UP Election 2022 में क्या है छोटे दलों की अहमियत, क्या इनसे सीएम कुर्सी तक पहुंचेगी 'साइकिल'

 UP Election 2022: मुस्लिम-यादव समीकरण के जरिए सपा कई बार सत्ता के सिंहासन तक पहुंचती रही है. यूपी में मुस्लिम करीब 20 फीसदी तो यादव 10 फीसदी हैं. दोनो को जोड़ दें तो ये वोटबैंक 30 फीसदी होता है. यही समाजवादी पार्टी की ताकत रही है. यूपी में समाजवादी पार्टी को मुसलमानों को पहली पसंद माना जाता है. 

Written by - Pratyush Khare | Last Updated : Jul 28, 2021, 11:20 AM IST
  • मुस्लिम-यादव समीकरण के जरिए सपा कई बार सत्ता तक पहुंचती रही है
  • 2017 में सपा को उम्मीद के मुताबिक मुसलमानों का वोट नहीं मिल पाया
UP Election 2022 में क्या है छोटे दलों की अहमियत, क्या इनसे सीएम कुर्सी तक पहुंचेगी 'साइकिल'

लखनऊः  UP Election 2022: उत्तर प्रदेश में सियासी संग्राम को लेकर हलचल दिखाई पड़ने लगी है. दलों में आपसी सियासी जोड़-तोड़ का जोर दिखाई देने लगा है. इसी बीच सपा मुखिया अखिलेश यादव की बातें अपनी ओर ध्यान खींचती हैं. अभी हाल ही में उन्होंने छोटे दलों पर भरोसा जताया है.

अखिलेश ने कहा है कि अगर छोटे दलों को साथ लूंगा तो उन्हें सीटें कम देनी पड़ेंगी, बड़े दल सीटें ज्यादा मांगते हैं और हारते ज्यादा हैं. छोटे दलों से गठबंधन कर अखिलेश यादव बड़ी जीत का दावा कर रहे हैं. उनका दावा है कि सपा गठबंधन के सहयोगियों के साथ 350 सीटें जीतने जा रही है. उत्तर प्रदेश के सियासी समीकरण को अखिलेश इस बार किस तरह देख रहे हैं और उनकी असल अहमियत क्या है, इन सारे तथ्यों-तर्कों पर डालते हैं एक नजर-

इस बार MYD समीकरण पर जोर
मुस्लिम-यादव समीकरण के जरिए सपा कई बार सत्ता के सिंहासन तक पहुंचती रही है. यूपी में मुस्लिम करीब 20 फीसदी तो यादव 10 फीसदी हैं. दोनो को जोड़ दें तो ये वोटबैंक 30 फीसदी होता है. यही समाजवादी पार्टी की ताकत रही है. यूपी में समाजवादी पार्टी को मुसलमानों को पहली पसंद माना जाता है. यूपी की कुल 403 विधानसभा सीटों में से 143 सीटें मुस्लिम प्रभावित मानी जाती हैं. इनमें से 70 सीटों पर मुस्लिम आबादी 20 से 30 फीसदी के बीच है. 73 सीटें ऐसी हैं, जहां मुसलमान 30 फीसदी से ज्यादा हैं. 

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ओवैसी भी सपा के लिए एक बड़ी चुनौती
2017 में सपा को उम्मीद के मुताबिक मुसलमानों का वोट नहीं मिल पाया, सपा ने 57 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे जिसमें से महज 17 मुस्लिम विधायक ही चुन कर आए जबकि 2012 विधानसभा चुनावों में कुल 68 मुस्लिम विधायक चुनकर आये थे, जो कि अभी तक का रिकॉर्ड था. इसमें सपा के 43 मुस्लिम विधायक थे. दरअसल इसकी वजह मुस्लिम वोट बैंक का बसपा और कांग्रेस में बिखराव था.

