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DNA Analysis: हमारे देश के सिस्टम में भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहराई तक जमी हुईं हैं कि जमीन पर बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी हो जाती हैं. जिसका जीता-जागता उदाहरण है - नोएडा का ट्विन टॉवर. ऐसा पहली बार होने वाला है, जब भ्रष्टाचार की नींव पर खड़ीं कोई इमारत ढहने वाली है. क्योंकि ये इमारत रिश्वतखोरी की ईंटों से बनी है. रविवार को इन इमारतों को ढहा दिया जाएगा. ये सिर्फ इमारत नहीं है, बल्कि हमारे देश के सिस्टम में घुसे भ्रष्टाचार की इबारत हैं.
ये गगनचुंबी ट्विन टॉवर, रियल एस्टेट सेक्टर में बिल्डरों की सिस्टम में ऊंची पहुंच का एक छोटी सी मिसाल है, जिसके आगे दुनिया की बड़ी-बड़ी ऐतिहासिक इमारतें भी छोटी पड़ जाती हैं. नोएडा के इस ट्विन टॉवर्स की ऊंचाई 100 मीटर है. जबकि कुतुब मीनार की ऊंचाई सिर्फ 73 मीटर है. स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी की ऊंचाई 93 मीटर है. यानी ये ट्विन टॉवर उससे भी 7 मीटर ऊंचे हैं. पीसा की मीनार की ऊंचाई 57 मीटर है. यानी इन टावर्स की ऊंचाई इससे लगभग दोगुनी है. अगर दोनों ट्विन टॉवर को एक के ऊपर एक रख दिया जाए तो ये गुजरात में स्टैच्यू ऑफ यूनिटी से ऊंची हो जाएंगी, जो 182 मीटर ऊंची है.
भ्रष्टाचार के बुर्ज खलीफा!
दुबई में 830 मीटर ऊंचा बुर्ज खलीफा, दुनिया की सबसे ऊंची इमारत है. लेकिन नोएडा के ये ट्विन टॉवर, भारत में भष्टाचार के बुर्ज खलीफा हैं. लेकिन भ्रष्टाचार की नींव पर बनी इमारत कितनी भी ऊंची क्यों न हो. कितनी भी मजबूत क्यों ना हो. एक न एक दिन वो मिट्टी में मिल ही जाती है. नोएडा की इन इमारतों का भी अब यही हाल होने वाला है. नियमों को तोड़कर बनाई गए सुपरटेक के ये दोनों टावर्स 28 अगस्त यानी रविवार की दोपहर ढाई बजे ढहा दिए जाएंगे और इसकी सारी तैयारियां भी पूरी हो चुकी हैं. यानी जिन इमारतों को बनाने में वर्षों का समय लगा, जिन इमारतों से कई लोगों के सपने जुड़े थे. वो सिर्फ चंद घंटों की ही मेहमान हैं और आप जब अगले सप्ताह सुबह दफ्तर जाने के लिए या किसी काम से घर से बाहर निकलेंगे तो नोएडा-ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेस वे से नजर आने वाली ये दोनों इमारतें गायब हो चुकी होंगी और उनका नामों निशान तक मिट चुका होगा.
आपको ये जानना भी जरूरी है कि आखिर ये कहानी यहां तक कैसे पहुंची और ऐसा क्या हुआ कि कई सौ करोड़ की लागत से बन रहीं इन इमारतों को पूरा होने से पहले ही गिराया जा रहा है. आज हम आपको इस मामले से जुड़ी एक-एक चीज शुरू से बताएंगे. दरअसल ये विवाद करीब डेढ़ दशक पुराना है. 23 नवंबर 2004 को नोएडा अथॉरिटी की तरफ से सुपरटेक को सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट प्रोजेक्ट के लिए 48263 वर्गमीटर जमीन आवंटित की गई थी. वर्ष 2006 में बिल्डर ने इस प्रोजेक्ट का नक्शा भी पास करा लिया और 'एमराल्ड कोर्ट' प्रोजेक्ट लॉन्च कर दिया. इस प्रोजेक्ट में ग्राउंड फ्लोर के अलावा 11 मंजिल ऊंचे कुल 14 टावर्स बनाए जाने थे. लेकिन आज जहां आपको 32 मंजिल के ये दो एपेक्स और सियाने टार्वस दिख रहे हैं. वहां नक्शे के अनुसार ग्रीन बेल्ट बनाई जानी थी. यानी पार्क बनाया जाना था. लेकिन सुपरटेक ने अपने खरीददारों को बिना बताए ही इस जगह पर नए टावर्स बनाने की तैयारी भी कर ली. वर्ष 2008-09 में इस प्रोजेक्ट को कंप्लीशन सर्टिफिकेट भी मिल गया. यानी अथॉरिटी ने एमराल्ड कोर्ट के दूसरे रिवाइज प्लान को मंजूरी दे दी.
