बर्मिंघम: 29 अगस्त 2025, एक लॉन्च विंडो खुलेगी. इस दौरान एक रॉकेट को अपने गंतव्य तक पहुंचने के लिए लॉन्च किया जाएगा. और वह गंतव्य होगा चांद. इस मिशन के जरिए 1972 के बाद मनुष्यों को पहली बार चंद्रमा पर ले जाया जाएगा. यदि सब कुछ ठीक रहा, तो 2025 में मानव को चंद्रमा पर दोबारा ले जाने के अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए आर्टेमिस परियोजना पटरी पर आ जाएगी. बर्मिंघम विश्वविद्यालय से जुड़े गैरेथ डोरियन ने यह बात कही है.
कैसे पड़ा मिशन का नाम
वैज्ञानिकों के मुताबिक आर्टेमिस अपोलो की बहन के नाम है और प्राचीन ग्रीक पौराणिक कथाओं के अनुसार यह ज़ीउस की बेटी है.
इस मिशन का मकसद
इस परियोजना को हमारे निकटतम आकाशीय पड़ोसी पर एक दीर्घकालिक मानव उपस्थिति स्थापित करने के लिए और अंततः और भी आगे की खोज करने के लिए डिज़ाइन किया गया है.
आर्टेमिस 1 कई मिशनों में से पहला है. इसमें नासा का नया सुपर-हैवी रॉकेट, स्पेस लॉन्च सिस्टम (एसएलएस) लगा है, जिसे पहले कभी लॉन्च नहीं किया गया है, और ओरियन मल्टी-पर्पस क्रू व्हीकल (या ओरियन एमपीसीवी), जो एक बार पहले भी अंतरिक्ष में उड़ान भर चुका है.
कैसे अलग है ये मिशन
अपोलो मिशन के कमांड सर्विस मॉड्यूल के विपरीत, जो हाइड्रोजन ईंधन कोशिकाओं द्वारा संचालित थे, ओरियन एमपीसीवी एक सौर-संचालित प्रणाली है. इसकी विशिष्ट एक्स-विंग शैली की सौर सरणियों को कठिन प्रक्रियाओं के दौरान यान पर दबाव को कम करने के लिए आगे या पीछे घुमाया जा सकता है.
खासियत
1. यह छह अंतरिक्ष यात्रियों को 21 दिनों तक अंतरिक्ष में ले जाने में सक्षम है.
2. बिना चालक दल के आर्टेमिस 1 मिशन, 42 दिनों तक चल सकता है.
3. आर्टेमिस एक अंतरराष्ट्रीय परियोजना है.
4. ओरियन एमपीसीवी में अंतरिक्ष यात्रियों के लिए एक अमेरिका-निर्मित कैप्सूल और ईंधन, पानी, वायु, सौर-सरणियों और रॉकेट थ्रस्टर्स की आपूर्ति के लिए एक यूरोपीय-निर्मित सर्विस मॉड्यूल शामिल है.
क्या है चुनौतियां
ऊर्जा के लिए सूर्य पर निर्भरता के कारण आर्टेमिस की लांच के समय को लेकर कुछ बातों का ध्यान रखना होगा क्योंकि उस समय पृथ्वी और चंद्रमा की स्थिति ऐसी चाहिए कि उड़ान के दौरान किसी भी बिंदु पर ओरियन अंतरिक्ष यान सूर्य से 90 मिनट से अधिक समय तक छाया में न रहे. एसएलएस ओरियन को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करेगा, जहां इसके मूल चरण को छोड़ दिया जाएगा - समुद्र में गिरा दिया जाएगा.
चंद्रमा के लिए एक अंतरिक्ष यान को उड़ाने के लिए आवश्यक अधिकांश ऊर्जा का उपयोग उड़ान के इस पहले चरण में किया जाता है, केवल पृथ्वी की निचली कक्षा तक पहुंचने के लिए. फिर ओरियन को पृथ्वी की कक्षा से बाहर धकेल दिया जाएगा और एसएलएस के दूसरे चरण, जिसे अंतरिम क्रायोजेनिक प्रणोदन चरण (आईसीपीएस) कहा जाता है, द्वारा चंद्र-बद्ध प्रक्षेपवक्र पर धकेल दिया जाएगा. ओरियन फिर आईसीपीएस से अलग हो जाएगा और अगले कई दिन चंद्रमा के छोर पर बिताएगा. प्रक्षेपण आम तौर पर किसी भी अंतरिक्ष यान के सबसे जोखिम भरे हिस्सों में से एक है, खासकर एक नए रॉकेट के लिए. यदि आर्टेमिस-1 सफलतापूर्वक पृथ्वी की कक्षा में पहुंच जाता है तो यह परियोजना के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर होगा.
10 मिनी सैटेलाइट करेगा लांच
मिशन के दौरान, ओरियन दस मिनी उपग्रहों को भी अंतरिक्ष में स्थापित करेगा जिन्हें क्यूबसैट के नाम से जाना जाता है. इनमें से एक, बायोसेंटिनल, में खमीर होगा जो यह देखने के लिए होगा कि चंद्रमा पर माइक्रोग्रैविटी और विकिरण वातावरण सूक्ष्मजीवों के विकास को कैसे प्रभावित करते हैं.
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