अब पछताए होत का जब चिड़िया चुग गई खेत... नीतीश कुमार के नाम पर अब रूदाली करने का क्या फायदा?
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अब पछताए होत का जब चिड़िया चुग गई खेत... नीतीश कुमार के नाम पर अब रूदाली करने का क्या फायदा?

अब CM नीतीश कुमार के लिए लालू प्रसाद यादव दरवाजा खोलते दिख रहे हैं तो तेजस्वी यादव उसी दरवाजे को बंद करने की बात करते हैं. जाहिर है कि अभी भी विपक्षी दल असमंजस में हैं और केवल स्वार्थ सिद्धि के लिए नीतीश कुमार के लिए दिल बड़ा करने और उसे दिखाने की कोशिश की जा रही है.

अब पछताए होत का जब चिड़िया चुग गई खेत... नीतीश कुमार के नाम पर अब रूदाली करने का क्या फायदा?

विपक्ष बेचैन है. हार दर हार से यह बेचैनी अब हताशा में बदलती जा रही है. हर हार का ठीकरा किसी के सिर फोड़ने की जैसे आदत सी हो गई है. ठीकरे का ज्यादातर हिस्सा कांग्रेस के मत्थे आ रहा है. ताजा मामला दिल्ली चुनाव में मिली हार का है. यहां कांग्रेस और आम आदमी पार्टी अलग-अलग चुनाव मैदान में थे. अब मंथन हो रहा है कि अगर ऐसे ही लड़े तो आपस में ही लड़ते रहेंगे और भाजपा को जीत दर जीत नसीब होती रहेगी. विपक्ष की एक हताशा यह भी है कि इंडिया ब्लॉक की नींव रखने वाले नीतीश कुमार अब उसके साथ नहीं हैं और उससे भी बड़ी टीस यह है कि केंद्र की मोदी सरकार नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू की बदौलत ही चल रही है. आज नीतीश कुमार को लेकर विपक्ष के कई दल सहानुभूति जताने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन इन्हीं दलों ने नीतीश कुमार को इंडिया ब्लॉक का संयोजक तक नहीं बनने दिया था. आज अगर नीतीश कुमार इंडिया ब्लॉक का हिस्सा होते तो केंद्र में शायद मोदी सरकार नहीं होती, ऐसा कुछ जानकार दावा करते हैं, लेकिन अब पछताए होत का, जब चिड़िया चुग गई खेत.

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विपक्ष की सबसे बड़ी टीस का कारण यह है कि वक्फ बोर्ड पर जेपीसी की रिपोर्ट को लेकर नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू की पार्टियों ने दिल खोलकर समर्थन दिया, जबकि विपक्ष के कई नेताओं का मानना है कि ये दोनों दल नैसर्गिक रूप से धर्मनिरपेक्ष दल हैं और दिक्कत की बात यह है कि ये दल अब भाजपा की कथित सांप्रदायिक नीतियों का समर्थन कर रहे हैं. विपक्षी दलों में से एक उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू को चेताते हुए कहा है कि जो आज हमारे साथ हुआ है, भविष्य में आपके साथ भी हो सकता है. आदित्य ठाकरे का यह भी कहना है कि भाजपा ने जिस तरह से चुनाव जीता है, उसे लेकर कई तरह के सवाल खड़े होते हैं, लेकिन भाजपा क्षेत्रीय दलों को कमजोर करने की मंशा के साथ सुनियोजित तरीके से अभियान चला रही है और इससे क्षेत्रीय दलों के भविष्य पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं.

वक्फ संशोधन विधेयक पर संयुक्त संसदीय समिति की रिपोर्ट संसद में पेश होने के बाद राजनीति गरमा गई है. शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे जव्वाद ने भी वक्फ बोर्ड पर आने बिल को समर्थन देने वाले नीतीश कुमार को लेकर बयान दिया है. कल्बे जव्वाद का कहना है कि वक्फ संशोधन विधेयक कांग्रेस की देन है और भाजपा इसे पास करवा रही है. जव्वाद का कहना है कि सरकार केवल मस्जिदों को ही क्यों देख रही है. एक लाख से ज्यादा मंदिर भी अवैध तरीके से बनवाए गए हैं. हर थाने में अवैध मंदिर बन गए हैं. मंदिरों का सोना निकालकर बांट देना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की गद्दारी के चलते वक्फ संशोधन बिल लाया गया है. अगर ये दोनों केंद्र की मोदी सरकार का साथ नहीं देते तो बिल आता ही नहीं. इन दोनों नेताओं को इस विधेयक का समर्थन नहीं करना चाहिए.

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राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव भी छटपटा रहे हैं. पिछले दिनों उनका बयान आया था कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार महागठबंधन में आते हैं तो उनका स्वागत करेंगे. उनको माफ कर देंगे. लालू प्रसाद यादव के बाद एनसीपी शरद पवार गुट के नेता माजिद मेमन ने कहा कि नीतीश कुमार विश्वसनीय व्यक्ति नहीं हैं, लेकिन अगर वे महागठबंधन में आते हैं तो राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव देखेंगे कि क्या करना है. शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट के नेता संजय राउत ने कहा कि भाजपा, जेडीयू के 12 सांसदों को अपने पाले में लाने में जुटी है और नीतीश कुमार को सचेत होकर कोई कदम उठाना चाहिए. अब आप ही सोचिए कि ये सब बयान नीतीश कुमार के लिए ही क्यों आ रहे हैं? कोई नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू को चेता रहा है, कोई डरा रहा है, कोई स्वागत कर रहा है, कोई अविश्वासी बता रहा है. आखिर इस तरह के बयानों के क्या मायने हैं. 

