Poetry: वतन की ख़ाक ज़रा एड़ियां रगड़ने दे, मुझे यक़ीन है पानी यहीं से निकलेगा
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Poetry: वतन की ख़ाक ज़रा एड़ियां रगड़ने दे, मुझे यक़ीन है पानी यहीं से निकलेगा

Independence Day Greetings: आज देशभर में आज़ादी का जश्न मनाया जा रहा है, इस मौके पर लोग एक दूसरे मुबारकबाद दे रहे हैं. ऐसे में हम आपके लिए कुछ उर्दू शेर लेकर आए हैं. 

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Urdu Poetry on Independence Day: आज पूरा हिंदुस्तान आज़ादी का जश्न मना रहा है. जगह-जगह तिरंगे फहराए जाएंगे. साथ ही एक दूसरे को मुबारकबाद भी पेश करेंगे. कोई आज़ादी के नारों से मुबारकबाद देगा तो कोई शेर लिखकर. अगर आप शेर के ज़रिए लोगों को 15 अगस्त यानी आज़ादी के मौके पर बधाई देना चाहते हैं तो फिर हम आपके लिए उर्दू शायरी के खज़ाने से कुछ चुनिंदा शेर लेकर आए हैं. इसमें हर तरह के शेर शामिल किए गए हैं. 

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हम ख़ून की क़िस्तें तो कई दे चुके लेकिन 
ऐ ख़ाक-ए-वतन क़र्ज़ अदा क्यूँ नहीं होता 


वतन की ख़ाक ज़रा एड़ियाँ रगड़ने दे 
मुझे यक़ीन है पानी यहीं से निकलेगा 


दिलों में हुब्ब-ए-वतन है अगर तो एक रहो 
निखारना ये चमन है अगर तो एक रहो 


इसी जगह इसी दिन तो हुआ था ये एलान 
अंधेरे हार गए ज़िंदाबाद हिन्दोस्तान


उस मुल्क की सरहद को कोई छू नहीं सकता 
जिस मुल्क की सरहद की निगहबान हैं आँखें 


क्या करिश्मा है मिरे जज़्बा-ए-आज़ादी का 
थी जो दीवार कभी अब है वो दर की सूरत 


ऐ ख़ाक-ए-वतन तुझ से मैं शर्मिंदा बहुत हूँ
महँगाई के मौसम में ये त्यौहार पड़ा है


ऐ वतन जब भी सर-ए-दश्त कोई फूल खिला
देख कर तेरे शहीदों की निशानी रोया


मैं ने जब पहले-पहल अपना वतन छोड़ा था
दूर तक मुझ को इक आवाज़ बुलाने आई

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