Bollywood Actors: इस सीनियर एक्टर ने लगाई बॉलीवुड की क्लास, बोले- फूट जाएगा बुलबुला, हो गया सत्यानाश
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Bollywood Actors: इस सीनियर एक्टर ने लगाई बॉलीवुड की क्लास, बोले- फूट जाएगा बुलबुला, हो गया सत्यानाश

Bollywood Films: कोरोना के बाद से हिंदी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर संघर्ष कर रही हैं. लेकिन बात सिर्फ इतनी नहीं है. बॉलीवुड ने कथा-पटकथा पर ही नहीं, बल्कि एक्टरों की भाषा पर तक काम करना बंद कर दिया है. यही वजह है कि आजकल फिल्मों में याद रखने लायक एक डायलॉग तक मुश्किल से मिलता है.

 

Bollywood Actors: इस सीनियर एक्टर ने लगाई बॉलीवुड की क्लास, बोले- फूट जाएगा बुलबुला, हो गया सत्यानाश

Naseeruddin Shah: नसीरूद्दीन शान बॉलीवुड के उन चुनिंदा एक्टरों में हैं, जो साफगोई से बात करते हैं. जो उनके दिल में बात होती है, वह बिना हिचके कह देते है. यही वजह है कि अक्सर उनकी बातों पर विवाद भी खड़े हो जाते हैं. हालांकि उनकी पत्नी रत्ना पाठक शाह कह चुकी हैं कि वह अपने पति के कई बार समझा चुकी हैं कि विवाद पैदा करने वाले बातें न करें, परंतु नसीर अपने को रोक नहीं पाते. एक बार फिर नसीर ने पूरे बॉलीवुड की क्लास लगा दी है. इस बार बात चल रही थी बॉलीवुड की नई पीढ़ी के एक्टरों की, जो ढंग से हिंदी तक नहीं बोल पाते. यह बात जश्न-ए-रेख्ता कार्यक्रम में हुई, जहां रत्ना और नसीर दोनों मौजूद थे. रत्ना पाठक शाह ने बॉलीवुड के नई पीढ़ी के एक्टरों को ढंग की हिंदी न आने पर अपनी बात रखी थी. उन्होंने कहा कि नई पीढ़ी के एक्टर शब्दों को सही ढंग से तक नहीं बोल पाते हैं.

बढ़ा दूसरी भाषाओं का दबदबा
नसीरूद्दीन शाह ने अपनी पत्नी बात का समर्थन करते हुए कहा कि आज अन्य भाषाओं की फिल्मों का दबदबा बनते जा रहा है और बॉलीवुड का बुलबुला जल्दी ही फूट जाएगा. उन्होंने कहा कि हिंदी की फिल्म इंडस्ट्री तेजी से पतन की ओर जा रही है. नसीर ने साफ शब्दों में कहा, ‘सत्यानाश हो गया है, लेकिन हिंदी फिल्मों में कुछ भी कहां बेहतरी हुई है.’ उन्होंने कहा कि आज हमें अपनी फिल्मों में उर्दू सुनने को नहीं मिलती. पुराने दिनों में जब सेंसर सेर्टिफिकेट आया करते थे, तो उनमें उर्दू का जिक्र होता था. इसकी वजह यह थी कि फिल्मी गानों में उर्दू के शब्द होते थे, फिल्मों में शायरी होती थी. यहां तक कि फिल्मों लेखक फारसी थियेटर से आया करते थे.

बेहूदा अल्फाज होते हैं आज
नसीर ने कहा कि आज इतना बड़ा बदलाव आ चुका है कि उर्दू के लफ्ज ही इस्तेमाल नहीं किए जाते. अब तो बेहूदा अल्फाज होते हैं. यहां तक कि आजकल फिल्मों के टाइटल पर तक मेहनत नहीं करते और वे अक्सर पुरानी फिल्मों के गानों से उठा लिए जाते हैं. उल्लेखनीय है कि नसीर फिल्म इंडस्ट्री में नेपोटिज्म से लेकर फीस में गैर-बराबरी जैसे मुद्दों पर खुलकर बोलते रहे हैं.

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