वहीं मुस्लिमों को साधने के लिए कांग्रेस लगातार सपा पर हमलावर है वो सपा और बीजेपी के बीच गुप्त सांठ-गांठ का आरोप लगा रही है सपा के तेज तर्रार मुस्लिम चेहरा रहे आजम खान को डिफेंड न करने को लेकर भी कांग्रेस सपा पर मुस्लिमों की अनदेखी का आरोप लगा रही है. इस बार बिहार में 5 सीटें जीतकर आरजेडी का खेल बिगाड़ने वाले ओवैसी भी सपा के लिए एक बड़ी चुनौती है इसलिए मुस्लिम वोट बैंक को फिर से एकजुट करने के लिए अखिलेश यादव ने अबु आजमी को मोर्चे पर लगाया है.

दलित भी सपा के टारगेट पर
सपा के MY फॉर्मूले में D फैक्टर यानी दलित भी टारगेट पर है 2012 के बाद से बसपा का ग्राफ नीचे गिरना शुरू हुआ. 2017 के चुनाव में बसपा ने सबसे निराशाजनक प्रदर्शन किया था. अखिलेश यादव की अंबेडकर जयंती पर  'दलित दिवाली' मनाने की अपील और फिर 'बाबा साहेब वाहिनी' बनाने का ऐलान इसी वोट बैंक को अपने पाले में लाने की कवायद है.

यूपी में 22 फीसदी दलित वोट है जिसमें 12 फीसदी जाटव बीएसपी का कोर वोटर है जबकि 10 फीसदी गैर जाटव है जो पिछली बार बीजेपी की तरफ गया था, लेकिन ये वोट बैंक एक जगह स्थिर नहीं रहता इसलिए बाकी दलों की तरह सपा की नजर भी इस खास वोट बैंक पर है.

गैर यादव वोटबैंक पर खास फोकस
यूपी में 10 फीसदी यादव वोट बैंक को छोड़ दें तो 30 फीसदी से ज्यादा गैर यादव वोट हैं. इसे साथ जोड़ने की कोशिश सभी दल कर रहे हैं. 2007 में ये वोट बैंक मायावती के साथ तो 2012 में अखिलेश को जिताने में इस वोट बैंक ने पूरा साथ दिया था, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव के समय से इस वोटबैंक पर बीजेपी ने कब्जा कर लिया.

2014 में बीजेपी को 60 फीसदी गैर यादव ओबीसी ने वोट दिया था. इसके अलावा इन्हें कुर्मी और मौर्य समुदाय के 53 फीसदी वोट मिले थे, जबकि सपा-बसपा के खाते में महज 11 से 13 फीसदी वोट ही आए. साल 2017 में बीजेपी को 60 फीसदी वोट पिछड़ों को मिला.

पिछड़ी जातियों में पैठ बनाने में जुटे अखिलेश
अखिलेश पिछड़ी जातियों में पैठ बनाने की कोशिश में जुटे हैं. पिछड़ी जातियों में निषादों की तादाद 4.34 प्रतिशत है. निषाद समुदाय की यूपी की 150 विधानसभा सीटों पर संख्या के लिहाज से अच्छी खासी मौजूदगी है. सपा निषादों को लुभाने के लिए कई जतन कर रही है. पार्टी ने अपने एमएलसी राजपाल कश्यप को पार्टी के पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ की जिम्मेदारी सौंपी है. कोविड के बाद अखिलेश यादव ने अपनी पहली यात्रा की शुरुआत निषाद समाज के बीच उन्नाव से की है.

नरेश उत्तम पटेल पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष
अखिलेश यादव ने नरेश उत्तम पटेल जो कि ओबीसी समाज से आते हैं उन्हें पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौपी है. ओबीसी समाज से ही आनेवाली लीलावती कुशवाहा को यूपी महिला सभा का अध्यक्ष बनाया. यूपी में सपा ने संजय चौहान की जनवादी पार्टी और केशव देव मौर्य के महान दल से गठबंधन किया है.

