Congress: देश के लिए ये कानून जरूरी.. प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के पक्ष में कांग्रेस की सुप्रीम कोर्ट में दस्तक
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Congress: देश के लिए ये कानून जरूरी.. प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के पक्ष में कांग्रेस की सुप्रीम कोर्ट में दस्तक

Places of Worship Act: प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के समर्थन में कांग्रेस पार्टी ने भी सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. कांग्रेस ने इस कानून को लेकर दायर याचिकाओं में अपना पक्ष भी सुने जाने की मांग की है.

Congress: देश के लिए ये कानून जरूरी.. प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के पक्ष में कांग्रेस की सुप्रीम कोर्ट में दस्तक

Places of Worship Act: प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के समर्थन में कांग्रेस पार्टी ने भी सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. कांग्रेस ने इस कानून को लेकर दायर याचिकाओं में अपना पक्ष भी सुने जाने की मांग की है. पार्टी के महासचिव के सी वेणुगोपाल के जरिए दाखिल इस अर्जी में कहा गया है कि 1991 में संसद ने यह कानून तब पास किया कि जब कांग्रेस पार्टी सत्ता में थी. सदन में जनता दल के साथ बहुमत का आंकड़ा उसके पास था. हालांकि यह कानून पहले से कांग्रेस के घोषणापत्र का हिस्सा रहा है. पार्टी ने कहा है कि चूंकि सदन में  इस कानून को पेश करने और पास करवाने में उसके चुने हुए सदस्यों की भूमिका थी. लिहाजा उसे इस एक्ट को चुनौती देने वाली याचिकाओं के खिलाफ उसे भी अपना पक्ष रखने का मौका मिलना चाहिए.

कांग्रेस की दलील

पार्टी की ओर से दायर याचिका में कहा गया यह कानून भारत के धर्मनिरपेक्ष ढांचे के मुताबिक है. पार्टी ने इस कानून को चुनौती देने वाली अर्जियों का विरोध करते हुए याचिकाकर्ताओं की मंशा पर सवाल खड़ा किया है. याचिका में कहा गया है कि इस एक्ट में कोई भी बदलाव देश  की सामाजिक सद्भावना और  सेकुलर ढांचे के खिलाफ होगा और राष्ट्र की एकता/ अंखडता को नुकसान पहुंचाएगा.

SC में कानून को लेकर याचिकाएं

1991 का ये कानून कहता है कि किसी भी धार्मिक स्थल का जो स्वरूप आजादी के दिन यानि 15 अगस्त 1947 को था,  वही रहेगा, उसमे कोई बदलाव नहीं किया जाएगा. सुप्रीम कोर्ट में पहले से इस एक्ट के समर्थन और विरोध में में कई याचिकाए लंबित है. इनमे से विश्व भद्र पुजारी पुरोहित महासंघ, डॉक्टर सुब्रह्मण्यम स्वामी, अश्विनी उपाध्याय, करूणेश शुक्ला, अनिल त्रिपाठी ने इस एक्ट को चुनौती दी है. याचिकाओं में कहा गया है कि यह कानून हिंदू, सिख, बौद्ध और जैन समुदाय को अपने उन पवित्र स्थलों पर दावा करने से रोकता है. जिनकी जगह पर जबरन मस्जिद, दरगाह या चर्च बना दिए गए थे.  न्याय पाने के लिए कोर्ट आने के अधिकार से वंचित करता मौलिक अधिकार का हनन है. वही जमीयत उलेमा ए हिंद , ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड , बनारस की ज्ञानवापी और मथुरा की ईदगाह कमेटी ,आरजेडी नेता मनोज झा, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता प्रकाश करात, मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर जूलियो रिबेरो और बाकी लोगों ने इस एक्ट के समर्थन में याचिका दाखिल की है.

धार्मिक स्थलों पर विवाद पर क्या है स्थिति

12 दिसंबर को हुई पिछली सुनवाई मे सुप्रीम कोर्ट साफ कर चुका है कि इस मसले की सुप्रीम कोर्ट में पेंडेसी के दौरान देश में धार्मिक स्थलों पर दावे को लेकर कोई नया मुकदमा अभी निचली अदालतें नहीं सुनेगी. यही नहीं,अभी कई मस्जिद-दरगाह पर दावे को लेकर जो विभिन्न केस अलग अलग अदालतों में लंबित भी है, उनमें भी कोई प्रभावी आदेश अदालतें नहीं देंगी. कोर्ट ने तब केंद्र सरकार को 4 हफ्ते में जवाब दाखिल करने को कहा था.. कोर्ट में इस मसले पर अगली सुनवाई 17 फरवरी को होगी.

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