देश में 400 सीटें पाने का सपना चकनाचूर, बिहार में 225 सीट कब्जाना एनडीए के लिए कितना आसान?
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देश में 400 सीटें पाने का सपना चकनाचूर, बिहार में 225 सीट कब्जाना एनडीए के लिए कितना आसान?

Mission 225: एनडीए का मिशन 400 पार का जो हश्र हुआ और उसके बाद बिहार में मिशन 225 के टारगेट को सेट करना, यह गठबंधन का सकारात्मक एजेंडा हो सकता है. ऐसे समय में जब विपक्षी दलों में आपस में रार चल रही हो, एनडीए का बड़ा लक्ष्य तय करना स्वाभाविक सा लगता है. सफलता और असफलता अपनी जगह है. 

देश में 400 सीटें पाने का सपना चकनाचूर, बिहार में 225 सीट कब्जाना एनडीए के लिए कितना आसान?

लोकसभा चुनाव में एनडीए ने पूरे देश में 400 पार का नारा दिया था, जिसके बाद विपक्षी दलों के नेताओं ने संविधान बदलने का नैरेटिव सामने ला दिया और फिर एनडीए की खटिया खड़ी हो गई और 300 सीट पूरा करने में भी पसीने आ गए. अब यही काम बिहार एनडीए ने किया है. बिहार एनडीए ने खुद के लिए 2025 में 225 सीटों पर विजयश्री हासिल करने का टारगेट सेट किया है. कुछ समय पहले बिहार एनडीए के नेता 210 सीटों पर जीत हासिल करने का दावा कर रहे थे, लेकिन बीच में कुछ ऐसा हुआ होगा कि टारगेट फिर से सेट करना पड़ा  और अब जो टारगेट तय हुआ है वह 225 का है. ऐसे में सवाल उठता है कि बिहार एनडीए की ओर से जो टारगेट तय हुआ है, उसका हश्र भी लोकसभा चुनाव में एनडीए के 400 पार वाले टारगेट की तरह न हो जाए.

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एनडीए के नेताओं का दावा है कि विधानसभा चुनाव 2025 में हर हाल में 225 सीटें जीतेंगे. इसके लिए एनडीए का कार्यकर्ता सम्मेलन हो रहा है. एनडीए के सभी नेता एक साथ प्रेस कांफ्रेंस कर रहे हैं. एकजुटता का संदेश दिया जा रहा है. राज्य, जिला, अनुमंडल और ब्लॉक के बाद इसे बूथ लेवल तक ले जाने की तैयारी है. एनडीए 2010 के अपने रिकॉर्ड को तोड़ना चाहता है. उस समय एनडीए को 206 सीटें हासिल हुई थीं. तब जेडीयू को 115 और भाजपा को 91 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. यह एनडीए का अब तक का सबसे शानदार परफॉर्मेंस है. यह भी दीगर बात है कि तब एनडीए में केवल भाजपा और जेडीयू थे. अब एनडीए में कुल मिलाकर 6 दल शामिल हैं. अगर पशुपति कुमार पारस अलग हो जाते हैं तो भी 5 दल बचते हैं. कुल मिलाकर एनडीए ने अपना दायरा बढ़ाया है और एकता दिखाने की भी कोशिश की जा रही है.

पिछले विधानसभा चुनाव की बात करें तो भाजपा 74 सीटों के साथ दूसरे नंबर की पार्टी बनी थी और जेडीयू को केवल 43 सीटें हासिल हुई थीं. जेडीयू नंबर के लिहाज से तीसरी सबसे बड़ी पार्टी रह गई थी. जीतन राम मांझी की हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा को 4 और विकासशील इंसान पार्टी को भी 4 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. कुल मिलाकर एनडीए ने बहुमत 122 सीटों के अलावा 7 विधायकों का जुगाड़ किया था. इसमें चिराग पासवान वाली तत्कालीन लोजपा का एक विधायक भी शामिल था, जिसने बाद में जेडीयू का दामन थाम लिया था. तब महागठबंधन महज 12,000 वोटों के मामूली अंतर से पीछे छूट गया था. अब सवाल यह है कि क्या एनडीए अपना टारगेट अचीव कर सकता है या नहीं, क्योंकि इसमें सबसे बड़ा रोड़ा शीट शेयरिंग का है. 

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सीट शेयरिंग की बात करें तो चिराग पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास 70 सीटों पर अपनी दावेदारी पेश कर रही है. दूसरी ओर जीतन राम मांझी 40 सीटों पर गिद्धदृष्टि जमाए बैठे हैं. मांझी ने तो 20 से कम सीटें मिलने पर मोदी कैबिनेट से इस्तीफा देने की चेतावनी भी दे दी थी. हालांकि बाद में वे खंडन करते दिखे थे. उपेंद्र कुशवाहा ने अभी तक अपनी पार्टी के लिए सीटों की संख्या नहीं बताई है, लेकिन 8 से 10 सीटों पर उनकी भी नजर होगी. और अंत में भाजपा और जेडीयू शायद ही 100-100 से कम सीटों पर चुनाव मैदान में जाएंगे. इसलिए सीट शेयरिंग इस समय एनडीए के लिए सबसे बड़ी चुनौती साबित होगी. 

इसमें कोई दोराय नहीं है कि हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली विधानसभा चुनाव जीतने के बाद भाजपा का मनोबल बढ़ा हुआ है और वह अपर हैंड लेकर चल रही है. सीट शेयरिंग में भाजपा की कोशिश एनडीए के सभी दलों पर हावी होने की होगी. टारगेट 225 को पाने में सबसे मजबूत और सबसे कमजोर कड़ी अगर कोई है तो वो हैं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार. मजबूत इसलिए कि उनके पास अति पिछड़ा वर्ग के लोगों का ऐसा वोट बैंक है, जो आंख मूंदकर उनके लिए मतदान करता है और वे जिधर होते हैं, उनका वोट उधर ही जाता है. इसके अलावा 20 साल के शासन, लाखों नौकरी देने और महिलाओं के लिए किए गए कल्याणकारी काम भी उन्हें मजबूत बनाते हैं. 

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कमजोर इसलिए क्योंकि नीतीश कुमार पर अब उनकी उम्र हावी होती दिख रही है. कभी कभी वे बोलते हुए ट्रैक से उतरकर बात करते दिखते हैं. भाजपा और जेडीयू नेताओं को उनकी बातों को संभालने के लिए आगे आना पड़ता है. अफसरों को हाथ जोड़कर काम करने की गुहार लगाना या फिर पीएम मोदी के पैर पड़ना भी उनके खिलाफ जा सकता है. विपक्ष भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के ऐसे कामों को लेकर आक्रामक हो सकता है. खासतौर से तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ पिछले कुछ समय से कुछ ज्यादा ही मुखर हैं. बहुत संभव है कि लोकसभा चुनाव की तरह बिहार विधानसभा चुनाव के मौके पर भी विपक्ष ऐसा नैरेटिव लेकर आए, जिससे ​एनडीए का 225 का नारा ध्वस्त हो सके. कुल मिलाकर बिहार की राजनीति बहुत ही मजेदार रहने वाली है. नजर बनाए रखें, कहीं कोई सीन मिस न हो जाए.

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