Delhi High Court Pocso Case: दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि पॉक्सो (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम) के तहत अगर पीड़िता नाबालिग है तो सहमति का दावा कानूनन अप्रासंगिक हो जाता है.
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Delhi High Court Pocso Case: दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि पॉक्सो (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम) के तहत अगर पीड़िता नाबालिग है तो सहमति का दावा कानूनन अप्रासंगिक हो जाता है. अदालत ने साफ किया कि किसी भी यौन अपराध के मामले में पीड़िता की उम्र सबसे अहम कारक होती है. कोर्ट ने इस मामले में आरोपी की जमानत याचिका खारिज कर दी.
26 साल के आरोपी को जमानत देने से इनकार
यह मामला 26 वर्षीय व्यक्ति से जुड़ा है जिसपर 2024 में अपनी 16 साल की पड़ोसन के यौन उत्पीड़न और गर्भपात के लिए दवाइयां देने का आरोप है. आरोपी पहले से शादीशुदा है और उसकी एक बेटी भी है. उसने अदालत में दावा किया कि उसका पीड़िता से सहमतिपूर्ण संबंध था और वह 18 साल की थी. लेकिन कोर्ट ने स्कूल के रिकॉर्ड को आधार बनाते हुए पाया कि पीड़िता की जन्मतिथि 3 अगस्त 2008 है. जिससे स्पष्ट हुआ कि वह घटना के समय नाबालिग थी.
पॉक्सो कानून में उम्र ही सबसे अहम
न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने कहा कि पॉक्सो अधिनियम के तहत 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की किसी भी तरह से कानूनी रूप से सहमति नहीं दे सकती. इसलिए आरोपी का यह दावा कि संबंध सहमति से बने थे.. मुकदमे के लिए कोई मायने नहीं रखता. अदालत ने अपने आदेश में कहा कि अगर पीड़िता नाबालिग है तो कानून यह मानता है कि वह सहमति देने में सक्षम नहीं है. इसलिए सहमति का तर्क इस मुकदमे में अप्रासंगिक है.
स्कूल रिकॉर्ड बना सबूत.. बयान की जांच ट्रायल में होगी
कोर्ट ने साफ किया कि फिलहाल इस मामले में आरोपी के बयान को जांचने का समय नहीं है. यह पूरी तरह से ट्रायल कोर्ट पर निर्भर करेगा कि वह सबूतों के आधार पर फैसला करे. हालांकि वर्तमान समय में स्कूल रिकॉर्ड के अनुसार पीड़िता की उम्र तय मानी गई है जो कि 16 साल थी.
गंभीर अपराध मानते हुए कोर्ट ने दी ये दलील
अदालत ने आरोपी की जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि अपराध की प्रकृति गंभीर है. पीड़िता और आरोपी के बीच उम्र का बड़ा अंतर भी इस मामले को और संवेदनशील बनाता है. साथ ही ट्रायल अभी बाकी है और सरकारी गवाहों से जिरह होनी बाकी है. अदालत ने कहा कि मुकदमे की प्रक्रिया जारी है और गवाहों पर दबाव डालने की संभावना को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. अपराध की गंभीरता गवाहों को प्रभावित करने की आशंका और मामले की वर्तमान स्थिति को देखते हुए आरोपी को जमानत नहीं दी जा सकती.
क्या कहता है पॉक्सो कानून?
पॉक्सो अधिनियम 2012 में बनाया गया था. जिसका मकसद बच्चों को यौन अपराधों से सुरक्षा देना है. इस कानून के तहत अगर पीड़िता की उम्र 18 वर्ष से कम है तो किसी भी तरह की सहमति का कोई कानूनी आधार नहीं होता. इस कानून का मकसद यह सुनिश्चित करना है कि नाबालिग बच्चों के साथ कोई भी जबरन या बहला-फुसलाकर शारीरिक संबंध न बना सके.
फैसले का व्यापक असर
इस फैसले से यह साफ हो गया है कि अगर कोई व्यक्ति नाबालिग लड़की के साथ संबंध का दावा करता है तो अदालत में उसकी सहमति को मान्यता नहीं मिलेगी. यह फैसला उन मामलों के लिए एक नजीर साबित हो सकता है.. जहां आरोपी सहमति का तर्क देकर खुद को बचाने की कोशिश करते हैं.
(भाषा एजेंसी इनपुट के साथ)