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ED expose Chinese firm VIVO: प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi HC) में हलफनामा दायर कर ये खुलासा किया है कि वीवो मोबाइल कंपनी के खिलाफ चल रही जांच सिर्फ एक आर्थिक अपराध से नहीं जुड़ी है, बल्कि वीवो मोबाइल कंपनी ने मनी लॉन्ड्रिंग के जरिए देश की वित्तीय ढांचे को अस्थिर करने की कोशिश की है. जिसकी जांच ईडी कर रही है. VIVO समेत अन्य चीनी कंपनियों के वित्तीय लेन देन से भारत की अखंडता और संप्रभुता को भी खतरा पहुंचा है. ईडी ने 21 जुलाई को दिल्ली हाइकोर्ट में दाखिल अपने जवाबी हलफनामे में बताया कि एजेंसी द्वारा केस दर्ज करने के बाद कानून की सभी प्रक्रिया का पालन किया गया था.
ED ने 119 बैंक अकाउंट्स को किया था फ्रीज
ED ने ये जवाबी हलफनामा वीवो मोबाइल कंपनी द्वारा दायर याचिका के बाद दाखिल किया, जिसमें वीवो कंपनी ने अपने बैंक खातों को ऑपरेट करने की अनुमति मांगी थी. दरअसल ईडी ने चीनी फोन बनाने वाली कंपनी वीवो से जुड़े ठिकानों और GPICPL सहित इससे जुड़ी 23 अन्य कंपनियों के 48 ठिकानों की तलाशी ली थी, वीवो इंडिया सहित कई कंपनियों के ठिकानों की तलाशी के बाद, ED ने कई संस्थाओं के 119 बैंक खातों को फ्रीज कर दिया था.
जांच के दायरों में कई कंपनियां
इन बैंक खातों में 465 करोड़ रुपये का बैलेंस था, जिसमें वीवो इंडिया के 66 करोड़ रुपये का फिक्स्ड डिपॉजिट और 2 किलो सोना भी शामिल था. ईडी ने अपने हलफनामे के जरिए कोर्ट को बताया कि उसकी मनी लॉन्ड्रिंग जांच से पता चला है कि GPICL के खातों में जमा किए गए 1,487 करोड़ रुपये में से लगभग 1200 करोड़ रुपये वीवो को ट्रांसफर कर दिए गए हैं, जिसमे से 3 अकाउंट HDFC में है और एक अकाउंट यस बैंक में है. जांच के दायरे में 22 कंपनियां हैं. ईडी ने यह भी कहा कि इन फर्मों ने वीवो इंडिया को भारी मात्रा में फंड ट्रांसफर किया था.
कमाई का आधा हिस्सा भेजा चीन
ED ने अपने हलफनामे में सबसे ज्यादा चौकाने वाली जो जानकारी दी है, उसके मुताबिक वीवो कंपनी ने अपनी कुल बिक्री आय 1,25,185 करोड़ में से, वीवो इंडिया ने 62,476 करोड़ रुपये चीन को भेजा था. यानी भारत के बाहर किए गए कारोबार का लगभग 50 प्रतिशत सीधा चीन में ट्रांसफर कर दिया था और ऐसा वीवो कंपनी ने भारत मे टैक्स देने से बचने के लिए और इन कंपनियों ने भारी नुकसान दिखाने के लिए ये पैसा ट्रांसफर किया था.
ईडी ने कोर्ट को बताया कि उनके रडार पर आईं 22 कंपनियां या तो विदेशी नागरिकों के पास हैं या हांगकांग में स्थित विदेशी संस्थाओं के पास हैं. दरअसल इस पूरे मामले की शुरुआत तब हुई थी जब जीपीआईसीपीएल और उसके डायरेक्टर, शेयर धारकों समेत अन्य लोगों के खिलाफ कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय द्वारा दायर शिकायत पर पिछले साल दिसंबर में दिल्ली के कालकाजी पुलिस स्टेशन में केस दर्ज किया गया था. दिल्ली पुलिस द्वारा दर्ज FIR के अनुसार, GPICPL और उसके शेयर धारकों ने जाली पहचान दस्तावेजों का इस्तेमाल किया था और उसका गलत इस्तेमाल किया था.
