Delhi Election: ओखला और मुस्तफाबाद हारकर भी अपना मैसेज देने में कामयाब रहे ओवैसी
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Delhi Election: ओखला और मुस्तफाबाद हारकर भी अपना मैसेज देने में कामयाब रहे ओवैसी

Delhi Election Result 2025: दिल्ली विधानसभा चुनाव में ओखला और मुस्तफाबाद सीट पर ओवैसी की पार्टी AIMIM के दोनों उमीदवार चुनाव हर गए हैं, लेकिन दोनों ने अच्छा - ख़ासा वोट स्कोर किया.  मुस्तफाबाद में AIMIM के ताहिर हुसैन की वजह से AAP के अदील अहमद की हार हुई. इस चुनाव से ओवैसी ने तमाम सेक्युलर समझी जाने वाली पार्टियों को ये सन्देश दे दिया है की कोई भी गठबंधन AIMIM को लम्बे अरसे तक नज़रंदाज़ नहीं कर सकता है.

 Delhi Election: ओखला और मुस्तफाबाद हारकर भी अपना मैसेज देने में कामयाब रहे ओवैसी

नई दिल्ली: दिल्ली विधानसभा चुनाव के लगभग 70 सीटों का रुझान साफ़ हो चुका है. 26 सालों से सत्ता का निर्वासन झेल रही भाजपा 47 सीटों पर आगे चलते हुए पूर्ण बहुमत की सरकार बना रही है, जबकि दस सालों से दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी (AAP) 23 सीटों पर सिमट गयी है. खास बात यह है आप के दो टर्म के CM रहे अरविन्द केजरीवाल और डिप्टी CM मनीष सिसोदिया भी चुनाव हार गए हैं. इस बार दिल्ली विधान सभा चुनाव में पहली बार ओवैसी की पार्टी AIMIM की भी एंट्री हुई थी. दिल्ली के ओखला और मुस्तफाबाद विधानसभा सीटों पर ओवैसी ने क्रमश शिफ़ उर रहमान और ताहिर हुसैन को उतारा था. ये दोनों उमीदवार 2020 में CAA-NRC आन्दोलन के बाद दिल्ली में भड़की हिंसा के मामले में आरोपी हैं, और इस वक़्त जेल ने बंद हैं. AIMIM के इन दोनों उमीदवारों को कोर्ट ने चुनाव प्रचार के लिए पांच दिनों के लिए पैरोल दी थी. ओवैसी के ये दोनों उमीदवार दिल्ली में चुनाव तो नहीं जीत पाए, लेकिन अपने नजदीकी हरीफों को कड़ी टक्कर देने में कामयाब रहे. इसके साथ ही ओवैसी ने आप सहित सभी गैर- भाजपाई सेक्युलर पार्टियों को ये सन्देश देने में कामयाब रहे हैं कि कोई भी गठबंधन AIMIM को लम्बे अरसे तक नज़रंदाज़ नहीं कर सकता है.. अगर वो ऐसा करते हैं तो अपनी नुकसान की कीमत पर करेंगे.. 

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ओखला में हारकर भी अपना दबदबा बनाने में कामयाब रही AIMIM

ओखला सीट पर मुस्लिम वोटर्स की तादाद लगभग 52 फीसदी है. संख्या के हिसाब से ये 1.78 लाख होता है. 2020 के विधानसभा चुनाव में यहाँ AAP को 66 फीसदी और भाजपा को 29.7 फीसदी वोट मिले थे. इस साल के चुनाव में AAP के उमीदवार अमानतउल्लाह खान को कुल  71460  हज़ार से ज्यादा वोट मिले हैं, जबकि दूसरे नंबर के उमीदवार AIMIM के शिफा उर रहमान को लगभग 38 हज़ार वोट मिले हैं. यहाँ तीसरे नम्बर पर रहने वाले भाजपा के कैंडिडेट मनीष चौधरी को 34412 हज़ार वोट मिले हैं, वहीँ चौथे नम्बर की उमीदवार कांग्रेस की अरीबा खान को लगभग 11003 हज़ार वोट मिले हैं. ओखला सीट पर आप के अमानतउल्लाह खान की शिफा उर रहमान से जीत का अंतर लगभग 33225 हज़ार से ज़यादा वोटों का है. यहाँ शिफा उर रहमान को वोटर्स ने अच्छा- ख़ासा वोट दिया, लेकिन वो आप के उमीदवार को हारने में नाकाम रहे. 

