Aligarh Exhibition: अलीगढ़ का अनोखा 'महाकुंभ', 145 साल पुरानी नुमाइश, जहां हिन्दू-मुस्लिम और ईसाई सब होते हैं शरीक
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Aligarh Exhibition: अलीगढ़ का अनोखा 'महाकुंभ', 145 साल पुरानी नुमाइश, जहां हिन्दू-मुस्लिम और ईसाई सब होते हैं शरीक

Aligarh Exhibition: अलीगढ़ प्रदर्शनी हर साल आयोजित की जाती है. जहां करीब एक महीने तक अलग-अलग और दुर्लभ वस्तुएं की खरीदारी होती है. देश के विभिन्न राज्यों से व्यवसायी भी अलीगढ़ नुमाइश में आते हैं.

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Aligarh Exhibition: उत्तर प्रदेश का जनपद अलीगढ़ ताला और तालीम के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है. इसी ताले के शहर अलीगढ़ मे लगती है ऐतिहासिक नुमाइश. जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं. अलीगढ़ नुमाइश मैदान में हर साल लगभग 28 दिनों तक प्रदर्शन लगती है और यहां पर बहुत से रंगारंग कार्यक्रम होते हैंय. इसे आम जनता 'अलीगढ़ नुमाइश' के नाम से जानती है. आइए एक नजर डालते हैं अलीगढ़ की नुमाइश की शुरुआत कब हुई थी.

अलीगढ़ की पहचान नुमाइश
नुमाइश में विभिन्न झूले, सर्कस, और अन्य मनोरंजन के साधन बच्चों और परिवारों के लिए एक बड़ी खुशी का स्रोत होते हैं. अलीगढ़ नुमाइश न केवल अलीगढ़ की पहचान है, बल्कि यह व्यापारिक महत्व रखती है. समाज के सभी वर्गों को एक साथ लाने का भी एक मजबूत माध्यम है. यहां खाना-पीना, शॉपिंग, बिजनेस के साथ मनोरंजन के लिए बहुत कुछ होता है. अलग-अलग राज्यों का सामान आपको एक जगह पर मिल जाएगा.

1880 में लगी थी पहली बार नुमाइश
पहली बार साल 1880 में अलीगढ़ जिला मेला नाम से आयोजन हुआ था. उस समय इसमें घोड़ों की प्रदर्शनी भी लगाई गई थी. इसमें अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के घोड़ों ने भी भाग लिया. अलीगढ़ औद्योगिक एवं कृषि प्रदर्शनी प्रतिवर्ष की भांति इस बार 1 फरवरी से 28 फरवरी तक आयोजित की जा रही है.

 145 साल पुराना इतिहास
अलीगढ़ नुमाइश का इतिहास 145 साल पुराना है. स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान हिंदू, मुस्लिम और अन्य वर्ग नुमाइश मैदान में एकत्र हुए थे और अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा बनाया था. यह नुमाइश पहली बार 1880 में 'अलीगढ़ जिला मेला' नाम से आयोजित की गई थी. तब इसमें घोड़ों की प्रदर्शनी भी लगाई गई थी. अलीगढ़ नुमाइश मैदान में एक मंदिर के अलावा मस्जिद भी है. यहां श्मशान घाट के साथ कब्रिस्तान भी है.

एएमयू के संस्थापक ने किया था मंचन
नुमाइश का अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से घनिष्ठ संबंध है. इसकी महत्ता और लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि 6 फरवरी 1894 को एएमयू के संस्थापक सर सैयद अहमद खान ने फरवरी 1894 में मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल (एमएओ) कॉलेज फंड के लिए एक नाटक का मंचन किया था. यहां पर एक पुस्तक की दुकान भी स्थापित की थी. पहली बार नुमाइश में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के घोड़ों ने भी भाग लिया था.

अलग-अलग राज्यों से आते हैं व्यापारी
उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले में स्थित 145 साल पुरानी ऐतिहासिक प्रदर्शनी में आने वाले व्यापारी देश के अन्य राज्यों के साथ-साथ कश्मीर से भी पश्मीना शॉल सहित हाथ से कढ़ाई किए गए शॉल, सूट, साड़ियां आदि बेचते हैं. देश के विभिन्न राज्यों से व्यवसायी भी यहां आते हैं. 

पारंपरिक कलाओं का अद्भुत संगम
शुरुआत में यह नुमाइश स्थानीय व्यापारियों और कारीगरों के लिए एक मंच हुआ करती थी. जहां वे अपने उत्पादों और कृतियों को प्रदर्शित कर सकते थे, लेकिन धीरे-धीरे यह एक भव्य आयोजन में बदल गई. जहां न केवल व्यापारिक गतिविधियां होती हैं, बल्कि सांस्कृतिक कार्यक्रम, खेलकूद, प्रदर्शनियां और मनोरंजन के आयोजन भी शामिल होते हैं. इस एग्जीविशन में कृषि, हस्तशिल्प, आधुनिक तकनीक और पारंपरिक कलाओं का अद्भुत संगम देखने को मिलता है.

होते हैं रंगारंग कार्यक्रम
करीब 28 दिनों तक चलने वाली इस प्रदर्शनी में बॉलीवुड कलाकार भी अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं. अलीगढ़ मेले में झूले, सर्कस, खाने-पीने की दुकानें, खिलौने और कई अन्य दुकानें भी लगती हैं. यहां एक मंदिर के साथ एक मस्जिद भी है. भारत में होने वाली सभी प्रदर्शनियों की तरह अलीगढ़ प्रदर्शनी में भी झूले, सर्कस, खाने-पीने के स्टॉल और खिलौने हैं जो लोगों को अलग-अलग तरीकों से आकर्षित करते हैं.

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