Knowledge: 21 तोपों की सलामी देश का सबसे बड़ा सम्मान माना जाता है. सलामी के लिए छोड़े जाने वाले गोले में खास सेरेमोनियल कारतूस होता है. इससे कोई नुकसान नहीं होता, केवल धुआं निकलने के साथ गूंज होती है.
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Story Of The 21-Gun Salute: गणतंत्र दिवस (Republic Day), स्वतंत्रता दिवस (Independence Day) या किसी विदेशी राष्ट्राध्यक्ष को इज्जत देने के लिए 21 तोपों की सलामी ही होती है. इस परंपरा को बहुत सम्मानजनक माना जाता है, लेकिन क्या कभी आपने जानना चाहा कि क्यों दी जाती है 21 तोपों की सलामी? अगर नहीं, तो आज जानेंगे इस परंपरा के पीछे की कहानी क्या है और यह कब से शुरू हुई...
जानें किसे कहते हैं 21 तोपों की सलामी
हर साल जब राष्ट्रपति 26 जनवरी को राष्ट्रीय ध्वज फहराते हैं, तब राष्ट्रगान के साथ बैकग्राउंड में तोपों की गोलीबारी की अचूक आवाजें होती हैं. बता दें कि राष्ट्रगान (National Anthem) की पूरी 52 सेकंड्स की अवधि को कवर करने के लिए हर 2.25 सेकंड के अंतराल पर 3 राउंड में तोपें दागी जाती हैं. इसे 21 तोपों की सलामी कहा जाता है. एक समय ऐसा भी था जब दिल्ली में ये तोपें सबके लिए किसी अचरज से कम नहीं थीं.
21 तोपों की सलामी का इतिहास
हमारे देश में 21 तोपों की सलामी की ये कहानी नई नहीं, बल्कि 150 साल से भी पुरानी है. यह उस वक्त औपनिवेशिक शक्ति की भव्यता और रौब प्रदर्शन का माध्यम थी. अंग्रेजों के अधीन दिल्ली भव्यता के इस बेधड़क प्रदर्शन के 3 अवसरों की गवाह रही है, जो 1877, 1903 और 1911 में आयोजित किए गए थे.
साल 1877 में वायसराय लॉर्ड लिटन ने दिल्ली में पहला दरबार आयोजित किया था, जो अब 'कोरोनेशन पार्क कहलाता है. इसमें भारत के महाराजाओं और राजकुमारों को एक उद्घोषणा पढ़कर क्वीन विक्टोरिया को भारत की महारानी घोषित करने के लिए बुलाया गया था.
दूसरा दरबार इंग्लैंड में एक नए सम्राट की ताजपोशी की गई थी. साल 1911 का तीसरा दरबार किंग जॉर्ज पंचम और क्वीन मैरी की वजह से खास था. इनके सम्मान में 50,000 ब्रिटिश और भारतीय सैनिकों की परेड हुई थी.
संबंधों के आधार पर तय हुए सलामी के मानक
साल 1877 तक तोपों की सलामी के लिए मानक तय नहीं थे. इसी साल के दरबार के दौरान लंदन में सरकार की सलाह पर वायसराय ने एक नया आदेश जारी किया था, जिसके तहत ब्रिटिश सम्राट के लिए बंदूक की सलामी 101 और भारत के वायसराय के लिए 31 तय की गई. ब्रिटिश राज के साथ भारतीय राजाओं के संबंधों के आधार पर उन्हें 21, 19, 17, 15, 11 और 9 बंदूक सलामी का पदानुक्रम दिया गया था.
आजाद भारत में 21 तोपों की सलामी
आजादी के बाद डॉ राजेंद्र प्रसाद ने 26 जनवरी 1950 को भारत के पहले राष्ट्रपति का पदभार संभाला. वह राष्ट्रपति भवन से इरविन एम्फीथिएटर (मेजर ध्यानचंद स्टेडियम) घोड़ा गाड़ी में सवार होकर तब देश के राष्ट्रपति को दी जाने वाली 21 तोपों की सलामी लेने के लिए आए थे. इसके बाद ही 21 तोपों की सलामी का अंतरराष्ट्रीय मानदंड बन गया.
साल 1971 के बाद से यह सलामी राष्ट्रपति और अतिथि राष्ट्राध्यक्षों को दिया जाने वाला सबसे बड़ा सम्मान बन गया. साथ ही नए राष्ट्रपति की शपथ के दौरान और कुछ चुनिंदा अवसरों पर भी यह सलामी दी जाती है.
माना जाता है देश का सर्वश्रेष्ठ सम्मान
अब जो सलामी दी जाती है उसमें 21 गोले तो होते हैं, लेकिन तोपें मात्र 8 होती हैं, जिसमें से सलामी के लिए 7 तोपों का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे हर तोप 3 गोले फायर करती है. सलामी देने वाले तकरीबन 122 जवानों के दस्ते का हेडक्वार्टर मेरठ में है. ये सेना की स्थाई रेजीमेंट नहीं होती है.