Bihar News: मिथिलांचल के विकास पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का विशेष फोकस है. यही कारण है कि कैबिनेट बैठक में मिथिला के विभिन्न जिलों को राज्य सरकार की ओर से एक साथ अनेक बड़ी सौगातें दी गई हैं.
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Bihar News: मिथिला वासियों के लिए खुशखबरी है. बिहार सरकार अब मिथिलाक्षर की प्राचीन एवं दुर्लभ पाण्डुलिपियों के संरक्षण करेगी. इसके लिए सरकार ने एक बड़ी राशि आवंटित की है. दरअसल, मंगलवार (4 फरवरी) को हुई कैबिनेट बैठक मिथिला संस्कृत स्नातकोत्तर अध्ययन एवं शोध संस्थान, दरभंगा के विभिन्न भवनों के निर्माण एवं परिसर के विकास के लिए ₹48.6400 करोड़ और पांडुलिपियों के संरक्षण के लिए ₹8.1656 करोड़, यानी कुल ₹56.8056 करोड़ की मंजूरी भी मिल गई है. यह जानकारी जेडीयू के कार्यकारी अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद संजय झा ने दी. उन्होंने इसके लिए मुख्यमंत्री का आभार भी जताया है. संजय झा ने कहा कि हमें खुशी है कि इनमें मिथिला संस्कृत स्नातकोत्तर अध्ययन एवं शोध संस्थान, दरभंगा को पुनर्जीवित करने और मिथिलाक्षर की प्राचीन एवं दुर्लभ पाण्डुलिपियों के संरक्षण के लिए राशि की मंजूरी भी शामिल है.
जेडीयू के कार्यकारी अध्यक्ष ने बताया कि मिथिला शोध संस्थान की स्थापना संस्कृत भाषा में उच्चस्तरीय अध्ययन, अनुसंधान एवं प्रकाशन के उद्देश्य से दरभंगा के तत्कालीन महाराजाधिराज डॉ सर कामेश्वर सिंह जी के द्वारा 16 जून, 1951 को की गई थी. इसके मुख्य प्रशासनिक भवन का शिलान्यास भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ० राजेन्द्र प्रसाद जी के कर-कमलों से 21 नवंबर, 1951 को हुआ था. अंतरराष्ट्रीय स्तर के मूर्धन्य दार्शनिक विद्वान महामहोपाध्याय डॉ० उमेश मिश्र जी के प्रथम निदेशकत्व में यह संस्थान शुरू हुआ. बाद के वर्षों में अंतरराष्ट्रीय स्तर के कई महान विद्वानों ने इस संस्थान की गरिमा बढ़ाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया. यह संस्थान 62 बीघे के विशाल भूखंड में अवस्थित है. यहां एमए (संस्कृत) तथा मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान संकाय से संबद्ध विषयों में पीएचडी और डी.लिट् का प्रावधान है. लेकिन, इस संस्थान के ज्यादातर भवन छह दशक से अधिक पुराने होने के कारण अब जर्जर एवं दयनीय स्थिति में हैं.
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उन्होंने आगे कहा कि एक बेहद महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इस संस्थान के पाण्डुलिपि अनुभाग में अपने समय के महान विद्वानों द्वारा तैयार मिथिलाक्षर, बंगाक्षर, देवाक्षर तथा अन्य लिपियों में तंत्र, व्याकरण, ज्योतिष, कर्मकाण्ड, मीमांसा, न्याय, वेद, वेदान्त, आयुर्वेद, कामशास्त्र, साहित्य आदि प्राच्य विद्या से संबंधित साढ़े बारह हजार से अधिक प्राचीन एवं दुर्लभ पाण्डुलिपियां तालपत्र, भोजपत्रादि पर संस्थान में सुरक्षित हैं, जिनका चरणबद्ध ढंग से डिजिटाइजेशन, लिप्यन्तरण, अध्ययन एवं संपादन तथा प्रकाशन का कार्य किया जाना आवश्यक है. इसके अलावा संस्थान के पुस्तकालय में शोध में उपयोगी बहुमूल्य शास्त्रों से संबद्ध करीब 30 हजार पुस्तकें भी सुरक्षित हैं. हमारा मानना है कि मिथिला संस्कृत स्नातकोत्तर अध्ययन एवं शोध संस्थान, दरभंगा का पुनरुद्धार कराये जाने से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस संस्थान की गरिमा पुन: बहाल हो सकेगी.
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