Advertisement
trendingPhotos2633436
photoDetails1hindi

जानिए उस युद्ध की अनसुनी गाथा, जब अकबर के लिए काल बनी थी महाराणा प्रताप की सेना, 36000 मुगलों ने टेके थे घुटने!

महाराणा प्रताप का नाम सुनते ही सबके दिमाग में सबसे पहले हल्दीघाटी के युद्ध का ही ख्याल आता है. लेकिन बहुत सारे लोग राजस्थान की शान कहे जाने वाले महाराणा प्रताप के उस युद्ध से आज भी अंजान हैं जिसमें मुगल सैनिकों के 36000 सिपाहियों ने घुटने टेक दिए थे.

हल्दीघाटी का युद्ध

1/5
हल्दीघाटी का युद्ध

महाराणा प्रताप के बारे में हमेशा यहीं बताया गया है की कैसे इन्हें हल्दीघाटी के युद्ध में हार का सामना करना पड़ा था और अकबर की एकतरफा जीत हुई थी. लेकिन आज हम दिवेर में हुए उस युद्ध की दास्तान सुनाएंगे जिसमें लगभग 36000 मुगलों ने घुटने टेक दिए थे. 

 

भामाशाह की मदद

2/5
भामाशाह की मदद

हल्दीघाटी के युद्ध के बाद भामाशाह की मदद से महाराणा प्रताप को लगभग 40  हजार सैनिकों की सेना बनाने में बहुत मदद मिली थी जिससे अकबर की खूंखार सेना का सामना किया जा सके. 

 

महाराणा प्रताप की रणनीति

3/5
महाराणा प्रताप की रणनीति

इसके अलावा युद्ध के लिए दिवेर को चुनना उनकी रणनीति को सबसे मजबूत हिस्सा था. ऐसा इसलिए क्योंकि ये सेना दुश्मनों के लिए सबसे बड़े प्रवेश द्वार में से एक माना जाता है था.

 

दिवेर का युद्ध

4/5
दिवेर का युद्ध

1582 में विजयादशमी के दिन इस भीषण युद्ध की शुरुआत हुई थी और जीत को लेकर महाराणा प्रताप को अपनी रणनीति और अपनी सेना के ऊपर पूरा भरोसा था. उन्होंने सेना को 2 हिस्सों में बांट दिया जिसमें सेना की एक टुकड़ी का नेतृत्व उनके बेटे अमर सिंह कर रहे थे. महाराणा प्रताप और उनकी सेना ने कुंभलगढ़ से 40 किमी दूर देवर गांव में मुगल चौकी पर सबसे पहला हमला किया. 

 

मुगलों का आत्मसमर्पण

5/5
मुगलों का आत्मसमर्पण

युद्ध के दौरान अमर सिंह ने मुगल सेनापति सुल्तान खान पर ऐसा जोरदार वार किया की वह भाले के साथ जमीन में धंस गया. अमर सिंह का वार इतना जोरदार था की कोई भी सैनिक उस भाले को निकाल नहीं पाया. अपने सेनापति की ऐसी हालत देख कर मुगलों में अफरा-तफरी मच गई और लगभग 36000 मुगल सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर दिया. इस अभियान में महाराणा प्रताप ने चित्तौड़, अजमेर और मांडलगढ़ को छोड़कर  पूरे मेवाड़ को फिर से जीत लिया.

ट्रेन्डिंग फोटोज़