समझें पूरा खेल शुरुआत से
- अब यहीं से पूरा खेल शुरू होता है. 28 फरवरी वर्ष 2009 को उत्तर प्रदेश सरकार ने एक फैसला लिया और इसके अंतर्गत प्रोजेक्ट्स के लिए एलॉट किए जाने वाले FAR यानी फ्लोर एरिया रेशियो को बढ़ा दिया गया. ये रेशियो यानी FAR ही तय करता है कि बिल्डर उसे आवंटित हुई जमीन पर कुल कितनी मंजिलें बना सकता है.
- अब सरकार के इस फैसले की वजह से सुपरटेक ग्रुप को इन इमारतों की ऊंचाई 73 मीटर यानी 24 मंजिल तक बढ़ाने की मंजूरी मिल गई.
- यहां तक भी एमराल्ड कोर्ट प्रोजेक्ट में जिन लोगों ने घर खरीदे थे. उन्होने कोई ऐतराज नहीं जताया. लेकिन नियमों को जेब में रख कर घूम रहे बिल्डर के लिए एक बार फिर से नियम बदल दिए गए और इस नए रिवाइज्ड प्लान में दोनों टावर्स की ऊंचाई को 121 मीटर यानी 40 और 39 मंजिल तक बनाने की छूट दे दी गई.
- अब आप सोचिए, नक्शे में जो जगह ग्रीन एरिया के रूप में दर्शाई गई थी. वहां अधिकारियों की मिलीभगत और बिल्डर के लालच की वजह से 40 मंजिल की एक इमारत तैयार होने लगी और प्रोजेक्ट के विज्ञापन में ग्रीन एरिया देखकर घर खरीदने वालों के लिए ये एक ठगी से कम नहीं था.
- यही नहीं इन टावरों के निर्माण के दौरान करीब की बिल्डिंगों के बीच उचित दूरी का खयाल भी नहीं रखा गया था.
- नेशनल बिल्डिंग कोड (NBC), ऐक्ट 2005 के अनुसार दो ऊंची इमारतों के आसपास कम अस कम 20 मीटर की जगह होनी चाहिए थी, लेकिन ये नए टावर्स पुराने टावर्स से सिर्फ़ 9 मीटर की दूरी पर हैं.
- इसके अलावा इनमें फायर सेफ़्टी से जुड़े के मानकों का भी उल्लंघन किया गया.
एमराल्ड कोर्ट प्रोजेक्ट में जब लोगों ने निवेश किया था, तो उन्हें इन नए टावर्स की कोई जानकारी नहीं थी और अब ये ऊंची इमारतें उनके घरों के ठीक सामने खड़ी हो गई थीं. इतने ऊंची इमारतों की वजह से उनके घर में धूप और हवा आने की जगह भी नहीं बची और इसीलिए इन खरीददारों ने विरोध शुरू किया और एमराल्ड कोर्ट की RWA यानी रेडिडेंस वेलफेयर एसोसिएशन नोएडा अथॉरिटी के पास पहुंची. लेकिन वहां भी खरीददारों की कोई मदद नहीं हुई. आखिरकार वर्ष 2012 में ये लोग बिल्डर के खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट पहुंच गए. हाई कोर्ट ने वर्ष 2014 में इन दोनों टावर्स को गिराने का आदेश जारी कर दिया. उस वक्त तक दोनों की 32 मंजिलें बन चुकी थीं.
