Rajasthan Politics: गोपालगढ़ कांड प्रशासनिक स्तर पर असफलता का प्रतीक माना गया. तत्कालीन पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी विवाद को समय रहते सुलझाने में विफल रहे. 10 हजार से ज्यादा लोगों की भीड़ मौके पर जमा हो गई
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what is gopalgarh case: प्रदेश में एक बार फिर से गोपालगढ़ कांड का मामला चर्चा में आ गया है. राजस्थान कांग्रेस ने अपने ट्विटर हैण्डल से कोर्ट में दाखिल उस चालान की कॉपी को शेयर किया जिसमें तत्कालीनी जिलाध्यक्ष के रूप में सीएम भजनलाल शर्मा का नाम भी था. अब बीजेपी ने कांग्रेस की इस मंशा पर सवाल उठाते हुए इसे राजनीतिक द्वेष की भावना के आरोप लगा दिए हैं. आरोप-प्रत्यारोप दोनों तरफ से हो रहे हैं, लेकिन हरियाणा चुनाव के चलते मुद्दे के चर्चा में आने की टाईमिंग को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं.
भरतपुर जिले के गोपालगढ़ गांव में 14 सितंबर 2011 को हुए विवाद और हिंसा ने राजस्थान की राजनीति और सामाजिक ताने-बाने को हिला कर रख दिया. इस कांड में, पुलिस की फायरिंग और हिंसा के कारण कई निर्दोष लोग मारे गए और अनेक घायल हुए. गोपालगढ़ कांड ने तत्कालीन कांग्रेस सरकार की नीतियों, प्रशासनिक विफलताओं और तुष्टिकरण की राजनीति को उजागर किया.
तत्कालीन अशोक गहलोत सरकार ने प्रभावित समुदायों के बीच संतुलन बनाने की बात की, लेकिन जो फैसले हुए उन पर एकतरफा होने के सवाल उठे. सांप्रदायिक तनाव को रोकने के बजाय मामला और बढ़ गया जिससे स्थिति और ज्यादा बिगड़ गई.
क्या है गोपालगढ़ कांड
गोपालगढ़ कांड प्रशासनिक स्तर पर असफलता का प्रतीक माना गया. तत्कालीन पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी विवाद को समय रहते सुलझाने में विफल रहे. 10 हजार से ज्यादा लोगों की भीड़ मौके पर जमा हो गई. प्रशासन हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा. अफवाहों का बाजार गर्म हुआ तो भीड़ में से पथराव व फायरिंग शुरू कर दी गई. माली समाज के एक युवक की आंख पर गोली लगी तो भाजपा के नेता भजनलाल शर्मा, जवाहर सिंह बेढम, गिरधारी तिवाड़ी ने प्रशासन के सामने विरोध व्यक्त किया, लेकिन कांग्रेस नेता जिला कलेक्टर व एसपी पर कोई कार्रवाई नहीं करने के लिए दबाव बनाते रहे. भीड़ काफी उग्र हो गई तो दंगाइयों पर फायरिंग के आदेश दिए गए. फायरिंग में 9 लोग मारे गए.
सवाल यह है कि यदि भीड़ को जमा होने से पहले ही हल्का बल प्रयोग कर तितर-बितर क्यों नहीं किया गया? यदि मौके की नजाकत भांप कर कार्रवाई की जाती तो फायरिंग में हुई मौतें शायद नहीं होती. तत्कालीन मुख्यमंत्री पर भी मामले को संजीदगी से नहीं लेने के आरोप लगे. प्रभावित परिवारों को न्याय दिलाने में असफल रहने के आरोप भी तत्कालीन सरकार पर लगे.
सरकारी अमला कानून-व्यवस्था को ठीक से संभालने में नाकाम दिखा, तो पीड़ितों को न्याय दिलाने के मामले में भी ढिलाई बरती. यहां तक कि मामले की जांच पर भी सवाल उठे. राजनीतिक विद्वेष की भावना से काम करने के आरोप लगे.
माना जाता है कि बीजेपी के तत्कालीन भरतपुर ज़िलाध्यक्ष भजनलाल शर्मा, जवाहर सिंह बेढम, गिरधारी तिवाड़ी जैसे नेताओं के सक्रिय दखल की बदौलत ही गोपालगढ़ के गुर्जर-माली समुदाय की सुरक्षा तय हो सकी लेकिन, इस सबके बावजूद गोपालगढ़ कांड के दौरान सामाजिक समरसता और शांति स्थापना के प्रयासों के बदले बीजेपी नेताओं को मुकदमों का सामना करना पड़ा.
13 साल पुराने मामले में सीएम भजनलाल शर्मा को घेरते हुए कांग्रेस ने अपनी मंशा जाहिर कर दी है. मुख्यमंत्री की विदेश यात्रा पर सवाल उठाते हुए कांग्रेस ने मुद्दा उठाया है. इस मामले को अचानक हवा देने के पीछे एक कारण यह भी माना जा रहा है कि हरियाणा में चुनाव हैं. सवाल यह उठ रहा है कि क्या पड़ोसी राज्य में चुनाव से पहले राजनीति फायदा लेने की कोशिश हो रही है या इस मुद्दे की बरसी पर याद करके इसे फिर से हवा दी जा रही है?