Lok Sabha Elections: राजनीतिक दलों के लिए मुस्लिम सिर्फ 'वोट बैंक'? जानें मुस्लिमों की हमदर्द पार्टियों का सच..
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Lok Sabha Elections: राजनीतिक दलों के लिए मुस्लिम सिर्फ 'वोट बैंक'? जानें मुस्लिमों की हमदर्द पार्टियों का सच..

Lok Sabha Elections 2024: लोकसभा चुनाव के दौरान हर पार्टी हिंदू-मुस्लिम की बात कर रही है.. क्योंकि राजनीतिक दलों को इनका वोट चाहिए है. हमारे देश के राजनीतिक दलों ने अपने अपने हिसाब से हिंदुओं और मुस्लिमों को दो हिस्सों में बांट रखा है.

Lok Sabha Elections: राजनीतिक दलों के लिए मुस्लिम सिर्फ 'वोट बैंक'? जानें मुस्लिमों की हमदर्द पार्टियों का सच..

Lok Sabha Elections 2024: लोकसभा चुनाव के दौरान हर पार्टी हिंदू-मुस्लिम की बात कर रही है.. क्योंकि राजनीतिक दलों को इनका वोट चाहिए है. हमारे देश के राजनीतिक दलों ने अपने अपने हिसाब से हिंदुओं और मुस्लिमों को दो हिस्सों में बांट रखा है. जैसे बीजेपी का जोर हिंदुत्व पर रहता है. और चुनाव में हिंदू वोट बड़ी संख्या में बीजेपी को मिलता भी है. बीजेपी के बड़े-बड़े नेताओं की रैलियों में हिंदुत्व शब्द बार-बार सुनाई देता है. ठीक उसी तरह से कुछ दल खुलकर मुस्लिमों की आवाज उठाते है. और कहते हैं कि देश के अल्पसंख्यकों के साथ कभी भी अन्याय नहीं होने देंगे. इसके अलावा कुछ दल ऐसे भी है जो हिंदू, मुस्लिम, या फिर अलग-अलग समाज की बात करते है. ताकि उन्हें उनका वोट मिले.

हमारा मकसद हिंदू मुस्लिम को अलग करके देखना नहीं है. हम सिर्फ आपको इस विश्लेषण के जरिए ये बताना चाहते हैं कि कैसे सियासी दल अपने फायदे के लिए हिंदुओं और मुसलमानों का इस्तेमाल करते हैं. हैदराबाद सीट पर इसबार शायद सबसे दिलचस्प लड़ाई है. इस सीट पर बीजेपी ने कट्टर हिंदुत्व का चेहरा माने जाने वाली माधवी लता को उतारा है. हैदराबाद सीट असदुद्दीन ओवैसी का गढ़ है. पिछले चार दशक से हैदराबाद सीट पर ओवैसी परिवार का कब्जा रहा है लेकिन इस बार माहौल कुछ अलग है.

माधवी लता को कट्टर हिंदुत्व का चेहरा माना जाता है, कहा जाता है कि असदुद्दीन ओवैसी को उनके गढ़ में हराना मुश्किल है इसलिए बीजेपी इस बार हिंदुत्व के चेहरे के रूप में माधवी को खोज कर लाई है. माधवी लता पेशे से एक डॉक्टर हैं और अपना अस्पताल भी चलाती हैं. इस बार उनके निशाने पर खुद को मुस्लिमों की आवाज बताने वाले असदुद्दीन ओवैसी हैं. दोनों को वोट चाहिए, इसलिए दोनों खूब हिंदू मुस्लिम कर रहे हैं.

हैदराबाद लोकसभा सीट पर शायद पहली बार इतनी टफ फाइट दिख रही है. जहां दो अलग अलग पार्टियों के कट्टर चेहरे आमने सामने हैं. ओवैसी इस सीट पर सबसे बड़ा चेहरा हैं. और इसकी गवाही खुद पुराने रिकॉर्ड देते हैं. वर्ष 2014 में असदुद्दीन ओवौसी की AIMIM ने 53 फीसदी वोटों के साथ जीत हासिल की जबकि 32 प्रतिशत वोट शेयर के साथ बीजेपी दूसरे नबर पर रही थी. वर्ष 2019 के चुनाव में ओवैसी का वोट शेयर बढ़कर 59 प्रतिशत हो गया मगर बीजेपी को 27 प्रतिशत वोटों से ही संतुष्ट होना पड़ा.

