Delhi Election Muslim Factor: 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी को मिले प्रचंड जनादेश में मुस्लिम मतदाताओं का आम आदमी पार्टी को वोट देना एक बड़ा फैक्टर माना गया था. ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि इस बार मुस्लिम बहुल इलाकों में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने किसे वोट दिया है? आइए जानते हैं.
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Delhi Election Muslim Factor: दिल्ली में वोटों की गिनती जारी है. हालांकि, अब साफ हो गया है कि दिल्ली में बीजेपी सरकार बनाने जा रही है. बीजेपी ने 48 सीटों पर जीत दर्ज की है. वहीं, आम आदमी पार्टी 22 सीटों पर सिमट गई है. कांग्रेस ने अपना खाता भी नहीं खोला है. ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि इस बार मुस्लिम बहुल इलाकों में AAP की क्या स्थिति है, और यहां मुस्लिम समुदाय के लोगों ने किसे वोट दिया है? आइए जानते हैं.
इन सीटों पर मुसलमानों का है दबदबा
दिल्ली में ओखला, सीलमपुर, मुस्तफाबाद, मटिया महल, बल्लीमारान और सीलमपुर से अक्सर मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव जीतते आए हैं. इसके अलावा सीमापुरी, चांदनी चौक, सदर बाजार, बाबरपुर, गांधी नगर, किराड़ी, जंगपुरा और करावल नगर भी ऐसी सीटें हैं, जहां मुस्लिम समुदाय जीत-हार तय करने की ताकत रखता है. हालांकि, इस बार सीलमपुर, मटिया महल, बल्लीमारान और सीलमपुर से आप के मुस्लिम कैंडिडेट को जीतने में कामयाबी जरूर मिली है, लेकिन इन सभी सीटों पर उन्हें कड़ी टक्कर का सामना करना पड़ा है.
केजरीवाल से मुसलमानों का हो गया है मोहभंग
AIMIM ने दो सीटों पर आप को कड़ी टक्कर दी है, जबकि बाकी सभी सीटों पर कांग्रेस ने कड़ी टक्कर दी है. यही वजह है कि बीजेपी को इन सभी सीटों जीत हासिल करने में आसानी हुई. मुस्तफाबाद सीट पर भी बीजेपी ने जीत दर्ज की है. मुस्तफाबाद सीट पर बीजेपी ने 17 हजार से ज्यादा वोटों से जीत दर्ज की है. इससे साफ पता चलता है कि इस चुनाव में मुसलमानों का आप और अरविंद केजरीवाल से मोहभंग हो गया है, और मुसलमानों ने कांग्रेस और दूसरी पार्टियों को जमकर वोट दिया है. इतना ही नहीं जिन सीटों पर आप को हार का सामना करना पड़ा है, वहां भी मुसलमानों ने कांग्रेस को जमकर वोट दिया है. जबकि 2 सीटों पर मुस्लिम वोटरों ने एआईएमआईएम को दिल खोलकर वोट दिया है.
केजरीवाल से मुसलमानों का क्यों हुआ मोहभंग
दरअसल, साल 2019 में केंद्र सरकार सीएए और एनआरसी बिल लेकर आई थी, जिसके खिलाफ मुसलमानों में काफी गुस्सा था. मुस्लिम समुदाय के लोग इस कानून के खिलाफ जगह-जगह प्रदर्शन कर रहे थे. इसी दौरान दिल्ली में दंगे हुए, जिस पर केजरीवाल ने चुप्पी साधी और इस मामले पर कुछ भी कहने को तैयार नहीं हुए. सीएए और एनआरसी कानून के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे जामिया के छात्रों की पुलिस ने बेरहमी से पिटाई की. इस मामले पर केजरीवाल चुप रहे.
