माघ पूर्णिमा के मौके पर संगम स्नान के साथ पूरा हो जाएगा महाकुंभ का कल्पवास, यहां जानें पूरा नियम
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माघ पूर्णिमा के मौके पर संगम स्नान के साथ पूरा हो जाएगा महाकुंभ का कल्पवास, यहां जानें पूरा नियम

Magh Purnima Kalpavas: सनातन धर्म के मुताबिक माघी पूर्णिमा के दिन कल्पवास समाप्त हो जाता है ऐसे में इस साल तिथियों के मुताबिक 12 फरवरी, माघ पूर्णिमा के दिन कल्पवास की समाप्ति हो रही है. ऐसे में सभी कल्पवासी विधिपूर्वक पूजा करते हुए पूर्णिमा के मौके पर गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के पवित्र संगम में स्नान कर कल्पवास को कंप्लिट कर लेंगे. स्नान के बाद पूजन और दान करते हुए कल्पवासी अपने घर की ओर लौट जाएंगे.

माघ पूर्णिमा के मौके पर संगम स्नान के साथ पूरा हो जाएगा महाकुंभ का कल्पवास, यहां जानें पूरा नियम

Magh Purnima Kalpavas: महाकुंभ में व्रत, संयम और सत्संग का कल्पवास करने का विशिष्ट विधान है. इस वर्ष महाकुंभ में 10 लाख से अधिक लोगों ने विधिपूर्वक कल्पवास किया है. पौराणिक मान्यता है कि माघ मास पर्यंत प्रयागराज में संगम तट पर कल्पवास करने से सहस्त्र वर्षों के तप का फल मिलता है. महाकुंभ में कल्पवास करना विशेष फलदायी माना जाता है.

12 फरवरी को खत्म हो जाएगा कल्पवास

परंपरा के अनुसार 12 फरवरी, माघ पूर्णिमा के दिन कल्पवास की समाप्ति हो रही है. सभी कल्पवासी विधिपूर्वक पूर्णिमा तिथि पर पवित्र संगम में स्नान कर कल्पवास का पारण करेंगे. पूजन और दान के बाद कल्पवासी अपने अस्थाई आवास त्याग कर फिर से अपने घरों की ओर लौटेंगे.

संगम तट पर कर रहे हैं कल्पवास

आस्था और अध्यात्म के महापर्व में इस वर्ष महाकुंभ में देश के कोने-कोने से आए लोग संगम तट पर कल्पवास कर रहे हैं. शास्त्रों के अनुसार कल्पवास की समाप्ति 12 फरवरी, माघ पूर्णिमा के दिन होगी. पद्मपुराण के अनुसार पौष पूर्णिमा से माघ पूर्णिमा तक एक माह संगम तट पर व्रत और संयम का पालन करते हुए सत्संग का विधान है. कुछ लोग पौष माह की एकादशी से माघ माह में द्वादशी के दिन तक भी कल्पवास करते हैं.

पूर्णिमा के दिन होगा पारण

12 फरवरी के दिन कल्पवासी पवित्र संगम में स्नान कर कल्पवास के व्रत का पारण करेंगे. पद्मपुराण में भगवान दत्तात्रेय के बनाए नियमों के अनुसार कल्पवास का पारण किया जाता है. कल्पवासी संगम स्नान कर अपने तीर्थपुरोहितों से नियम अनुसार पूजन कर कल्पवास व्रत पूरा करेंगे.

शास्त्रों के मुताबिक ये है नियम

शास्त्रों के अनुसार कल्पवासी माघ पूर्णिमा के दिन संगम स्नान कर व्रत रखते हैं. इसके बाद अपने कल्पवास की कुटीरों में आकर सत्यनारायण कथा सुनने और हवन पूजन करने का विधान है. कल्पवास का संकल्प पूरा कर कल्पवासी अपने तीर्थपुरोहितों को यथाशक्ति दान करते हैं. साथ ही कल्पवास के प्रारंभ में बोए गए जौं को गंगा जी में विसर्जित करेंगे और तुलसी जी के पौधे को साथ घर ले जाएंगे.

ये है तुलसी का महत्व

तुलसी जी के पौधे को सनातन परंपरा में मां लक्ष्मी का रूप माना जाता है. महाकुंभ में बारह वर्ष तक नियमित कल्पवास करने का चक्र पूरा होता है. यहां से लौटकर गांव में भोज कराने का विधान है. इसके बाद ही कल्पवास पूर्ण माना जाता है. (रिपोर्ट- आईएएनएस)

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