माधवी लता हों या ओवैसी दोनों हैदराबाद की किस्मत बदलने की बात कह रहे हैं. इसलिए दोनों, हिंदूओं और मुस्लिमों को साधने में लगे हैं. हर रैली में दोनों उम्मीदवार अपनी-अपनी सहूलियत के हिसाब से हिंदू मुस्लिमों की बात कर रहे हैं. हर पार्टी का अपना वोट बैंक होता है. जैसे समाजवादी पार्टी को यादव समाज के लोग खुलकर वोट करते हैं. उन्हें लगता है कि अखिलेश यादव उनकी आवाज उठाते हैं.

इसी तरह से AIMIM यानि असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी दावा करती है कि वो मुस्लिमों की आवाज उठाती है. कांग्रेस कहती है कि वो हिंदुओं और मुसलमान दोनों की आवाज़ उठाते हैं. आरजेडी बिहार में MY फैक्टर को आजमाती है. यानी आरजेडी की नजर मुस्लिम और यादव वोट पर रहती है. भारत की राजनीति में मुस्लिम मतदाताओं के वोटों को निर्णायक माना जाता है. धार्मिक आबादी के हिसाब से देश में मुस्लिम दूसरे नंबर पर आते हैं. इन वोटों की क्या अहमियत होती है इसे देश का हर सियासी दल समझता भी है.

कोई हंसाकर तो कोई डराकर मुस्लिमों के वोट लेना चाहता है. कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, टीएमसी, आरजेडी जैसे तमाम सियासी दलों को उम्मीद है कि मुस्लिम उनकी नाव को पार लगा सकते हैं. लेकिन जब इन पार्टियों का मुस्लिमों को टिकट देने का नंबर आता है तो सब शून्य हो जाते है.

- उत्तर प्रदेश में कांग्रेस ने अबतक सिर्फ 2 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया.
- इसी तरह समाजवादी पार्टी ने भी अभी तक यूपी में सिर्फ 2 मुस्लिमों को टिकट दिया.
- बहुजन समाज पार्टी ने अबतक 7 मुस्लिमों को टिकट दिया है.
- बिहार में कांग्रेस ने अबतक 2 मुस्लिम उम्मीदवारों को उतारा है.
- वहीं, आरजेडी ने 4 मुस्लिमों को अब तक टिकट दिया.

उत्तर प्रदेश में वर्ष 2014 में कांग्रेस ने 11, समाजवादी पार्टी ने 14 और बहुजन समाज पार्टी ने 19 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया था. वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 8 मुस्लिमों को टिकट दिया था. यूपी में वर्ष 2019 में बसपा और सपा ने मिलकर चुनाव लड़ा था. दोनों ने मिलकर 10 मुस्लिमों को टिकट दिया था. वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए अबतक बहुजन समाज पार्टी ने 7 मुस्लिमों को टिकट दिया है. इस बार सपा और कांग्रेस गठबंधन करके चुनाव लड़ रहे है, दोनों ने अबतक 6 मुस्लिमों को टिकट दिया है.

बीजेपी भी मुस्लिमों को टिकट देने की रेस में बहुत पीछे है. बीजेपी पिछले कई चुनाव में यूपी या बिहार में मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दे रही है. इस बार भी बीजेपी ने अभी तक सिर्फ 1 मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट दिया है. और विपक्ष इस बात पर ही बीजेपी को घेरता है. कुल मिलाकर सब मुसलमानों की बात तो करते हैं लेकिन टिकट देने के नाम पर सब आंख मूंद कर बैठ जाते है. कांग्रेस ने इस बार सहारनपुर से इमरान मसूद टिकट दिया है. कांग्रेस को इमरान मसूद से बहुत उम्मीदें हैं. इसलिए जीत के लिए इमरान मसूद हर वो हथकंडा आजमा रहे हैं, जिससे उन्हें मुस्लिमों का वोट मिल सके. मसूद ने एक चुनावी सभा में भड़ाकाऊ बात कही, मुस्लिमों को डराया. मसूद कह रहे हैं कि बीजेपी आ गई तो सबसे पहले इलाज तुम्हारा और मेरा होना है, याद रखना.