महान दल का यूपी में सियासी आधार बरेली, बदायूं, शाहजहांपुर, पीलीभीत, आगरा, बिजनौर और मुरादाबाद इलाके के शाक्य, सैनी, कुशवाहा, मौर्य, कम्बोज, भगत, महतो, मुराव, भुजबल और गहलोत समुदाय के बीच है. जिनकी सूबे में करीब 6 फीसदी आबादी है.

संजय चौहान की जनवादी पार्टी की लोनिया समुदाय के बीच अच्छी पकड़ है, क्योंकि वो खुद भी इसी जाति से आते हैं. जनवादी पार्टी का सियासी आधार पूर्वांचल के कुछ जिलों में है. यूपी के मऊ, आजमगढ़, गाजीपुर, चंदौली, देवरिया सहित तमाम जिले हैं, जहां लोनिया समाज के वोट काफी अहम भूमिका अदा करते हैं.

सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर सपा 
यूपी की राजनीति में ब्राह्मणों का वर्चस्व हमेशा से रहा है. आबादी के लिहाज से सूबे में लगभग 12 % ब्राह्मण हैं. कई विधानसभा सीटों पर ब्राह्मण 20 फीसदी से भी अधिक हैं. ऐसे में हर पार्टी की नजर इस वोट बैंक पर टिकी है. सपा - बसपा में तो जबरदस्त होड़ मची है मायावती जहां ब्राह्मण सम्मेलन बुला रही हैं वहीं अखिलेश यादव भी इस वोट बैंक को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं.

इसके लिए पार्टी ने भगवान परशुराम का सहारा लिया है. सपा ने लखनऊ में 108 फुट की विशाल मूर्ति स्थापित करने का ऐलान किया है. इसे लेकर मायावती ने कहा कि उनकी सरकार आने पर वो इससे भी ऊंची मूर्ति बनवाएंगी. जवाब में समाजवादी पार्टी के नेता पवन पांडे का कहना है कि ‘तिलक तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार’ का नारा देने वाली पार्टी की बहन जी को आज ब्राह्मणों की याद आ रही है,

वो ब्राह्मणों के सम्मान की बात कर रही हैं, लेकिन परशुराम के वंशजो ने मन बना लिया है कि अब कृष्ण के वंशजों के साथ रहेंगे.

ब्राह्मण उम्मीदवारों को टिकट दे सकती है पार्टी
सपा में ब्राह्मणों की भागीदारी की बात करें तो 1993 में 2 विधायक, 1996 में 3, 2002 में 10 विधायक, 2007 में 11 और 2012 में सबसे अधिक 21 ब्राह्मण चेहरे जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. 2017 में भी सपा ने 10% ब्राह्मणों को टिकट दिया था. इस बार पार्टी अच्छी संख्या में ब्राह्मण उम्मीदवारों को टिकट दे सकती है.

हिंदू वोट बैंक खासकर सवर्णों में बीजेपी की पैठ को देखते हुए अखिलेश भी इस बार मंदिर और प्रतीकों की राजनीति करने को मजबूर हो चुके हैं. अयोध्या और चित्रकूट की यात्रा और मंदिर और मठों में  शीश झुकाकर 2022 के चुनाव से पहले अखिलेश पार्टी को उसकी मुस्लिम छवि से बाहर निकालना चाहते हैं.

2022 में चाचा भतीजा आएंगे साथ ?
2017 में अखिलेश की हार की एक वजह परिवार की लड़ाई भी थी. भले पार्टी की बागडोर अखिलेश के पास थी, लेकिन शिवपाल मुलायम के अजीज बने रहे, मुलायम ने कई मौकों पर गवर्नेंस को लेकर अखिलेश सरकार की क्लास भी लगाई. शिवपाल के अलग होने से पार्टी के यादव वोट बैंक में भी बंटवारा हो गया जिसका खामियाजा भी अखिलेश को 2017 और 2019 के चुनाव में उठाना पड़ा. हालाकि यूपी चुनाव से पहले सियासी गलियारों में एक बार फिर चर्चा है कि अखिलेश यादव और शिवपाल यादव साथ आ सकते हैं.