तब्लीगी जमात
दिल्ली दंगों में मौजूदा आप पार्षद ताहिर हुसैन और कई अन्य पर दंगा भड़काने के आरोप लगे थे, जिसके बाद केजरीवाल ने ताहिर हुसैन और कई अन्य आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग की थी. इतना ही नहीं, जब भी मुस्लिम समुदाय के खिलाफ कोई घटना हुई, अरविंद केजरीवाल ने कोई स्टैंड नहीं लिया. जब कोरोना ने भारत में दस्तक दी, तब तब्लीगी जमात के खिलाफ खूब गलत बयानबाजी हुई. इस गलत बयानबाजी में केजरीवाल भी शामिल थे. केजरीवाल ने परोक्ष रूप से कहा था कि तब्लीगी जमात के लोग कोरोना फैला रहे हैं. उन्होंने उन सभी की गिरफ्तारी की भी मांग की थी. इसके बाद मुसलमानों ने केजरीवाल को सबक सिखाने की कसम खा ली थी.
बिलकिस बानो
पिछले साल गुजरात दंगों की पीड़िता बिलकिस बानो के मामले में सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया था. इन आरोपियों के बरी होने पर सभी राजनीतिक दलों ने भाजपा की आलोचना की और बिलकिस बानो मामले में आरोपियों की रिहाई पर आपत्ति जताई, लेकिन केजरीवाल इस मामले पर भी चुप रहे. जब पत्रकारों ने इस मामले पर आप का पक्ष जानने की कोशिश की, तो केजरीवाल हमेशा इससे बचते नजर आए. एक दिन आप नेता और दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने साफ कर दिया कि बिलकिस बानो मामले से उनका कोई लेना-देना नहीं है. वह स्कूल और स्वास्थ्य की राजनीति करते हैं.
बुलडोजर की कार्रवाई पर आप का मौन
ऐसे कई मौके आए, जिन पर केजरीवाल चुप रहे. केजरीवाल ने कई सालों तक दिल्ली में इमामों का पैसा रोक रखा था. जब भी मुस्लिम इलाकों में बुलडोजर की कार्रवाई हुई, केजरीवाल इस मुद्दे पर भी चुप रहे. कई बार मुसलमानों से जुड़े मुद्दे सामने आए, जिन पर केजरीवाल को खुलकर बोलना चाहिए था, लेकिन वह उन मुद्दों पर चुप रहे. इसके बाद मुसलमानों ने तय किया कि इस बार उन्हें AAP को सबक सिखाना है. वैसे तो 50 फीसदी से ज्यादा मुसलमानों ने केजरीवाल को वोट दिया है, लेकिन उन्होंने 2015 और 2020 की तरह वोट नहीं दिया है, जिसका असर 2025 के चुनाव में दिख रहा है और केजरीवाल को हार का सामना करना पड़ रहा है.
मुसलमान के राष्ट्रीय मुद्दों पर आप की ढुलमुल नीति
सामन नागरिक सहिंता देशभर के मुसलमानों का एक ज्वलंत मुद्दा है. केंद्र सरकार और भाजपा शासित राज्य इसे लागू करने के पक्ष में हैं, लेकिन ज़्यादातर गैर- भाजपा पार्टियों वाली राज्य सरकारें इसके विरोध में हैं. केजरीवाल ने इसपर कोई स्पष्ट रुख नहीं दिखाया. वैसी ही तीन तलाक, वक्फ बोर्ड या फिर मदरसा शिक्षा को लेकर आप सरकार का स्टैंड साग नहीं है. आप का रुख कई मुद्दों पर भाजपा की नीतियों के समर्थन का रहा है. इसलिए मुसलमानों ने इसे भाजपा की बी टीम मानकर इससे दूरी बना ली.
2015 और 2020 चुनाव में था मुस्लिम फैक्टर
2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी को मिले प्रचंड जनादेश में मुस्लिम मतदाताओं का आम आदमी पार्टी को वोट देना एक बड़ा फैक्टर माना गया था. इस विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 5 सीटों पर मुस्लिम नेताओं को मैदान में उतारा है. ये सीटें हैं मटिया महल, बल्लीमारान, ओखला, सीलमपुर और मुस्तफाबाद. 2020 के विधानसभा चुनाव में भी आम आदमी पार्टी ने इन सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे. इन सीटों पर भारी अंतर से जीत हासिल की थी. इस बार कांग्रेस ने सात सीटों पर मुस्लिम नेताओं को टिकट दिया है, जबकि 2020 में उसने 5 सीटों पर मुस्लिम नेताओं को मैदान में उतारा था.