रमजान में रोजे रखने के अलावा भी कई ऐसे अमल हैं, जिसका ताकीद से पालन करना चाहिए ताकि रमजान और रोजे का मकसद और इसका फायदा मिल सके. ऐसे न करने से आप रमजान की फजीलत से महरूम हो जाते हैं.
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नई दिल्लीः सिर्फ सुबह से शाम तक खाने-पीने से परहेज करने का नाम रोजा नहीं है, बल्कि इसका मकसद रोजेदारों में तकवा पैदा करना होता है. उसे पाक परवरदीगार के करीब लाना है. रोजेदारों को अल्लाह का फरमाबरदार बंदा बनाना होता है. उसके अंदर हलाल और हराम की तमीज सिखाना और नेक रास्ते पर चलने की सीख देना होता है. रोजे का सबसे बड़ा मकसद अपने इंद्रियों पर नियंत्रण स्थापित करने का अभ्यास करना होता है. यानी रोजे का मकसद अपने नफ्स के मुताबिक चलने के बजाए अल्लाह और उसके दीन पर चलने का अभ्यास करना होता है.
बहुत से लोग रमजान के रोजे तो रखते हैं, लेकिन वह रमजान के दीगर नियमों का पालन नहीं करते हैं. रोजे रखकर वह सारे काम करते हैं, जिन्हें करने से उन्हें रोका गया है, और उनमें से कोई काम नहीं करते हैं, जिसे रोजे के दौरान करने की ताकीद की गई है.
उलेमा ऐसे रोजे को गाय या बकरी वाला रोजा करार देते हैं. मुफ्ती सलाहुद्दीन अंसारी कहते हैं, रोजा तभी मुकम्मल होगा जब उसे पूरे अदब और एहतराम के साथ पूरा किया जाए. वरना अगर दिन भर गाय-बकरी या किसी दूसरे जानवर को भी बांधकर भूखा-पयास रखा जाए, तो उसका भी रोजा हो जाएगा. राजेदारों को ऐसे रोजे से परहेज करनी चाहिए..
फिर सवाल उठाता है कि रोजे के दौरान ऐसा क्या करें, जिससे रोजे का पूरा मकसद और सवाब हासिल हो...
1. रोजे के दौरान नमाज पढ़ना जरूरी है. अल्लाह फरमाता है कि जिसने नमाज को तर्क किया गोया के उसने कुफ्र को इख्तियार किया... नमाज दीन का सुतून है.. इसके बिना कोई भी अमल मंजूर नहीं होता है.. ऐसे में बिना नमाज का एहतेमाम किए रोजा रखना बेकार है.
2. तरावीह की नमाज का एहतेमामः रमजान में दिन में रोजे रखने के अलावा रातों में तरावीह की नमाज का भी रोजेदारों को एहतमाम करना चाहिए.
3. रमजान के दिनों में रोतों में तहज्जुद की नमाजों का भी एहतेमाम करना चाहिए. एक हदीस है कि जिसने रमजान की रातों में सवाब की नियत से तहज्जुद की नमाज अदा की, अल्लाह उसके सारे पिछले गुनाह माफ कर देता है.
4. तिलावत कुरानः रमजान के दिनों में ज्यादा से ज्यादा कुरान की तिलावत और अल्लाह का जिक्र करना चाहिए. कुरान को समझकर पढ़ना चाहिए ताकि इसके संदेश को आत्मसात किया जा सके.
5. सदका और खैरातः रोजे के दौरान ज्यादा से ज्यादा सदका और खैरात करना चाहिए... अल्लाह तआला को रमजान में रोजे के दौरान अपने बंदे की सखावत यानी दानशीलता बेहद पसंद है.
6. दुआ की कसरतः रमजान में रोजे रखने के साथ कसरत से दुआ भी मांगनी चाहिए. अल्लाह फरमता है कि रोजे की हालत में और खास तौर से इफ्तार के पहले मांगी गई दुआ अल्लाह रद्द नहीं करता है. वह बंदे की दुआ कबूल फरमता है.
7. तौबा और इस्तगफारः रमजान रहमत और बरकत के साथ ही तौबा और इस्तगफार का महीना होता है. इसमें कसरत से तौबा और इस्तगफार करना चाहिए ताकि अल्लाह अपने बंदे के गलतियों और कोताहियों को माफ कर दे.
8. रोजे खुलवाना : रमजान में अपने से गरीब रोजेदारों, फकीरों, मिस्कीनों अभावग्रस्त लोगों को रोजे खुलवाने की भी बड़ी फजीलत बताई गई है. ऐसा करने से बेहिसाब सवाब हासिल होता है.
9. लैलतुल कदरः रमजान की ताक पांच रातों में शबे कदर की रात की तलाश करने और उसमें इबादत करने का भी बड़ा सवाब बताया गया है. इस एक रात की इबादत को हजार रातों की इबादत से बेहतर बताया गया है.
10. ऐतिकाफ रमजान की एक खास इबादत है, जिसमें दस दिनों तक दुनिया के मामूलात को छोड़कर अकेले में इबादत की जाती है. अगर किसी शख्स के लिए ये मुमकिन हो तो इसे जरूर करनी चाहिए.
11. फितरा अदा करनाः रमजान में हर मुसलमान पर फितरा की रकम अदा करना जरूरी होता है. ईद की नमाज के पहले इस रकम को गरीबों के बीच दान कर देना चाहिए.
12. जकात अदा करनाः अगर कोई शख्स या रोजेदार इतना अमीर है कि उसके घर में 7.5 तोला सोना और 52.5 तोला चांदी है... या खा-पीकर अपनी जरूरतें पूरी करने के बाद भी पैसे बचे हों तो उसका 2.5 प्रतिशत हिस्सा वह गरीबों में जकात अदा करें.
13. रमजान के महीने में उमरा करने का भी बड़ा सवाब बताया गया है. एक हदीस में है कि रमजान के माह में उमरा करना हज करने के बराबर माना जाता है.
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