उत्तर प्रदेश के बिसरख गांव में नहीं है रावण को जलाने की परंपरा, उल्टा धूमधाम से की जाती है इनकी पूजा. ग्रामीणों का कहना हैं कि रावण उनके गांव का बेटा है और यहां का देवता भी है.
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बिसरख: उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर में ग्रेटर नोएडा से करीबन 15 किमी दूर बसा बिसरख गांव है. कहते हैं कि इसी जगह पर लंकेश का जन्म हुआ और यह रावण के गांव के रूप में जाना जाता है. इसलिए ही यहां पर न तो दशहरा मनाया जाता है और न ही रावण के पुतले को जलाया जाता है. कई दशक पहले जब इस गांव के लोगों ने रावण के पुतले को जलाया था तो यहां कई लोगों की मौत हो गई थी. इसके बाद गांव के लोगों ने मंत्रोच्चारण के साथ रावण की पूजा की तब जाकर यहां शांति हुई थी. अब ये बात कितनी सच है, कितनी नहीं ये तो हम नहीं कह सकते, लेकिन हां इस गांव में दशहरा नहीं मनाया जाता है.और न ही रावण के पुतले को जलाया जाता है.
दशहरा के दिन यहां मनता हैं मातम
ऐसा माना जाता है कि बिसरख रावण के पिता विश्रवा ऋषि का गांव हुआ करता था. उन्हीं के नाम पर इस जगह का नाम बिसरख पड़ा था. विश्व ऋषि यहां रोज पूजा करने के लिए आया करते थे. उनके बेटे रावण का जन्म भी यही हुआ था. रावण के बाद कुंभकरण, सूर्पणखा और विभीषण ने भी यही जन्म लिया था. पूरे देश में जब श्री राम की जीत की खुशियां मन रही होती है. तब इस गांव में रावण की मौत का भी शौक मनाया जाता है. दशहरा के दिन यहां लोग मातम मनाते हैं.
गांव का बेटा है रावण
यहां के लोगों का कहना है कि रावण उनके गांव का बेटा है और यहां का देवता भी है. यही कारण है कि ग्रामीणों ने आजतक रामलीला नहीं देखी है. दशहरा के दिन यहां घर में सुबह-शाम पकवान बनाया जाता है, लेकिन न तो गांव में रामलीला होती है और न ही रावण का पुतला जलाया जाता है.
दुधेश्वर नाथ शिवलिंग को रावण ने किया स्थापित
बता दें, गांव के लोगों ने यहां दो बार रामलीला का आयोजन किया और रावण दहन भी किया था. लेकिन दोनों बार रामलीला के समय किसी न किसी की मौत हो गई. इसलिए अब यहां कभी रावण का दहन नहीं किया जाता. बिसरख की आत्मा की शांति के लिए हवन किया जाता है. इसके अलावा पूरे देश में बिसरख एक ऐसी जगह है, जहां अष्टभुजीय शिवलिंग स्थित है. यहां नवरात्रि के दौरान शिवलिंग पर बलि चढ़ती है. हिंडन नदी के मुहाने पर बने स्थित दुधेश्वर नाथ शिवलिंग को रावण ने ही भक्ति भाव के साथ स्थापित किया था.
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