Delhi Chunav Result: BJP, AAP या कांग्रेस, दिल्ली में कौन मारेगा बाजी? इन 5 चीजों से तय होगा नतीजा
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Delhi Chunav Result: BJP, AAP या कांग्रेस, दिल्ली में कौन मारेगा बाजी? इन 5 चीजों से तय होगा नतीजा

AAP vs BJP:  नतीजे आने के बाद साफ हो जाएंगे कि सत्तारूढ़ आप ने सत्ता विरोधी लहर से निपटने के लिए पर्याप्त काम किया या भाजपा के चौतरफा अभियान ने काम कर दिया.

Delhi Chunav Result: BJP, AAP या कांग्रेस, दिल्ली में कौन मारेगा बाजी? इन 5 चीजों से तय होगा नतीजा

Delhi Chunav Result 2025: दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे की घोषणा शनिवार यानी 8 फरवरी को की जाएगी. इस बीच आए एग्जिट पोल ने राजनीतिक पार्टियों की सांसें अटका दी हैं. बता दें कि आम आदमी पार्टी (AAP) दिल्ली में लगातार चौथी बार सत्ता पर कब्जा करने की कोशिश कर रही है, जबकि उसे भारतीय जनता पार्टी (BJP) से कड़ी चुनौती मिल रही है. कई एग्जिट पोल में बीजेपी के 27 साल बाद राष्ट्रीय राजधानी में सत्ता में लौटने की भविष्यवाणी की गई है. नतीजे आने के बाद साफ हो जाएंगे कि सत्तारूढ़ आप ने सत्ता विरोधी लहर से निपटने के लिए पर्याप्त काम किया या भाजपा के चौतरफा अभियान ने काम कर दिया. चुनाव में जीत किसी भी पार्टी की हो, लेकिन इसके कई कारक हो सकते हैं जो नतीजे तय कर सकते हैं.

1. वोट शेयर सबसे बड़ा कारक
1993 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अपनी पहली और एकमात्र जीत दर्ज की थी. तब उसके वोट शेयर 30-40 प्रतिशत के बीच रहा था. इसके बाद बीजेपी 1998 से 2008 तक कांग्रेस से पीछे रही, फिर 2013 में त्रिशंकु विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, लेकिन सरकार बनाने में विफल रही. इसके बाद 2015 और 2020 में AAP से पीछे रह गई.

भाजपा को 2015 में 32.19 प्रतिशत वोट शेयर और 2020 में 38.51 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया. दोनों चुनावों में बीजेपी के वोट शेयर में उछाल आया, लेकिन इस दौरान आप (AAP) का वोट शेयर स्थिर रहा. 2015 में आप को 54.34 और 2020 में 53.57 प्रतिशत वोट मिला. इस वजह से आप की 2015 के मुकाबले 2020 में 5 सीटें कम हो गई थीं. ऐसे में इस चुनाव में वोट शेयर काफी अहम गया है.

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2. मिडिल क्लास ने किसको किया वोट?
दिल्ली के इस चुनाव में मिडिल क्लास का वोट काफी अहम है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, AAP ने स्वीकार किया है कि उसे सिर्फ 'गरीबों की पार्टी' के रूप में देखा जाता है, इसलिए उसने 2025-26 के केंद्रीय बजट के लिए कई मांगों के साथ एक 'मध्यम वर्ग घोषणापत्र' लॉन्च किया, ताकि मध्यम वर्ग को अपनी तरफ जोड़ा जाए. हालांकि, मध्यम वर्ग पर भाजपा भी नजर गड़ाए हुए है.

1 फरवरी को संसद में मोदी सरकार 3.0 का पहला पूर्ण बजट पेश करते हुए केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मध्यम वर्ग को ध्यान में रखते हुए कई घोषणाएं कीं. इसमें यह घोषणा भी शामिल है कि 12 लाख रुपये प्रति वर्ष की आय तक कोई आयकर देय नहीं होगा. पीपुल्स रिसर्च ऑन इंडियाज कंज्यूमर इकोनॉमी (PRICE) की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली की आबादी का 67.16 प्रतिशत यानी 28.26 लाख घरों में मध्यम वर्ग का योगदान है, इसलिए मध्यम वर्ग पर यह ध्यान आश्चर्यजनक नहीं है. 2015 और 2020 में मध्यम वर्ग का वोट पूरी तरह से आप के साथ था. इस बार मध्यम वर्ग को वोट जिसे मिलता है, उसकी सरकार बननी तय है.