इसका सीधा सा कारण यह है कि नीतीश कुमार ही इंडिया ब्लॉक के जनक हैं और आज उसके जनक ही उसके साथ नहीं हैं. नीतीश कुमार ने ही नॉन कांग्रेस विपक्षी दलों के नेताओं को कांग्रेस के साथ एक टेबल पर बैठकर बातचीत करने के लिए राजी किया था. पटना में सबसे पहले विपक्षी दलों के संभावित गठबंधन की बैठक भी हुई थी और नीतीश कुमार ने ही इस बैठक की मेजबानी की थी. विपक्षी गठबंधन को आकार देने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कोलकाता, मुंबई, भुवनेश्वर, लखनऊ और दिल्ली भी गए. हालांकि भुवनेश्वर से नीतीश कुमार खाली हाथ लौटे थे. नीतीश कुमार को एक ही लालच था कि जो भी गठबंधन बने, उसका नेतृत्व वह खुद करें. लेकिन पटना की बैठक के बाद ही राहुल गांधी को दूल्हा बनाने की बात कहकर सब गुड़-गोबर कर दिया था. उसके बाद से जो कुछ भी हुआ, उसमें नीतीश कुमार के लिए कुछ भी नहीं था.

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यहां तक कि इंडिया ब्लॉक के नाम पर बेंगलुरू की बैठक में नीतीश कुमार ने असहमति जताई थी, लेकिन उनकी राय को दरकिनार कर दिया गया था. राहुल गांधी की ओर से Indian National Developmental Inclusive Alliance यानी INDIA नाम दिया गया और नाम पसंद न आने के बाद भी नीतीश कुमार इस बात के लिए मजबूर हुए कि वह जाहिर करें कि इस नाम पर सर्वानुमति कायम हो गई है. हुआ भी ठीक ऐसा ही. मुंबई की बैठक में गठबंधन के एजेंडे पर चर्चा होनी थी, जिसमें नीतीश कुमार ने जातिगत जनगणना को शामिल करने पर बल दिया था, लेकिन कांंग्रेस ने इसमें अड़ंगा लगा दिया था. उसके बाद चौथी और अंतिम बैठक दिल्ली में हुई और वहां तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ खेला हो गया.

दरअसल, दिल्ली की बैठक से पहले दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की मुलाकात हुई थी. उसके बाद विपक्षी गठबंधन की बैठक हुई ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल ने गठबंधन के नेतृत्व और प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम प्रस्तावित कर दिया था. नीतीश कुमार के नाम पर तो विचार भी नहीं किया गया. तब राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव बैठक में चुप बैठकर यह सब देखते रहे थे. जानकार मानते हैं कि अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी के प्रस्ताव को लालू प्रसाद यादव का मौन समर्थन हासिल था. नीतीश कुमार समझ गए थे कि उनके साथ खेला हो चुका है. तब नीतीश कुमार का किसी भी दल या दलों के नेताओं ने साथ नहीं दिया था. उसके बाद नीतीश कुमार ने उन सभी दलों को मजा चखाने की सोच ली थी. 

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दिल्ली की बैठक के बाद नीतीश कुमार ने जेडीयू के राष्ट्रीय परिषद की 29 दिसंबर, 2023 को बैठक बुला ली और खुद जेडीयू के अध्यक्ष बन बैठे और उसके ठीक एक महीने बाद 30 जनवरी, 2024 को नीतीश कुमार ने बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में रिकॉर्ड 9वीं बार शपथ ले ली. जब तक विपक्षी दल कुछ समझ पाते, नीतीश कुमार भाजपा के साथ आ चुके थे. अब विपक्षी दलों की टीस यही है कि एक तो नीतीश कुमार ने इतनी मेहनत के बाद इंडिया ब्लॉक को खड़ा किया और खुद एनडीए का दामन थाम बैठे. राजनीति में नीतीश कुमार, लालू प्रसाद और मुलायम सिंह यादव आदि नेताओं की तरह समाजवादी आंदोलन की पैदाइश माने जाते हैं. आज ये दोनों की पार्टी इंडिया ब्लॉक का हिस्सा हैं और नीतीश कुमार एनडीए के साथ अपना झंडा बुलंद किए हुए हैं. 

विपक्ष की टीस यही है कि लालू और अखिलेश यादव इंडिया ब्लॉक में हैं और नीतीश कुमार एनडीए में. इसलिए गाहे बगाहे ऐसे बयान दिए जा रहे हैं. इसमें कोई दोराय नहीं कि आज मोदी सरकार नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू के भरोसे पर चल रही है और विपक्षी दलों के नेता बार बार नीतीश कुमार को इस बात की याद भी दिलाते रहते हैं.

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