Dev Diwali 2024: देव दिवाली यानी देव दीपावली का सनातन धर्म में खास महत्व है. खास तौर पर ये त्योहार दीपावली के 15 दिनों के बाद वाराणसी में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. पढ़िए इससे जुड़ी पौराणिक कथा.
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Dev Diwali 2024: देव दिवाली, जिसे देव दीपावली भी कहते हैं. यह सनातन धर्म में खास महत्व रखता है. यह त्योहार दीपावली के ठीक 15 दिनों के बाद कार्तिक पूर्णिमा की रात धूमधाम से मनाया जाता है. खास तौर पर शिव की नगरी काशी में इसकी अलग ही रौनक देखने को मिलती है. मान्यता है कि महादेव ने जब राक्षस त्रिपुरासुर पर विजय पाया था, तब दीप जलाकर उत्सव मनाया गया था. तभी से कार्तिक पूर्णिमा की रात को गंगा घाट पर हजारों तेल के दीपक जलाए जाते हैं. इसके साथ ही अनुष्ठान के साथ-साथ भव्य जुलूस भी निकाले जाते हैं. देव दिवाली पर काशी में गंगा आरती का विशेष महत्व होता है. कहते हैं इस दिन देवता स्वर्ग से धरती पर आते हैं.
क्यों मनाते हैं देव दिवाली?
ज्योतिष के जानकारों की मानें तो देवता इस दिन गंगा में स्नान करके दीपोत्सव मनाते हैं. इसी दिन भगवान विष्णु ने मछली का रूप धारण किया था. इतना ही नहीं इस दिन महादेव ने त्रिपुरासुर नाम के राक्षस का वध किया था. इसका जिक्र शिव पुराण में मिलता है. पौराणिक कथा के मुताबिक, जब कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया, तो उसके तीन पुत्रों ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की और अमरता का वरदान मांगा, लेकिन जब उन्होंने इसके बजाय अन्य वर मांगने को कहा तो त्रिपुरासुर ने तीन अलग-अलग नगरों की मांग की. उसने वरदान मांगा कि जब ये तीन नगर एक सीध में आएंगे, तब ही कोई उनका वध कर पाएगा.
वरदान मिलते ही पूरे ब्रह्मांड में त्रिपुरासुर ने आतंक मचा दिया. जिससे परेशान देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थन कर उसके आतंक को खत्म करने का निवेदन किया. फिर कार्तिक पूर्णिमा को महादेव ने त्रिपुरासुर का वध कर दिया. जिसके बाद सभी देवता शिव की नगरी काशी आए और गंगा में स्नान किया. इसके बाद गंगा नदी के किनारे उन्होंने दीप जलाकर दीपावली मनाई. तब से यह त्योहार धूमधाम से हर साल मनाया जाता है.
क्या है पौराणिक महत्व?
देव दिवाली पर खासतौर पर वाराणसी में गंगा आरती की जाती है. गंगा घाट रंग बिरंगी रोशनी से सजाया जाता है. मान्यता है कि अगर कोई भी इस दिन गंगा स्नान करता है और भगवान शिव की उपासना करता है तो उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं. इतना ही नहीं वह मोक्ष भी प्राप्त करता है. अगर कोई गंगा स्नान नहीं कर पाता है तो वह जल में गंगाजल मिलाकर भी स्नान कर सकता है. ऐसा करने से भी उसकी सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं. इस दिन भगवान सत्यनारायण की पूजा करना या उनकी कथा सुनना शुभ माना जाता है. साथ ही, अपने पूर्वजों की आत्माओं की शांति के लिए इस दिन दीप जलाने की परंपरा है. ऐसा करने से पूर्वजों की विशेष कृपा बनी रहती है.
डिस्क्लेमर: यहां बताई गई सारी बातें धार्मिक मान्यताओं पर आधारित हैं. इसकी विषय सामग्री और एआई द्वारा काल्पनिक चित्रण का Zeeupuk हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.
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