हमारे देश में मुस्लिमों की आबादी 20 करोड़ से ज्यादा है. हिंदुओं के बाद देश में मुस्लिम दूसरा सबसे बड़ा वोट बैंक है. इसलिए हर पार्टी मुस्लिमों पर डोरे डालती है. लोकसभा की 46 ऐसी सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका में हैं. 35 से 40 ऐसी लोकसभा सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटर की संख्या 35 प्रतिशत से 70 प्रतिशत तक है. कहा जाता है कि केंद्र का रास्ता यूपी से होकर जाता है, क्योंकि यूपी में 80 लोकसभा सीटे हैं. उत्तर प्रदेश की राजनीति में मुस्लिम आबादी विधानसभा में ही नहीं बल्कि लोकसभा चुनावों में भी हार-जीत का गणित तय करती है. यही वजह है कि कांग्रेस से लेकर सपा और बसपा ही नहीं बल्कि बीजेपी भी मुस्लिमों को अपने पाले में लेने की कोशिश कर रही है.

देश में मुस्लिमों की आबादी 16.51 फीसदी है तो यूपी में करीब 20 फीसदी मुसलमान यानि 3.84 करोड़ हैं. देश की किसी राज्य में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी अनुपात के हिसाब से असम, बंगाल केरल और यूपी में है. असम में 34 फीसदी, जम्मू-कश्मीर में 68 फीसदी, केरल में 26.6 फीसदी, बंगाल में 27 फीसदी है. बीजेपी ने जीत की हैट्रिक लगाने के लिए इस बार 400 पार का लक्ष्य रख रखा है. पीएम मोदी पूरे देश में रैलियां कर रहे है. हर वर्ग, हर समाज का वोट मांग रहे है. अपने वोट बैंक को और स्ट्रॉग करने के लिए बीजेपी अल्पसंख्यकों को साध रही है. बीजेपी ने देशभर में 64 ऐसी लोकसभा सीटों का चयन किया है, जहां मुस्लिम मतदाताओं की तादाद 35 प्रतिशत से ज्यादा है. मुस्लिम बहुल इन 64 लोकसभा सीटों में से सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में 14 लोकसभा सीट हैं.

दूसरे नंबर पर पश्चिम बंगाल है, जहां कि 13 लोकसभा सीटों को इसमें शामिल किया गया है. केरल की 8, असम की 7, जम्मू कश्मीर की 5, बिहार की 4, मध्य प्रदेश की 3 और दिल्ली, गोवा, हरियाणा, महाराष्ट्र और तेलंगाना की 2-2 लोकसभा सीट इस लिस्ट में शामिल हैं. बीजेपी की नज़र उन सीटों पर है जहां मुस्लिम अच्छी खासी तादात में है. लेकिन एक आम धारणा है कि बीजेपी को हराने के लिए देश का मुसलमान किसी भी दूसरे दल या शख्स को वोट दे सकता है, लेकिन बीजेपी को नहीं. लेकिन अब ये धारणा भी बदल गई है और इसकी वजह है बीजेपी की तरफ से उठाए गए कुछ कदम.. BJP ने तीन तलाक जैसी कुप्रथा को रोककर मुस्लिम महिलाओं के दिल में जगह बनाने की कोशिश की है. बोहरा और पसमांदा समुदाय के बीच पीएम ने खुद जाकर विश्वास जगाने की कोशिश की है. UCC को लेकर मुस्लिमों के डर को बीजेपी ने खत्म करने की कोशिश की है.

मुसलमानों का वोट हर किसी को चाहिए, बीजेपी को भी, कांग्रेस को भी या फिर बाकी सियासी दलों को भी...जैसा हमने विश्लेषण की शुरूआत में भी कहा था कि चुनाव के समय हिंदू-मुस्लिम राजनीतिक दलों का फेवरेट टॉपिक होता है...ऐसे में देखना है कि भविष्य की सियासत में मुस्लिम मतदाता किसके साथ खड़ा नजर आता है.

Lok Sabha Elections 2024: लोकसभा चुनाव के दौरान हर पार्टी हिंदू-मुस्लिम की बात कर रही है.. क्योंकि राजनीतिक दलों को इनका वोट चाहिए है. हमारे देश के राजनीतिक दलों ने अपने अपने हिसाब से हिंदुओं और मुस्लिमों को दो हिस्सों में बांट रखा है.

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