Exit Poll: मुस्लिम बहुल सीटों से केजरीवाल की दूरी तो नहीं पड़ जाएगी महंगी?
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Exit Poll: मुस्लिम बहुल सीटों से केजरीवाल की दूरी तो नहीं पड़ जाएगी महंगी?

DNA Analysis: दिल्ली में मतदान खत्म हो चुका है. वोटिंग तक जो एक सवाल, सबसे ज्यादा जवाब की तलाश में दिखा, वो था केजरीवाल की मुस्लिम बहुल सीटों से दूरी क्यों रही.  

Exit Poll: मुस्लिम बहुल सीटों से केजरीवाल की दूरी तो नहीं पड़ जाएगी महंगी?

DNA Analysis: दिल्ली में मतदान खत्म हो चुका है. दिल्ली की मुस्लिम बहुल सीटों पर चुनाव प्रचार से लेकर, वोटिंग तक जो एक सवाल, सबसे ज्यादा जवाब की तलाश में दिखा, वो था केजरीवाल की मुस्लिम बहुल सीटों से दूरी क्यों रही. दिल्ली की किसी मुस्लिम सीट पर केजरीवाल चुनाव प्रचार के लिए नहीं उतरे, जहां से आम आदमी पार्टी के मुस्लिम कैंडिडेट किस्मत आजमा रहे हैं. इसकी क्या वजह रही, इसे डिकोड करने से पहले, एक नजर दिल्ली में मुस्लिम बहुल सीटों पर डाल लेते हैं

2011 की जनगणना के मुताबिक दिल्ली में करीब 13 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं.दिल्ली की कुल 70 में से 8 विधानसभा सीटें मुस्लिम बहुल मानी जाती हैं.इन आठ मुस्लिम बहुल सीटों पर मुस्लिम आबादी 45 से 60 प्रतिशत है. वहीं बाबरपुर, चांदनी चौक और सदर बाजार और जंगपुरा जैसी सीटों पर मुस्लिम आबादी 10 से 30 फीसदी तक है.

इस चुनाव में ओवैसी ने केजरीवाल पर जमकर निशाना साधा. विकास से लेकर वक्फ तक पर, केजरीवाल को घेरने की कोशिश में रहे हैदराबादी भाईजान. ओवैसी अपनी हर सभा में अवाम से केजरीवाल को लेकर सवाल पूछते. तंज कसते की केजरीवाल ने 2020 में जीत के बाद मुस्लिम इलाकों का रुख नहीं किया. 

आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की पांच सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं. ओखला, बल्लीमारान, मटिया महल, सीलमपुर और मुस्तफाबाद सीट पर आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी ताल ठोक रहे हैं. अरविंद केजरीवाल सितंबर में सीएम पद आतिशी को सौंपकर मिशन-दिल्ली में लग गए थे. साढ़े चार महीने से लगातार दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में जाकर, केजरीवाल, आम आदमी पार्टी के पक्ष में सियासी माहौल बनाने की कवायद करते रहे. लेकिन मुस्लिम बहुल इलाके से दूरी बनाए रखी. मुस्लिम इलाकों से केजरीवाल की ये बेरुखी, वोटिंग में साइलेंट ही सही बड़ा मुद्दा बन गई.

अब सवाल उठता है कि केजरीवाल ने मुस्लिम इलाकों में प्रचार क्यों नहीं किया. क्या उन्होंने अपने हेवीवेट मुस्लिम उम्मीदवारों पर जरूरत से ज्यादा भरोसा किया. क्या केजरीवाल को इस बात का भरोसा था कि सिर्फ पार्टी के नाम पर ही मुस्लिम बहुल इलाकों में उन्हें वर्ष 2015 और 2020 वाली कामयाबी हासिल हो जाएगी.

2015 और 2020 के चुनाव में दिल्ली की सभी मुस्लिम बहुल सीटें आम आदमी पार्टी जीतने में कामयाब रही थी. बड़ा सवाल है कि क्या केजरीवाल की रणनीति कामयाब रहेगी या फिर दिल्ली चुनाव में ओवैसी की एंट्री और कांग्रेस की फिर से उभरने की कोशिशों, के बीच मुस्लिम बहुल इलाकों से दूरी, आम आदमी पार्टी को महंगी पड़ जाएगी.

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