Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट में एक हैरान करने वाला मामला सामने आया है. जिसमें कोर्ट ने कहा कि यह देखकर दुख हुआ कि एक व्यक्ति को पिता के शव को ईसाई रीति-रिवाजों के अनुसार दफनाने के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा.
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Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट में मानवता को शर्मसार करने वाला मामला सामने आया है. दरअसल छत्तीसगढ़ के एक गांव में एक व्यक्ति को अपने पिता को ईसाई रीति-रिवाजों से दफनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा. मामले को लेकर कोर्ट ने कहा कि "हमें यह कहते हुए दुख हो रहा है कि न तो पंचायत, न ही राज्य सरकार या हाईकोर्ट इस समस्या का समाधान कर पाए. जानिए क्यों कोर्ट को ये कहना पड़ा.
उच्चतम न्यायालय ने छत्तीसगढ़ के एक गांव में पादरी के शव को दफनाने को लेकर चल रहे विवाद में कहा है कि मामले का समाधान सौहार्दपूर्ण तरीके से निकलना चाहिए. ताकि पादरी का अंतिम संस्कार सम्मानपूर्वक किया जा सके. बता दें कि पादरी का शव सात जनवरी से शवगृह में रखा हुआ है.
यह मामला पादरी के बेटे की याचिका से जुड़ा है, जो यह मांग कर रहा था कि उसके पिता का शव गांव के कब्रिस्तान में दफनाया जाए. इस मांग को छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने यह याचिका खारिज कर दी थी, याचिकाकर्ता का कहना था कि उसके पिता को गांव के कब्रिस्तान में दफनाने की परंपरा है, लेकिन कुछ ग्रामीणों ने इसका विरोध किया और परिवार को धमकाया.
मामले को लेकर छत्तीसगढ़ सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि शव ईसाई आदिवासियों के लिए निर्धारित क्षेत्र में दफनाया जाना चाहिए. जो परिवार के छिंदवाड़ा गांव से लगभग 20-30 किलोमीटर दूर स्थित है. बघेल की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंजाल्विस ने कहा यह झूठ है कि राज्य के हलफनामे में दावा किया गया है कि ईसाई आदिवासियों के लिए शव को दफनाने के लिए गांव से बाहर जाना एक परंपरा है. उन्होंने गांव के राजस्व मानचित्रों को रिकॉर्ड पर रखा और तर्क दिया कि ऐसे कई मामले थे जिनमें समुदाय के सदस्यों को गांव में ही दफनाया गया था.
बेंच ने हिंदू आदिवासियों की आपत्ति पर आश्चर्य जताया, क्योंकि वर्षों से किसी ने भी दोनों समुदायों के मृतकों को एक साथ दफनाने पर आपत्ति नहीं जताई थी. जब अदालत ने सुझाव दिया कि वैकल्पिक रूप से पादरी को उनकी निजी भूमि पर दफनाया जा सकता है, तो मेहता ने आपत्ति जताई और कहा कि शव को केवल उस जगह पर ही दफनाया जाना चाहिए जो गांव से 20-30 किलोमीटर दूर है. इसके बाद उच्चतम न्यायालय ने पक्षकारों की सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. इससे पहले उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि उसे यह देखकर दुख हुआ कि छत्तीसगढ़ के एक गांव में रहने वाले व्यक्ति को पिता के शव को ईसाई रीति-रिवाजों के अनुसार दफनाने के लिए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा क्योंकि अधिकारी इस मुद्दे को सुलझाने में विफल रहे.
बघेल ने दावा किया है कि छिंदवाड़ा गांव में एक कब्रिस्तान है जिसे ग्राम पंचायत ने शवों को दफनाने और अंतिम संस्कार के लिए मौखिक रूप से आवंटित किया है. याचिका में कहा गया कि याचिकाकर्ता और उसके परिवार के सदस्य अपने परिजन का अंतिम संस्कार करना चाहते थे और उसके पार्थिव शरीर को कब्रिस्तान में ईसाई लोगों के लिए बताए हुए क्षेत्र में दफनाना चाहते थे. लेकिन लोगों ने कहा कि उनके गांव में किसी ईसाई को दफनाया नहीं जा सकता, चाहे वह गांव का कब्रिस्तान हो या निजी जमीन. ‘‘जब गांव वाले हिंसक हो गए, तो याचिकाकर्ता के परिवार ने पुलिस को सूचना दी, जिसके बाद 30-35 पुलिसकर्मी गांव पहुंचे. पुलिस ने परिवार पर शव को गांव से बाहर ले जाने का दबाव भी बनाया. (इनपुट- भाषा)