कौन होते हैं अहमदिया मुस्लिम जिन्हें आंध्र वक्फ बोर्ड और जमीयत ने बताया काफिर?

जमीयत ने कहा कि इस्लाम धर्म की बुनियाद दो महत्वपूर्ण मान्यताओं पर है जो एक अल्लाह को मानना और पैगंबर मोहम्मद को अल्लाह का रसूल और अंतिम नबी मानना है. बयान में कहा गया है कि यह दोनों आस्थाएं इस्लाम के पांच बुनियादी स्तंभों में भी शामिल हैं. संगठन ने कहा कि इन इस्लामी मान्यताओं के विपरीत मिर्जा गुलाम अहमद ने एक ऐसा दृष्टिकोण अपनाया जो पैगम्बरवाद के अंत की अवधारणा के पूरी तरह से विरुद्ध है. 

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jul 25, 2023, 09:54 PM IST
  • क्यों अहमदिया को माना जाता है अलग?
  • जमीयत ने भी किया आंध्र वक्फ का समर्थन.
कौन होते हैं अहमदिया मुस्लिम जिन्हें आंध्र वक्फ बोर्ड और जमीयत ने बताया काफिर?

नई दिल्ली. प्रमुख मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद (एमएम समूह) ने अहमदिया समुदाय को गैर-मुस्लिम बताने वाले आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड के रुख का समर्थन करते हुए मंगलवार को दावा किया कि यह सभी मुसलमानों का 'सर्वसम्मत रुख' है. दरअसल, आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड ने एक प्रस्ताव पारित कर अहमदिया समुदाय को ‘काफिर’ (ऐसा व्यक्ति जो इस्लाम का अनुयायी न हो) और गैर मुस्लिम बताया था जिसके बाद अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय ने आंध्र प्रदेश सरकार को भेजे पत्र में वक्फ बोर्ड के प्रस्ताव को ‘नफरती अभियान’ बताया था जिसका असर पूरे देश में पड़ सकता है.

आंध्र प्रदेश के मुख्य सचिव केएस जवाहर रेड्डी को भेजे पत्र में यह भी कहा गया था कि 20 जुलाई को अहमदिया समुदाय से एक पत्र मिला है जिसमें कहा गया है कि कुछ वक्फ बोर्ड अहमदिया समुदाय का विरोध कर रहे हैं और समुदाय को इस्लाम से बाहर का घोषित करने के लिए अवैध प्रस्ताव पारित कर रह रहे हैं. रेड्डी को भेज पत्र में मंत्रालय ने कहा था कि वक्फ बोर्ड के पास अहमदिया सहित किसी भी समुदाय की धार्मिक पहचान निर्धारित करने का न तो अधिकार क्षेत्र है और न ही अधिकार है.

जमीयत ने खत में क्या कहा?
जमीयत ने एक बयान में आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड द्वारा अहमदिया समुदाय के संबंध में अपनाए गए दृष्टिकोण को सही ठहराते हुए कहा है कि ‘यह समस्त मुस्लिमों की सर्वसम्मत राय है.’ बयान में कहा गया है, 'इस संबंध में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी की अलग राय और उनका अलग रुख अनुचित और अतार्किक है, क्योंकि वक्फ बोर्ड की स्थापना मुसलमानों की वक्फ संपत्तियों और उनके हितों के संरक्षण के लिए की गई है, जैसा कि वक्फ अधिनियम में लिखा गया है.' 

संगठन ने कहा, 'इसलिए जो समुदाय मुसलमान नहीं हैं, उसकी संपत्तियां और इबादत के स्थान इसके दायरे में नहीं आते हैं.' मुस्लिम संगठन ने कहा, ‘इसके मद्देनजर 2009 में आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड ने जमीयत उलेमा आंध्र प्रदेश की अपील पर यह दृष्टिकोण अपनाया था. वक्फ बोर्ड ने 23 फरवरी के अपने बयान में उसी दृष्टिकोण को दोहराया है. 

क्यों अहमदिया समुदाय को मुस्लिम नहीं मान रही जमीयत?
जमीयत ने कहा कि इस्लाम धर्म की बुनियाद दो महत्वपूर्ण मान्यताओं पर है जो एक अल्लाह को मानना और पैगंबर मोहम्मद को अल्लाह का रसूल और अंतिम नबी मानना है. बयान में कहा गया है कि यह दोनों आस्थाएं इस्लाम के पांच बुनियादी स्तंभों में भी शामिल हैं. संगठन ने कहा कि इन इस्लामी मान्यताओं के विपरीत मिर्जा गुलाम अहमद ने एक ऐसा दृष्टिकोण अपनाया जो पैगम्बरवाद के अंत की अवधारणा के पूरी तरह से विरुद्ध है तथा इस मौलिक और वास्तविक अंतर के मद्देनजर अहमदिया को इस्लाम के संप्रदायों में सम्मिलित करने का कोई आधार नहीं है और इस्लाम के सभी पंथ इस बात पर सहमत हैं कि यह गैर मुस्लिम समुदाय है.

जमीयत के मुताबिक, मुस्लिम वर्ल्ड लीग के छह से 10 अप्रैल 1974 को आयोजित सम्मेलन में सर्वसम्मति से अहमदिया समुदाय के संबंध में प्रस्ताव पारित कर घोषणा की गई थी कि इसका इस्लाम से संबंध नहीं है. इस सम्मेलन में 110 देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था। जमीयत ने अपनी दलील के पक्ष में विभिन्न अदालतों के फैसलों का भी हवाला दिया.

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