Chirag Paswan Politics: चिराग पासवान खुद के बल पर खुद की सरकार नहीं बना सकते, लेकिन किसी भी दल की नींव हिलाने के लिए वे काफी हैं. इस बात को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से बेहतर कौन जान सकता है. जाहिर है, चिराग पासवान को एनडीए के बड़े दल नजरंदाज करने की कोशिश नहीं करेंगे.
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Bihar Chunav 2020: बिहार विधानसभा चुनाव, 2025 में केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान की पार्टी लोजपा रामविलास को एडजस्ट करना एनडीए के लिए सबसे बड़ी समस्या हो सकती है. भले ही पिछले विधानसभा चुनाव में लोजपा को 137 सीटों पर चुनाव लड़ने के बाद भी महज 1 सीट मिली थी, लेकिन इस पार्टी में कम सीटों पर समेटने में भाजपा और जेडीयू दोनों को पसीने आ सकते हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में लोजपा 9 सीटों पर दूसरे नंबर पर जरूर रही थी. जेडीयू के लिए खुशी की बात होगी कि इस बार चिराग पासवान की पार्टी लोजपा आर एनडीए का हिस्सा है, क्योंकि इसी पार्टी की वजह से जेडीयू 50 से कम सीटों पर सिमटने को मजबूर हो गई थी और भाजपा एनडीए के भीतर बड़ा भाई की हैसियत में आ गई थी. चिराग पासवान के चाचा पशुपति कुमार पारस रालोजपा के बैनर तले राष्ट्रीय जनता दल के नेता लालू प्रसाद यादव से पींगें बढ़ाते दिख रहे हैं.
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विधानसभा चुनाव में जेडीयू के खराब प्रदर्शन के पीछे चिराग पासवान की रणनीति को बताया जाता है. अंदरखाने तो कई नेता यह भी कहते सुने जाते रहे हैं कि भाजपा ने ही चिराग पासवान को आगे किया था, ताकि नीतीश कुमार बड़े भाई की भूमिका से छोटे भाई की भूमिका में आ सकें. खैर, पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा बड़े भाई और नीतीश कुमार की पार्टी छोटे भाई की भूमिका में आ गई थी. फिर भी मुख्यमंत्री पद नीतीश कुमार की झोली में ही गया था.
2020 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो एनडीए के बीच सीटों का बंटवारा इस प्रकार हुआ था: जेडीयू को 122 सीटें मिली थीं तो भाजपा को 121. जेडीयू ने अपने कोटे से जीतनराम मांझी की हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा को 7 सीटें दी थीं. ऐसे में उसके पास लड़ने के लिए केवल 115 सीटें रह गई थीं. वहीं भाजपा ने अपने कोटे से मुकेश साहनी की विकासशील इंसान पार्टी को 11 सीटें दी थीं. इस तरह भाजपा केवल 110 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. तब चिराग पासवान की पार्टी एनडीए का हिस्सा नहीं थी.
अब सवाल यह है कि अगर चिराग पासवान की पार्टी एनडीए में शामिल हैं तो उसे विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए कितनी सीटें दी जा सकती हैं? इस बारे में एनडीए में जरूर मंथन चल रहा होगा. पिछली बार जिस तरह जीतन राम मांझी और मुकेश साहनी को एडजस्ट किया गया था, उतने में तो चिराग पासवान नहीं मानेंगे, यह बात भाजपा के आला नेता और जेडीयू सुप्रीमो नीतीश कुमार भी जानते हैं और चिराग पासवान के साथ न होने का गम भी नीतीश कुमार भुगत चुके हैं. ऐसे में चिराग पासवान को एक सम्मानजनक फॉर्मूला दिया जा सकता है.
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माना जा रहा है कि लोजपा रामविलास को चुनाव लड़ने के लिए 30 सीटें दी जा सकती हैं. बाकी बची 213 सीटों में से 13 सीटें 7:6 के अनुपात में जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा को दी जा सकती हैं. और जो 200 सीटें बचती हैं, उनमें बराबर-बराबर सीटों पर भाजपा और जेडीयू चुनाव लड़ सकती हैं. बहुत संभव है कि इस बार बिहार एनडीए में बड़ा और छोटा भाई का कान्सेप्ट खत्म हो जाए, क्योंकि हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली का विधानसभा चुनाव जीतने के बाद भाजपा का मनोबल सातवें आसमान पर है. हालांकि लोकसभा चुनाव में भाजपा बड़े भाई की हैसियत में आ गई थी.