15 अगस्त को हमारी आजादी के 75 साल पूरे हो रहे हैं और इस मौके पर देश के सबसे लोकप्रिय चैनल Zee News ने 'शौर्य' नाम से एक खास सीरीज की शुरुआत की है, जिसमें हम देश की सुरक्षा के लिए बलिदान देने वाले जवानों की कहानी बता रहे हैं.
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कैप्टन मनोज पांडे की शौर्यगाथा: 15 अगस्त को हमारी आजादी के 75 साल पूरे हो रहे हैं और इस मौके पर देश के सबसे लोकप्रिय चैनल Zee News ने 'शौर्य' नाम से एक खास सीरीज की शुरुआत की है, जिसमें हम देश की सुरक्षा के लिए बलिदान देने वाले जवानों की कहानी बता रहे हैं. आज हम आपको कारगिल युद्ध (1999 Kargil War) के हीरो और परमवीर चक्र विजेता कैप्टन मनोज पांडे (Param Vir Chakra awardee Captain Manoj Pandey) की कहानी बता रहे हैं, जिन्होंने सरहद पर देश की रक्षा के लिए हंसते-हंसते जान न्यौछावर कर दी थी. कैप्टन मनोज पांडे का नाम भारतीय इतिहास में दर्ज है, जो कारगिल युद्ध में गोली लगने के बाद भी पाकिस्तानी घुसपैठियों से लोहा लेते रहे और अपने बटालियन के लिए एक मजूबत बेस तैयार किया.
कैप्टन मनोज पांडे ने परमवीर चक्र के लिए जॉइन की थी सेना
कैप्टन मनोज पांडे (Captain Manoj Pandey) जीआर गोरखा राइफल (Gorkha Regiment) के पहली बटालियन के जवान थे और बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी होगी कि उन्होंने 'परमवीर चक्र के लिए' के लिए भारतीय सेना जॉइन की थी. एनडीए के इंटरव्यू (Manoj Pandey NDA Interview) के दौरान जब मनोज पांडे से पूछा गया था आर्मी क्यों जॉइन करना चाहते हो? तो उन्होंने इंटरव्यू पैनल को बताया था कि 'परमवीर चक्र के लिए' वह सेना जॉइन करना चाहते हैं. उनके इस जवाब से पैनल में मौजूद सभी लोग हैरान रह गए थे और कहा था कि पता है कि ये कब दिया जाता है? इस पर मनोज पांडे ने अपने जवाब में कहा था, 'हां मुझे पता है कि परमवीर चक्र (Param Vir Chakra) बहुत सारे लोगों को मरणोपरांत मिला है, लेकिन मैं कोशिश करूंगा कि ये मुझे जीवित रूप में मिले.'
गोली लगने के बाद भी पाकिस्तानी बंकरो को किया नष्ट
गोरखा राइफल (Gorkha Regiment) की पहली बटालियन के कैप्टन मनोज पांडे (Captain Manoj Pandey) कारगिल युद्ध (1999 Kargil War) के दौरान लद्दाख के बटालिक सेक्टर में तैनात थे और उन्होंने जुबार टॉप पर कब्जे के लिए अपनी जान की परवाह किए बिना दुश्मनों को धूल चटाई थी. कैप्टन मनोज पांडे दुश्मन की गोलीबारी के बीच भी आगे बढ़ते रहे और कंधे व पैर में गोली लगने के बावजूद दुश्मन के बंकर में घुस गए. उन्होंने सीधी लड़ाई में दो दुश्मनों को मार गिराया और पहला बंकर नष्ट किया. गोली लगने के बाद कैप्टन मनोज पांडे काफी तकलीफ में थे, लेकिन इसकी परवाह किए बिना वो आगे बढ़ते रहे और दुश्मन के बंकरों पर हमला करते रहे. आखिरी बंकर तक पहुंचते-पहुंचते वे बुरी तरह जख्मी हो चुके थे. तीन गोलियां मनोज पांडे (Captain Manoj Pandey) के हेलमेट को चीरती हुई उनके सिर में घुस गई और वो शहीद हो गए. हालांकि, वह अपनी बटालियन के जवानों के लिए मजबूत बेस तैयार कर दिया था और गोरखा राइफल (Gorkha Regiment) के जवानों ने दुश्मन को चुन-चुन कर मौत के घाट उतार दिया और खालूबार (Khalubar Hills) पर कब्जा कर लिया. खालूबार पर कब्जा करने का असर यह हुआ कि पाकिस्तान के पास जितने भी डिफेंसिव पोजिशन थे वो उसे भी संभाल नहीं पाए और दूसरी चोटियों से भी उन्होंने भागना शुरू कर दिया.
मरणोपरांत मिला सेना का सर्वोच्च मेडल परमवीर चक्र
'परमवीर चक्र' पाने का कैप्टन मनोज पांडे (Captain Manoj Pandey) का सपना तो पूरा हुआ, लेकिन यह मेडल लेने के लिए वह इस दुनिया में नहीं थे. कैप्टन मनोज पांडे को की अदम्य साहस के लिए उन्हें मरणोपरांत सेना का सर्वोच्च मेडल परमवीर चक्र (Param Vir Chakra) से सम्मानित किया गया. ये पदक कैप्टन मनोज पांडे के पिता गोपी चंद पांडे ने 26 जनवरी 2000 को तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन (KR Narayanan) से ग्रहण किया था.
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