प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के मुखिया शिवपाल ने एक बार फिर संकेत दिए हैं कि सैफई परिवार में सुलह हो सकती है. शिवपाल ने कहा, 'चाचा का आशीर्वाद भतीजे को मिलेगा, इंतजार कीजिए.' शिवपाल ने यह भी कहा कि अभी बहुत समय है, सब कुछ सामने आएगा. अब देखना है कि 5 साल से अलग चाचा-भतीजा 2022 में साथ आएंगे या नहीं ?

पंचायत चुनाव में प्रदर्शन से हौसला बढ़ा
उत्तर प्रदेश में जिला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव में बीजेपी ने अपना परचम लहराया. पार्टी के 21 प्रत्याशी पहले ही निर्विरोध जीत चुके थे 53 पदों पर मतदान के बाद भारतीय जनता पार्टी ने कुल 75 में 67 पर कब्जा कर विपक्ष का मैदान समेट दिया. लेकिन मई महीने में आए जिला पंचायत सदस्यों के चुनाव परिणाम ने सपा खेमे में संजीवनी का काम किया.

यूपी के 75 जिलों में कुल 3050 सीटों पर हुए चुनाव में समाजवादी पार्टी के खाते में 750 से ज्यादा सीटे आई थी. सपा बीजेपी को पीछे छोड़ते हुए लखनऊ में 9 वाराणसी में 15 और अयोध्या में 25 सीटें जीतने में कामयाब रही. बीजेपी जहां जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव में अपनी जीत पर दम भर रही है तो वहीं सपा जिला पंचायत सदस्यों के आए परिणाम में मिली कामयाबी को 2022 के लिए सपा के पक्ष में बह रही हवा बता रही है.

 
आरएलडी के बाद आप से भी गठबंधन को तैयार
2022 चुनाव के लिए सपा ने आरएलडी से भी गठबंधन किया है आरएलडी का कोर वोटबैंक जाट समुदाय  है. जिसकी यूपी में करीब 4 फीसदी आबादी है जबकि पश्चिम यूपी में सबसे ज्यादा 17 फीसदी के आसपास है. जाट समुदाय सहारनपुर, मेरठ और अलीगढ़ मंडल जिले की करीब चार दर्जन विधानसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका अदा करता है.

इसके अलावा दो दर्जन सीटों पर सीधे जीत हार तय करता है सपा कृषि कानून को लेकर किसानों की बीजेपी से नाराजगी का फायदा उठाना चाहती है इसके अलावा केजरीवाल की आम आदमी पार्टी से भी सपा हाथ मिला सकती है हाल ही में  आम आदमी पार्टी के सांसद और यूपी प्रभारी संजय सिंह से सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की मुलाकात हुई है. माना जा रहा है कि दिल्ली से जुड़े यूपी के विधानसभा क्षेत्र और संजय सिंह के गृह जनपद में सपा कुछ सीटें आप के लिए छोड़ सकती है .

सोच-समझकर कदम बढ़ा रहे हैं अखिलेश
मुलायम सिंह की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने और पार्टी का सियासी रसूख कायम रखने की बड़ी जिम्मेदारी अखिलेश यादव के कंधों पर है 2017 में सत्ता से बेदखल होने के बाद 2019 में महज 5 सीटों पर सिमट चुकी समाजवादी पार्टी में जान फूंकने के लिए अखिलेश 2022 की रेस हर हाल में जीतना चाहते हैं लेकिन अखिलेश के सामने अपने कोर वोटबैंक को एकजुट रखने के साथ ही नए और छिटके हुए वोट बैंक को साधने की एक बड़ी चुनौती है इसलिए 2017 में मिली हार के बाद वो हर कदम बहुत सोच समझकर कर बढ़ा रहे हैं

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