मुस्तफाबाद में भाजपा के साथ ओवैसी की भी जीत 
मुस्तफाबाद में लगभग 40 फीसदी मुस्लिम वोटर्स हैं. यहाँ से ताहिर हुसैन को 33474  वोट मिले हैं, जबकि बीजेपी के जीतने वाले उमीदवार मोहन सिंह बिष्ट को 85 हज़ार से ज्यादा वोट मिले. वहीँ, दूसरे नम्बर पर रहने वाले AAP के उमीदवार अदील अहमद खान को  67637 वोट मिले हैं. विजेता उमीदवार बिष्ट से अदील अहमद खान की हार का अंतर 17578 वोटों का है. वहीँ, ताहिर हुसैन को मिले वोटों की तादाद  33474 है. यानी AIMIM से अगर ताहिर हुसैन खड़े नहीं होते तो AAP उमीदवार अदील अहमद की  लगभग 17 हज़ार वोटों से जीत हो सकती थी. यहाँ चौथे नम्बर के उमीदवार के तौर पर कांग्रेस के अली मेहदी भी खड़े थे, उन्हें कुल 11763 वोट मिले हैं. इस लिहाज से कहा जा सकता है कि मुस्तफाबाद सीट पर ओवैसी की पार्टी के उमीदवार ताहिर हुसैन ने आप के अदील अहमद खान को नुक्सान पहुंचाया.

UP, बंगाल, महाराष्ट्र और दिल्ली में क्यों फेल हुआ AIMIM का सीमांचल फार्मूला 
बिहार के 2020 के विधानससभा चुनावों में ओवैसी की पार्टी ने सीमांचल में राजग और महागठबंधन को कड़ी टक्कर देते पांच सीटें जीतकर सभी को चौंका दिया था. मुस्लिम बहुल अमौर, कोचाधाम, जोकीहाट, बायसी और बहादुरगंज सीट पर ओवैसी की पार्टी ने NDA सहित बिहार के दिग्गज महागठबंधन उमीदवारों से ये सीटें छीन ली थी. हालांकि, दो साल बाद ही इनमे से चार विधायकों ने AIMIM को छोड़कर राजद ज्वाइन कर लिए. लेकिन बिहार चुनाव के नतीजों से उत्साहित अगले साल 2021 में बंगाल विधानसभा चुनाव में AIMIM को भारी निराशा हाथ लगी थी. पार्टी ने 7 सीटों पर अपने उमीदवार उतारे थे, उनमे सभी की हार हुई. उत्तर प्रदेश में भी 2022 में ओवैसी अपनी पार्टी का खाता खोलने में नाकाम रहे. ओवैसी ने यहाँ सौ सीटों पर अपने उमीदवार उतारे थे. चुनाव विश्लेषणों से ये साफ़ हो गया था कि कई सीटों पर ओवैसी की पार्टी की वजह से सपा उमीदवारों की बहुत कम मार्जिन से हार हुई थी.  बिजनौर, नकुड़, फिरोजाबाद, मुरादाबाद, कुर्सी, जौनपुर जैसी मुस्लिम बहुल सीटों पर ओवैसी के उमीदवारों की वजह से सपा का वोट शेयर कम हुआ जिसकी वजह से भाजपा उमीदवारों की जीत हुई. 2024 के महारष्ट्र विधानसभा चुनावों में ओवैसी ने 14 सीटों पर अपने उमीदवार उतारे थे लेकिन उन्हें सिर्फ एक सीट पर कामयाबी मिली. 
 महाराष्ट्र में ही 2019 के विस चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने 44 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, जिसमे  AIMIM को सिर्फ दो (औरंगाबाद सेंट्रल और मालेगांव सेंट्रल) सीटों पर कामयाबी मिली थी. 

ओवैसी पर कांग्रेस सहित सभी गैर- भाजपा दल ये इलज़ाम लगाते रहते हैं कि वो भाजपा की बी- टीम का हिस्सा हैं. भाजपा को फायदा पहुंचान एके लिए वो चुनाव लड़ते हैं. लेकिन ओवैसी का कहना है कि मध्य प्रदेश, कर्नाटक सहित दीगर राज्यों में जहाँ उनकी पार्टी चुनाव नहीं लडती है, वहां क्यों कांगेस या अन्य पार्टियाँ हार जा रही है और भाजपा जीत जाती है? 

दरअसल, ओवैसी लगातार अपनी पार्टी की अहमियत बताने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन गैर भाजपा गठबंधन ओवैसी और उनकी पार्टी को  गठबंधन का हिस्सा बनाने से परहेज करती है. ओवैसी सीमांचल जैसे प्रदर्शन इसलिए भी कहीं और नहीं दोहरा पाते हैं, क्यूंकि मुस्लिम वोटर्स उनपर पूरी तरह भरोसा नहीं कर पा रहा है, या ऐसा भी कहा जा सकता है कि उनकी सियासत को मुसलमान पसंद नहीं करता है, वो अपनी समस्याओं का हल या अपना हित दूसरे सेक्युलर पार्टियों के साथ ही ज़यादा सुरक्षित मानता है.

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