3. महिलाएं पलट सकती हैं पासा
पूरे देश में महिलाएं एक महत्वपूर्ण वोट आधार के रूप में उभरी हैं जो चुनावों को प्रभावित करने में सक्षम हैं. हाल ही में महाराष्ट्र में महिलाओं के लिए लाडकी बहीण योजना की लोकप्रियता ने भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन को सत्ता में आने में मदद की. 2020 के चुनाव में महिलाओं के लिए मुफ्त यात्रा योजना ने आप (AAP) की जीम में अहम भूमिका निभाई थी. इस बार बीजेपी-आप दोनों ने नई योजनाओं के साथ महिला मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए हरसंभव प्रयास किया है. सत्तारूढ़ आप ने महिलाओं को 2100 रुपये और भाजपा के अलावा कांग्रेस ने 2500 रुपये हर महीने देने का वादा किया है. इसके अलावा सब्सिडी वाले एलपीजी सिलेंडर से लेकर बेहतर पेंशन और अन्य स्वास्थ्य संबंधी योजनाएं भी शामिल हैं.

दिल्ली में 72.36 लाख महिला मतदाता हैं. हालांकि इस बार के चुनाव में मतदान 2015 के 67.13% से घटकर 60.52% रह गया है. CSDS के सर्वे में पाया गया कि AAP ने 2015 में महिलाओं के 53% वोट हासिल किए थे, जबकि भाजपा ने 34% वोट हासिल किया था. 2020 तक, महिलाओं के बीच AAP का वोट शेयर 60% हो गया, जबकि भाजपा 35% वोट हासिल करने में सफल रही. अगर AAP को एक बार फिर सत्ता में लौटना है तो उसे महिलाओं के वोट की जरूरत होगी.

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4. दलित वोट बैंक भी काफी अहम
पिछले चुनावों में दिल्ली की 12 एससी-आरक्षित सीटों पर पहले कांग्रेस और फिर आप ने कब्जा किया. 1993 में आठ एससी सीटें जीतने के बाद से भाजपा ने कभी भी दो से ज्यादा आरक्षित सीटें नहीं जीती हैं. एससी सीटों पर इसका वोट शेयर भी 1993 के 36.84% के नतीजे से कम ही रहा है. 1998 से 2008 के बीच कांग्रेस ने एससी सीटों में से ज्यादातर पर जीत हासिल की. 2013 के बाद से इन सीटों पर आप का दबदबा रहा है. वोट शेयर के मामले में भी कांग्रेस और आप दोनों ने कई चुनावों में इन सीटों पर 50% से ज्यादा वोट हासिल करने में कामयाबी हासिल की है.

हालांकि इस बार के चुनाव में दिल्ली में मायावती की बहुजन समाज पार्टी (BSP) और चंद्रशेखर के नेतृत्व वाली आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) जैसी दलित-उन्मुख पार्टियों की मौजूदगी आरक्षित सीटों पर आप (AAP) के प्रभुत्व को कम कर सकती है. कांग्रेस भी इन सीटों पर आप के वोट शेयर में सेंध लगा सकती है. इस बार की चुनावी चर्चाएं मुख्य रूप से आप सरकार की योजनाओं और उसके जवाब में भाजपा और कांग्रेस द्वारा किए गए वादों के इर्द-गिर्द केंद्रित रही हैं. दलित वोटर्स किसकी योजनाओं पर भरोसा करते हैं, इस बार के नतीजे उस पर भी निर्भर करेंगे.

5. मुस्लिम वोट भी हो सकते हैं निर्णायक
दिल्ली में कई सीटों पर मुस्लिम वोटर्स का दबदबा है. इस वजह से अल्पसंख्यक वोट भी निर्णायक हो सकते हैं. खासकर उत्तर पूर्व और मध्य दिल्ली जिलों में जहां मुसलमानों की आबादी का एक बड़ा हिस्सा है. दिल्ली की आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी 12.9 प्रतिशत है. वहीं, उत्तर पूर्व दिल्ली में उनकी हिस्सेदारी 29.3 प्रतिशत और मध्य दिल्ली में 33.4 प्रतिशत है. दिल्ली में 23 सीटें ऐसी हैं, जहां मुसलमानों की आबादी कम से कम 10 है. 2015 से 2020 के बीच इन सीटों पर आप (AAP) का वोट शेयर लगभग 55 प्रतिशत पर स्थिर रहा. वहीं, भाजपा का वोट शेयर 29.44 प्रतिशत से बढ़कर 34.57 प्रतिशत हो गया. कांग्रेस के वोट की बात करें तो यह 12.81 प्रतिशत से कम होकर 2020 में 5.57 प्रतिशत रह गया.

इन 23 सीटों में से 20 पर भाजपा ने 2015 से 2020 के बीच अपने वोट शेयर में वृद्धि देखी है. इस बीच, AAP ने इनमें से नौ सीटों पर अपने वोट शेयर में गिरावट देखी है. AAP और कांग्रेस के बीच मतदाताओं के इस वर्ग को अपने पक्ष में करने की होड़ के कारण वोटों में विभाजन से भाजपा को फायदा हो सकता है. दो सीटों पर AIMIM की मौजूदगी की वजह से वोटों का और विभाजन हो सकता है.

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