- इसके बाद हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई और फिर सुप्रीम कोर्ट में भी करीब 7 वर्षों तक ये मामला चलता रहा और 31 अगस्त 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने खरीददारों के पक्ष में फैसला सुनाया और तीन महीने के अंदर दोनों टावर्स को गिराने का आदेश जारी कर दिया.
- सुप्रीम कोर्ट ने सुपरटेक को इन सभी खरीददारों को दो महीने के अंदर उनकी पूरी रकम 12 प्रतिशत सालाना ब्याज दर के साथ लौटाने का भी निर्देश दिया था.
- इसके साथ ही सुपरेटक को एमराल्ड कोर्ट RWA को 2 करोड़ का मुआवज़ा देने और बिल्डिंग गिराने का पूरा खर्च उठाने का भी आदेश दिया गया था.
विस्फोट की मदद से गिरेंगे टावर्स
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार इन दोनों टावर्स को नवबंर 2021 में ही गिरा दिया जाना था. लेकिन तकनीकि कारणों से इस डेडलाइन को तीन बार बढ़ाया गया और अब आखिरकार 28 अगस्त की दोपहर ढाई बजे ये दोनों टावर्स मिट्टी में मिला दिए जाएंगे. नोएडा के एक पॉश इलाके में खड़ी ये दो गगनचुंबी टावर्स बस कुछ घंटो के ही मेहमान हैं. 28 अगस्त यानी रविवार ढाई बजे इन बिल्डिंग्स में में एक धमाका होगा और फिर ये बुलंद इमारतें हमेशा के लिए जमींदोज हो जाएंगी. करीब 100 मीटर ऊंचे इन दोनों टॉवर्स को गिराने के लिए इनमें करीब 3700 किलोग्राम विस्फोटक लगाया गया है. इन दोनों इमारतों में 9 हजार से भी ज्यादा होल्स किए गए हैं और इन्ही सुराखों में ये विस्फोटक भरा गया है. विस्फोटकों के इस पूरे सर्किट को कुछ इस तरह जोड़ा गया है कि सिर्फ एक बटन दबाते ही धमाकों का सिलसिला शुरू हो जाएगा और सिर्फ 10 से 12 सेकेंड में ही ये दोनों टावर्स मिट्टी में मिल जाएंगे.
आसान नहीं है ट्विन टावर गिराना
हालांकि रिहायशी इलाके में मौजूद इस इमारत को गिराना आसान काम नहीं है. इमारत भले ही तय जगह पर धराशाई हो जाए. लेकिन इससे निकलने वाली धूल और पत्थर के छोटे छोटे टुकड़ों को रोकना बेहद मुश्किल है. हालांकि बिल्डिंग गिराने वाली दोनों कंपनियों जेट डिमॉलिशन और एडेफिस का दावा है कि सब कुछ तय प्लानिंग के हिसाब से ही होगा और किसी को घबराने की जरूरत नहीं है.
धूल का कोई इलाज नहीं है, इसलिए आसपास की दूसरी इमारतों को भी खास तरह के पर्दों से ढक दिया गया है. बारूद से ढके इन दोनों टावर्स से सिर्फ 9 मीटर यानी लगभग तीस फीट की दूरी पर ही एक दूसरी इमारत भी मौजूद है. सुपरटेक एमरेल्ड के इन निवासियों को डर है कि कहीं ये धमाका, उनके घरों को भी न हिला दे. इस डिमोलिशन के लिए वहां की RWA ने भी पूरी प्लानिंग कर ली है. आसपास के सभी लोगों को सुबह 7 बजे तक अपने घर खाली करने होंगे. इसके बाद ये पूरा इलाका बंद कर दिया जाएगा और जब शाम 5 बजे ये लोग दोबारा अपने घर लौटेंगे. तो इन दो टावर्स का नामों निशान मिट चुका होगा.
इस पूरी प्रक्रिया को लेकर भले ही यहां के लोगों में एक डर हो. लेकिन उनके चेहरों पर खुशी भी दिखाई देती है. ये खुशी सालों तक लड़ी गई लड़ाई के मुकाम तक पहुंचने की है.
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