Camel Pose or Ushtrasana: उष्ट्रासन में शरीर ऊंट की आकृति बनाता है. इस आसन को अंग्रेजी में Ushtrasana या Camel Pose भी कहा जाता है. जैसे ऊंट रेगिस्तान के मुश्किल हालातों में भी आसानी से रह सकता है. इसी तरह हम भी अनुकूल स्थिति बना सकते हैं
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पटनाः Camel Pose or Ushtrasana: शरीर को स्वस्थ रखने के लिए भारतीय मनीषियों ने मानव जाति को योग के रूप में सबसे महत्वपूर्ण सौगात दी है. हजारों सालों से ये आसन, प्राणायाम और मुद्राएं हमें स्वास्थ्य का तोहफा देते आ रहे हैं. ऐसे वक्त में जब हम रोज पहले से कहीं ज्यादा तनाव झेलते हैं, योग में आज भी हमें स्वस्थ बनाने की क्षमता है. डेली रुटीन में अगर आप डेस्क जॉब करते हैं तो पीठ दर्द और कमर दर्द से जरूर ही जूझते होंगे. इस दर्द से निजात पाने का उपाय भी योग में हैं. अगर आपको इस तरह कोई समस्या होती है तो आप उष्ट्रासन का उपाय अपना सकते हैं.
ध्यान देने वाली जरूरी बात
उष्ट्रासन में शरीर ऊंट की आकृति बनाता है. इस आसन को अंग्रेजी में Ushtrasana या Camel Pose भी कहा जाता है. जैसे ऊंट रेगिस्तान के मुश्किल हालातों में भी आसानी से रह सकता है, अगर इस आसन का अभ्यास नियमित तौर पर किया जाए तो ये शरीर से हर शारीरिक और मानसिक परेशानी को दूर करके स्वस्थ जीवन देने में मदद करता है. उष्ट्रासन में रीढ़ की हड्डी को मोड़ा जाता है. इस आसन का अभ्यास अन्य योगासनों के साथ सुबह के वक्त किया जा सकता है. अगर किसी कारण से इस आसन का अभ्यास सुबह के वक्त न किया जा सके तो इसे शाम के वक्त भी किया जा सकता है. शाम को अभ्यास करने से भी ये समान लाभ देता है. इस आसन को खाली पेट करना चाहिए, या फिर ध्यान दें कि आपने भोजन कम से कम चार से छह घंटे पहले किया हो.
ऐसे करें उष्ट्रासन
‘उष्ट्र’ का अर्थ ऊंट होता है. इस मुद्रा में शरीर ऊंट के समान लगता है इसीलिए इसको उष्ट्रासन के नाम से पुकारा जाता है. उष्ट्रासन क्रोध एवं शारीरिक विकारों को दूर करने में अहम भूमिका निभाता है.शरीर तेजस्वी एवं फुर्तीला बनता है.इस आसन को करने से भूख बढ़ती है. रक्त शुद्ध होता है. उष्ट्रासन करना बहुत आसान है. सबसे पहले आप फर्श पर घुटनों के बल बैठ जाएं या आप वज्रासन में बैठे. जांघों तथा पैरों को एक साथ रखें, पंजे पीछे की ओर हों तथा फर्श पर जमे हों. घुटनों तथा पैरों के बीच करीब एक फुट की दूरी रखें.
ये हैं मुद्राएं
अब आप अपने घुटनों पर खड़े हो जाएं. सांस लेते हुए पीछे की ओर झुकें और अब दाईं हथेली को दाईं एड़ी पर तथा बाईं हथेली को बाईं एड़ी पर रखें. ध्यान रहे कि पीछे झुकते समय गर्दन को झटका न लगे. शरीर का वजन बांहों तथा पांवों पर समान रूप से होना चाहिए. धीरे-धीरे सांस ले और धीरे-धीरे सांस छोड़ें. कुछ देर इसी मुद्रा में रहकर गहरी सांस छोड़ते हुए आरंभिक अवस्था में आएं. यह एक चक्र हुआ. इस तरह से आप इसको पांच से सात बार कर सकते हैं. ध्यान दें उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, हर्निया में इसे नहीं करनी चाहिए.
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