दिल्ली के इस सुल्तान का फैसला साबित हुआ जानलेवा, हिफाजत करने वाले ही बन गए दुश्मन
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दिल्ली के इस सुल्तान का फैसला साबित हुआ जानलेवा, हिफाजत करने वाले ही बन गए दुश्मन

Delhi Sultan Iltutmish: दिल्ली सल्तनत का इल्तुतमिश सुल्तान हुआ करता था. सल्तनत की हिफाजत के लिए उसने अमीरों के दल का गठन किया जिसे तुर्कान-ए-चहलगानी का नाम दिया था. लेकिन हिफाजत करने वाले यह समूह ही उसके वंश के खात्मे की वजह बन गया.

दिल्ली के इस सुल्तान का फैसला साबित हुआ जानलेवा, हिफाजत करने वाले ही बन गए दुश्मन

Turkan-e-Chahalgani:  दिल्ली सल्तनत की स्थापना कुतुबद्दीन ऐबक ने की थी और राजधानी लाहौर को बनाया था. चौगान खेलते हुए जब उसकी मौत हुई तो सल्तनत में इस बात पर विचार शुरू हुआ कि कमान किसे सौंपी जाए. दरबारी षड़यंत्रों पर निजात हासिल करते हुए इल्ततमिश के हाथ में कमान आई. इल्ततमिश के शासन काल में मंगोल भी हिंदुस्तान की तरफ दस्तक दे रहे थे. इन सबके बीच उसे यह लगा कि कम से कम कुछ ऐसे योग्य सरदारों का समूह होना चाहिए जो सल्तनत का आधार बन सकें. इस तरह की पृष्ठभूमि में तुर्कान-ए-चहलगानी का गठन किया.

चालीस अमीरों का दल

तुर्कान-ए- चहलगानी, चालीस वफादार गुलामों का एक दल था. चालीस की संख्या को लेकर तरह तरह के मतभेद हैं. कुछ जानकार 40 की संख्या बताते हैं लेकिन कुछ इतिहासकारों के मुताबिक यह सिर्फ सांकेतिक संख्या थी. दरअसल इसका मकसद सिर्फ इतना था कि ये लोग सल्तनत की हिफाजत में अपनी योग्यता का प्रदर्शन करें. इल्ततमिश के शासन काल में उसने इस समूह से सलाह लेता रहा. तुर्कान-ए-चहलगानी से जुड़े सरदार सुल्तान पर दबाव बनाने की कोशिश करते थे हालांकि वो कामयाब नहीं हुए. यह बात अलग है कि इससे जुड़े गुलाम सरदारों ने अपनी पकड़ बनाने की कोशिश की. इसका एक उदाहरण रजिया सुल्तान के राज्यारोहण में भी नजर आता है.

चहलगानी बना षड़यंत्र का केंद्र

इल्ततमिश के निधन के बाद सल्तनत की कमान किसके हाथ में होगी इसे लेकर भ्रम की स्थिति बनी. हालांकि रजिया कुलाबे में हाथ में हरे रंग का कपड़ा लेकर लोगों से न्याय की अपील और खुद के लिए समर्थन की अपील की. रजिया अपने मकसद में कामयाब भी हुई लेकिन तुर्कान-ए-चहलगानी से जुड़े सरदारों को यह अपील रास नहीं आई. रजिया जब सुल्तान बनी तो उसने इस समूह के महत्वाकांक्षी सरदारों पर लगान लगाने की दिशा में काम किया. हालांकि वो दरबारी षड़यंत्र का शिकार बन गई.

इस तरह खत्म हो गया चहलगानी

तुर्कान-ए-चहलगानी के सरदार एक दूसरे के सामने झुकने के लिए तैयार नहीं होते थे और उसका असर शासन सत्ता पर नजर भी आता था. दरअसल इस समूह में जो अमीर थे वो अपने आपको सर्वश्रेष्ठ समझते थे. ये मुक्त अमीर जो दासता से मुक्त हो चुके थे उन्हें अपनी तरह नहीं समझते थे और उसका असर षड़यंत्र के तौर पर सामने आता था. अमीर बनाम ताजिक और तुर्क की लड़ाई में केंद्रीय सत्ता कमजोर हो गई. उसका असर यह हुआ कि इल्ततमिश के मामलूक वंश का नाश हो गया. मामलूक वंश के पतन को तुर्कान-ए-चहलगानी का एक सदस्य बल्बन भांप चुका था और जब वो गद्दी पर बैठने में कामयाब हुआ तो उसने सबसे पहले अमीरों के इस दल को हमेशा हमेशा के लिए खत्म कर दिया.

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