Why FII Withdraw Money From Share Market: विदेशी निवेशकों (FIIs)की भारतीय शेयर बाजार ( Share Market)से ऐसी बेरुखी बीते दो दशकों में देखने को मिली, जैसी जनवरी के महीने में दिख रही है. आंकड़ों को देखें तो विदेशी निवेशकों ने साल 2022 के बाद जनवरी 2025 में सबसे ज्यादा पैसा शेयर बाजार से निकाला है. जोकि एक रिकॉर्ड बन चुका है.
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Trump Impact on Share Market: विदेशी निवेशकों (FIIs)की भारतीय शेयर बाजार ( Share Market)से ऐसी बेरुखी बीते दो दशकों में देखने को मिली, जैसी जनवरी के महीने में दिख रही है. साल 2025 के शुरुआत के साथ ही शेयर बाजार विदेशी निवेशकों की बिकवाली ऐसी हावी हो गई कि देखते ही देखते खजाने से 50000 करोड़ रुपये निकल गए. आंकड़ों को देखें तो विदेशी निवेशकों ने साल 2022 के बाद जनवरी 2025 में सबसे ज्यादा पैसा शेयर बाजार से निकाला है. जोकि एक रिकॉर्ड बन चुका है.
विदेशी निवेशकों की बेरूखी
भारतीय बाजार से विदेशी निवेशकों (foreign institutional investors) की नाराजगी ऐसी रही कि उन्होंने दलाल स्ट्रीट (Dalal Street) से 50,000 करोड़ रुपये निकाल लिए. बिकवाली का ये सिलसिला अभी थमा नहीं है. ऐसे में मन में सवाल उठता है कि ऐसा क्या हो गया है कि विदेशी निवेशक भारत से खजाना खाली करने पर तुले हैं ? क्यों विदेशी निवेशकों भारत छोड़ रहे हैं.
क्यों पैसा निकालने पर तुले हैं विदेशी निवेशक
विदेशी निवेशकों की बिकवाली की वजह टूटता रुपया, मजबूत होता डॉलर, अमेरिकी बॉन्ड में बढ़ता रिटर्न और भारतीय कंपनियों की एक बार फिर कमजोर तिमाही नतीजे तो हैं ही, लेकिन इसके पीछे एक बड़ी वजह अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की वापसी और उनकी 'अमेरिका फर्स्ट' की नीतियां है. ब्रिक्स देशों को ट्रंप की धमकी, सख्त इमिग्रेशन पॉलिसी, टैरिफ बढ़ाने की चेतावनी ने निवेशकों को डरा दिया है. ट्रंप की वापसी के बाद डॉलर की मजबूती, अमेरिका में बॉन्ड प्रतिफल में बढ़ोतरी भी विदेशी निवेशकों के भारतीय बाजार से पैसा निकालने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं.
चूंकि अमेरिका में बॉन्ड प्रतिफल आकर्षक बना हुअ है, ऐसे में एफपीआई डेट या बॉन्ड बाजार में भी बिकवाली कर रहे हैं. भारतीय रुपये में लगातार गिरावट ने विदेशी निवेशकों पर काफी दबाव डाला है. यही वजह है कि वे भारतीय बाजार से अपना निवेश निकाल रहे हैं. बाजार जानकारों के मुताबिक अगर ट्रंप अपने चुनावी वादों जैसे टैरिफ और इमिग्रेशन नियंत्रण को लागू करते हैं, तो इससे अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया कमजोर हो सकता है. वहीं ट्रंप की वापसी से अमेरिकी औद्योगिक क्षेत्रों जैसे कि फार्मास्युटिकल, आईटी और ऑटोमोबाइल, पर असर पड़ सकता है. भारतीय फार्मा कंपनियां अमेरिकी व्यापार संरक्षणवादी नीतियों के कारण मुश्किलों का सामना कर सकती हैं. जबकि भारतीय आईटी कंपनियों को अमेरिका में काम करने के लिए अतिरिक्त संसाधनों की आवश्यकता हो सकती है. ये ऐसे कारण है, जो विदेशी निवेशकों की चिंता को बढ़ा रहे हैं. जिसकी वजह से वो भारतीय शेयर बाजार से पैसे निकाल रहे हैं.