Azadi Ka Amrit Mahotasava Bareilly: बरेली में जंगे आजादी का जब भी जिक्र होगा तब नवाब खान बहादुर खान का नाम जरुर लिया जाएगा..1857 की क्त्रांति में खान बहादुर खान की अगुआई में ही अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह हुआ था.. लगभग एक वर्ष तक बरेली फिरंगियों से आजाद रही थी..
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अजय कश्यप/बरेली: मुल्क (देश) आजादी की 75 वीं वर्षगांठ पर आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है. बरेली के खान बहादुर खान ने अपने क्रांतिकारियों के साथ देश को पहले भी आजादी दिलाई थी. पी के बरेली में जब भी आजादी की लड़ाई की बात होगी तो रुहेला सरदार खान बहादुर खान का नाम सबसे पहले लिया जाएगा. खान बहादुर खान ने स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई थी और ब्रिटिश हुकूमत की ईंट से ईंट से बजा दी थी. लेकिन आजादी के अमृत महोत्सव के मौके पर उनके वंशज में खासा निराशा छाई हुई है क्योंकि सरकार का उनकी मजार को लेकर उनके वंशज को लेकर सौतेला रवैयाअपना रही है.
अंग्रेजों के खिलाफ खोला था मोर्चा
1857 की क्रांति में क्रांतिकारी हाफिज रहमत खान के पोते खान बहादुर खान भी इस जंग में कूद पड़े और अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. 24 मार्च, 1860 को शनिवार सुबह 7 बजकर 10 मिनट पर बरेली की जनता के सामने बरेली कोतवाली में इस महान क्रांतिकारी को फांसी पर लटका दिया गया. एक घंटे तक उनका शरीर फांसी पर झूलता रहा. बाद में शव को जेल के भीतर बनाई गई कब्र में दफना दिया गया ताकि लोग उनकी मजार न बना दें. लंबे इंतजार के बाद आखिरकार खान बहादुर खान की मजार को जेल से बाहर किया गया लेकिन अब खान बहादुर खान की मजार बदहाली के दिन देख रही हैं.
बरेली को अंग्रेजों से कराया था आजाद
खान बहादुर खान ने 1857 में बरेली में कई फिरंगी अधिकारियों को मौत के घाट उतारा था जिसके बाद उन्होंने बरेली को 31 मई 1857 को अंग्रेजो के चंगुल से मुक्त करवाया. कुमत चलाने के लिए खान बहादुर खां ने एक अन्य क्रांतिकारी नेता मुंशी शोभाराम को वजीर-ए-आजम घोषित किया. ब अंग्रेजों का पूरे देश पर शासन था उस दौरान क्रांतिकारियों का बरेली में लगभग 10 महीने पांच दिन तक कब्जा रहा.
खान बहादुर खान के बलिदान को सरकार भूल-लियाकत
जी मीडिया बरेली के भूड़ मोहल्ले में जब खान बहादुर खान के घर पहुंची तो उनकी घर की दयनीय दशा साफ तौर पर उनकी बेबसी को बयां कर रहा था. खान बहादुर खान के वंशज लियाकत अली के मुताबिक खान बहादुर खान की बलिदान को आज सरकार भूल गई है. उनकी मजार का बुरा हाल है. लेकिन सरकार को उनकी तरफ से कोई मदद नहीं मिल रही है. लियाक़त के भाई साइकल का पंचर जोड़ते थे. पिछले कुछ दिन पहले उनका इंतक़ाल हो गया था. लियाक़त के मुताबिक इस वक़्त उनकी माली हालत बेहद खराब है. लेकिन सरकार 15 अगस्त और 26 जनवरी को एक शॉल को उड़ा कर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेते हैं. याक़त की पत्नी के मुताबिक उनकी जवान लड़कियां घर बैठी हैं लेकिन माली हालत के चलते उनका विवाह नहीं हो पा रहा है. इतना ही नहीं अच्छे कपड़े न होने के चलते वो किसी शादी समारोह में शरीक नहीं होते हैं. उनके मुताबिक देश आज खान बहादुर खान के बलिदान को भूल गया है.
अंग्रेजों को था उनसे डर
खान बहादुर खान को पुरानी कोतवाली में फांसी देने के बाद अंग्रेजों को भय था कि लोग वहां पर इबादत न करने लगे जिसके कारण खान बहादुर खान को जिला जेल में बेड़ियों के साथ ही दफन कर दिया गया. जेल में बंद खान बहादुर खान की कब्र को काफी लम्बी जद्दोजेहाद के बाद जेल से बाहर निकला जा सका. अब जिला जेल यहां से शिफ्ट हो जाने के कारण शहीद की मजार की देखभाल करने वाला कोई नहीं बचा हैं. शहीद की यह मज़ार सिर्फ एक यादगार है पर उन्हें याद करने यहां कोई नहीं आता.हद तो यह है कि इसके रखरखाव के लिए भी यहां कोई नहीं है.बस इनके शहीद दिवस पर लोग यहां सिर्फ खानापूर्ति करने आते हैं. इस मज़ार के अलावा इस वीर क्रांतिकारी की कोई निशानी इस शहर में नहीं जो लोगों को उसकी याद दिलाए.
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