CHHATISGARH NEWS: ये देश का दूसरा और छत्तीसगढ़ का एकलौता सबसे छोटा पोलिंग स्टेशन है. चुनाव आयोग की टीम यहां दो दिन पहले ट्रैक्टर या अन्य साधन से पहुंचती है. टीम दो रात यहीं रुककर मतदान करवाती है. हर बार यहां 100 फीसदी मतदान होता है.
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Chhattisgarh Assembly Election: लोकतंत्र में एक-एक वोट बड़ा कीमती होता है. एक वोट करे चोट जैसे नारों से हर साल सौ फीसदी मतदान कराने की अपील की जाती है. राजस्थान में तो एक वोट की वजह से एक नेता सीएम बनते बनते रह गए थे. लेकिन क्या आप जानते हैं कि छत्तीसगढ़ में एक ऐसा पोलिंग बूथ है, जहां हर विधानसभा चुनाव में 100 फीसदी पोलिंग होती है. यहां पर बात छत्तीसगढ़ के सबसे कम वोटरों वाले पोलिंग बूथ (Smallest polling booth) शेराडांड़ है. जहां पहुंचना अपने आप में एक चुनौती वाला काम है. यहां बस 5 वोटर हैं. जिनके लिए चुनाव आयोग को खास इंतजाम करने पड़ते हैं.
सबसे छोटा पोलिंग बूथ
छतीसगढ़ का ये बूथ है लोकतंत्र की आखिरी कतार में खड़े मतदाता तक भी पहुंचता है. दरअसल छतीसगढ़ की पहली विधानसभा भरतपुर सोनहत के शेराडांड़ गांव में केवल 5 मतदाता हैं. इनके लिए अलग से मतदान केंद्र बनाता है. ये मतदान केंद्र छतीसगढ़ का सबसे छोटा मतदान केंद्र है और सम्भवतः देश का भी सबसे छोटा मतदान केंद्र शेराडांड़ ही है.
मुश्किल है यहां पहुंचना
ये स्पेशल पोलिंग बूथ कोरिया जिले के मुख्यालय बैकुंठपुर से करीब 80 किलोमीटर दूर है. जिसमें करीब 20 किलोमीटर का सफ़र तो आप बड़ी गाड़ी से कर सकते हैं, लेकिन आखिर के 8 किलोमीटर का सफर आपको साईकिल, मोटर साइकिल या ट्रैक्टर से करना पड़ेगा. ऐसे में ज़ी न्यूज़ की टीम 72 किलोमीटर का सफर तय कर चंदहा पहुंची और इस पोलिंग बूथ का जायजा लिया. शेराडांड़ पहुंचने में Zee News की टीम की मदद सोनहत के CEO एलेकजेंडर पन्ना ने की. आसपास के करीब 7 से 8 मोटर साईकिल वालों को उन्होंने पहले से यहां बुला लिया था, जो जंगल के रास्ते में गाड़ी चलाने में एक्सपर्ट थे. इसके साथ ही वो जंगल में जानवरों के खतरे से भी बचाने में सक्षम थे.
सूनसान बियावान जंगल और नदी का किनारा
मोटर साइकिल पर सवार होकर हमारी टीम निकल पड़ी शेराडांड़ गांव की तरफ़. घनघोर जंगल और सड़क का कोई नामों निशान दूर दूर तक नहीं दिख रहा था. जंगल के बीच रास्ता इतना ख़राब था कि टीम को कई बार बाइक से उतरकर पैदल चलना पड़ा. शेराडांड़ जाने के लिए मुड़की नदी को भी पार करना पड़ता है. ऐसे में आप अंदाजा लगा सकते हैं कि चुनाव आयोग की टीम यहां कैसे पहुंचती होगी. CEO बताते हैं कि चुनाव आयोग की टीम और सुरक्षा बलों को इस पोलिंग बूथ पर ट्रैक्टर से जाना पड़ता है. क्योंकि उन्हें मतदान से 2 दिन पहले यहां पुरी व्यवस्था के साथ पहुंचना पड़ता है.
गांव में 3 मकान 13 लोग जिनमें 5 मतदाता
आखिरकार टीम शेराडांड़ गांव पहुंची. घनघोर जंगलों के बीच बसे इस गांव में कुल 3 मकान हैं, 13 लोग रहते हैं , जिनमें से 5 लोग मतदाता हैं. इस गांव में पहुंचकर पता चला कि यहां कोई स्थाई पोलिंग सेंटर नहीं है. लकड़ी से बनी इस जगह पर ही चुनाव आयोग की टीम को करीब 2 दिन पहले पहुंचकर टेंट वाला पोलिंग बूथ बनाती है.
वोटर कार्ड है राशन कार्ड नहीं
इस अस्थाई पोलिंग बुथ पर ही जब हमने पांचों मतदाताओं से बातचीत शुरु की तो पता चला कि इनमें से एक महिपाल का वोटर कार्ड तो बन गया है. लेकिन राशन कार्ड आजतक नहीं बना. यही नहीं मतदाता के तौर पर अपना पोलिंग बूथ पर 100 % मतदान करने वाले इन मतदाताओं ने सरकार के सामने अपनी मांग की लंबी लिस्ट रख दी. जो कि एक आम नागरिक को मिलना ही चाहिए.
शेराडांड़ के इन मतदाताओं को राशन लेने के लिए भी 8 किलोमीटर दूर साईकिल से या फिर पैदल जाना पड़ता है. बारिश के समय तो नदी का जल स्तर इतना बढ़ जाता है कि एक दो महीने इनका संपर्क पूरी तरह से टूट जाता है. शेराडांड़ गांव में 2008 के छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में चुनाव आयोग की पहल पर पहली बार मतदान केंद्र बनाया गया था. उस समय यहां सिर्फ़ दो मतदाता थे , 2018 में 3 मतदाता हुए और 2023 में कुल 5 मतदाता यहां मतदान करेंगे.
उम्मीद है कि इस रिपोर्ट को देखने के बाद छत्तीसगढ़ सरकार और स्थानीय प्रशासन की इन मतदाताओं की मांग पर जरूर गौर करेगा. क्योंकि लोकतंत्र में मतदान कर सरकार बनाने का अपना काम ये लोग इस दुर्लभ हालात में भी कर रहे हैं.