ही नहीं किया है. ऐसे में इस पार्टी के प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव को साफ करना पड़ा कि चुनाव सामूहिक नेतृत्व में एकजुट होकर ही लड़ा जाएगा. सत्ता में आने पर चुने गए विधायक और पार्टी आलाकमान इस मुद्दे पर फैसला लेंगे.

AAP की बीजेपी की पिच पर खेलने की तैयारी

बीजेपी और कांग्रेस के अलावा उत्तराखंड में केजरीवाल की आम आदमी पार्टी भी चुनावी ताल ठोक रही है. आम आदमी पार्टी बीजेपी को उसके ही पिच पर खेल कर मात देने की तैयारी कर रही है. पार्टी उत्तराखंड चुनाव में राष्ट्रवाद के मुद्दे को हवा देने जा रही है. हाल ही में दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने इसके संकेत भी दे दिए हैं.

जब एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि उत्तराखंड का अगला मुख्यमंत्री कौन हो, भ्रष्ट नेता या देशभक्त फौजी? पार्टी रिटायर्ड कर्नल कोठियाल के चेहरे पर उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है और यह माना जा रहा है कि जल्दी ही इसका औपचारिक ऐलान भी हो सकता है. कर्नल अजय कोठियाल हाल ही में आम आदमी पार्टी में शामिल हुए हैं.

AAP का बिजली कार्ड बनेगा जीत की गारंटी?

आम आदमी पार्टी ने 2022 के चुनाव से पहले सूबे के लिए दिल्ली वाला बिजली का कार्ड खेल दिया है. सीएम अरविंद केजरीवाल की तरफ से हर परिवार के लिए 300 यूनिट मुफ्त बिजली मुहैया कराने का ऐलान कर दिया गया है. अपने इस वादे के दम पर पार्टी ने बड़े स्तर पर जनसंपर्क अभियान भी शुरू कर दिया है.

इसके जरिए उत्तराखंड की सभी 70 विधानसभाओं को कवर किया जा रहा है जहां हर किसी को मुफ्त बिजली वाला गारंटी कार्ड दिया जा रहा है. लोगों को बांटे जा रहे इस कार्ड में यह गारंटी दी जा रही है कि उत्तराखंड में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद हर परिवार को 300 यूनिट बिजली फ्री दी जाएगी.

15 अगस्त को आम आदमी पार्टी का यह कैंपेन खत्म होगा और उसका दावा है कि तब तक वह राज्य के सभी 17000 गांव तक अपनी पहुंच बनाने में कामयाब हो जाएगी.

अब देखना है कि आप उत्तराखंड में कांग्रेस और बीजेपी की कितनी सीटों पर झाड़ू मार पाती है. 5 साल पहले 70 में से 57 सीटें जीतने वाली बीजेपी फिर से पहाड़ पर कमल खिलाने के लिए हर सियासी दांव चल रही है, तो वहीं कांग्रेस पंजे की पकड़ मजबूत करने में जुटी है. यानी शांत से दिखने वाले उत्तराखंड की सियासी फिजा में आनेवाले 6 महीनों में अभी कई हलचल देखने को मिलने वाली है.

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