महाराणा प्रताप के बारे में हमेशा यहीं बताया गया है की कैसे इन्हें हल्दीघाटी के युद्ध में हार का सामना करना पड़ा था और अकबर की एकतरफा जीत हुई थी. लेकिन आज हम दिवेर में हुए उस युद्ध की दास्तान सुनाएंगे जिसमें लगभग 36000 मुगलों ने घुटने टेक दिए थे.
हल्दीघाटी के युद्ध के बाद भामाशाह की मदद से महाराणा प्रताप को लगभग 40 हजार सैनिकों की सेना बनाने में बहुत मदद मिली थी जिससे अकबर की खूंखार सेना का सामना किया जा सके.
इसके अलावा युद्ध के लिए दिवेर को चुनना उनकी रणनीति को सबसे मजबूत हिस्सा था. ऐसा इसलिए क्योंकि ये सेना दुश्मनों के लिए सबसे बड़े प्रवेश द्वार में से एक माना जाता है था.
1582 में विजयादशमी के दिन इस भीषण युद्ध की शुरुआत हुई थी और जीत को लेकर महाराणा प्रताप को अपनी रणनीति और अपनी सेना के ऊपर पूरा भरोसा था. उन्होंने सेना को 2 हिस्सों में बांट दिया जिसमें सेना की एक टुकड़ी का नेतृत्व उनके बेटे अमर सिंह कर रहे थे. महाराणा प्रताप और उनकी सेना ने कुंभलगढ़ से 40 किमी दूर देवर गांव में मुगल चौकी पर सबसे पहला हमला किया.
युद्ध के दौरान अमर सिंह ने मुगल सेनापति सुल्तान खान पर ऐसा जोरदार वार किया की वह भाले के साथ जमीन में धंस गया. अमर सिंह का वार इतना जोरदार था की कोई भी सैनिक उस भाले को निकाल नहीं पाया. अपने सेनापति की ऐसी हालत देख कर मुगलों में अफरा-तफरी मच गई और लगभग 36000 मुगल सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर दिया. इस अभियान में महाराणा प्रताप ने चित्तौड़, अजमेर और मांडलगढ़ को छोड़कर पूरे मेवाड़ को फिर से जीत लिया.
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