जांच में हुआ इस बात का खुलासा
उसी मामले को आधार बनाते हुए ED इस साल 2 फरवरी को PMLA का मामला दर्ज किया था. ईडी ने कोर्ट को बताया कि जांच में आरोप सही पाए गए क्योंकि जांच से पता चला कि जीपीआईसीपीएल के निदेशकों द्वारा बताए गए पते उनके नहीं थे, वो एक एक सरकारी इमारत और एक वरिष्ठ नौकरशाह का घर था.
ईडी को अभी तक की अपनी जांच में पता चला है कि जीपीआईसीपीएल का वही निदेशक, जिसका नाम बिन लू है, वीवो का पूर्व निदेशक भी था. उसने साल 2014-15 में वीवो के शामिल होने के ठीक बाद, कई राज्यों में फैले देश एक ही समय में कुल 18 कंपनियों को शामिल किया था और आगे एक अन्य चीनी नागरिक जिक्सिन वेई ने और 4 कंपनियों को शामिल किया था.
ED ने अपने हलफनामे में उन चीनी कंपनियों द्वारा गठित फर्मों के नाम और पतों का भी जिक्र किया है. इनमें रुई चुआंग टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड (अहमदाबाद), वी ड्रीम टेक्नोलॉजी एंड कम्युनिकेशन प्राइवेट लिमिटेड (हैदराबाद), रेगेनवो मोबाइल प्राइवेट लिमिटेड (लखनऊ), फेंग्स टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड (चेन्नई), वीवो कम्युनिकेशन प्राइवेट सीमित (बैंगलोर), बुबुगाओ कम्युनिकेशन प्राइवेट लिमिटेड (जयपुर), हाइचेंग मोबाइल (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड (नई दिल्ली), जॉइनमे मुंबई इलेक्ट्रॉनिक्स प्राइवेट लिमिटेड (मुंबई), यिंगजिया कम्युनिकेशन प्राइवेट लिमिटेड (कोलकाता), जी लियान मोबाइल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (इंदौर), विगोर मोबाइल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (गुड़गांव), हिसोआ इलेक्ट्रॉनिक प्राइवेट लिमिटेड (पुणे), हैजिन ट्रेड इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (कोच्चि), रोंगशेंग मोबाइल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (गुवाहाटी), मोरफुन कम्युनिकेशन प्राइवेट लिमिटेड (पटना), अहुआ मोबाइल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (रायपुर), पायनियर मोबाइल प्राइवेट लिमिटेड (भुवनेश्वर), यूनिमे इलेक्ट्रॉनिक प्राइवेट लिमिटेड (नागपुर), जुनवेई इलेक्ट्रॉनिक प्राइवेट लिमिटेड (औरंगाबाद), हुइजिन इलेक्ट्रॉनिक इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (रांची), एमजीएम सेल्स प्राइवेट लिमिटेड (देहरादून), जॉइनमे इलेक्ट्रॉनिक प्राइवेट लिमिटेड (मुंबई).
हलफनामे में ED ने किया इस बात का जिक्र
ईडी ने हलफनामे में कोर्ट को ये भी बताया कि छापेमारी के बाद पता चला कि विवो मोबाइल्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को 1 अगस्त 2014 को मल्टी एकॉर्ड लिमिटेड की सहायक कंपनी के रूप में शामिल किया गया था, जो हांगकांग स्थित एक कंपनी थी और ROC (रजिस्ट्रार ऑफ कंपनी) दिल्ली में पंजीकृत थी, जबकि जीपीआईसीपीएल 3 दिसंबर 2014 को ROC शिमला में रजिस्टर्ड थी. ईडी ने ये भी दावा किया कि GPICPL को पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट नितिन गर्ग की मदद से झेंगशेन ओयू, बिन लू और झांग जी ने शामिल किया था. ईडी ने कहा था, 'बिन लू ने 26 अप्रैल, 2018 को भारत छोड़ दिया, जबकि झेंगशेन ओउ और झांग जी ने 2021 में भारत छोड़ दिया.'
जांच में पता चला कि नितिन गर्ग नाम का शख्स कॉइनमेन कंसल्टेंसी एलएलपी का पार्टनर है और उसी ने जीपीआईसीपीएल और वीवो की मदद कर दोनों को MCA (मिनिस्ट्री ऑफ कॉरपोरेट अफेयर) में शामिल करने में मदद की थी. जहां पर दोनों ने MCA फाइलिंग के दौरान अपना ईमेल आईडी peter.ou@vivoglobal.com दी थी, जिसने वीवो और जीपीआईसीपीएल के बीच के संबंध का भी खुलासा हुआ है. जिसके बाद ये साफ हो जाता है कि जाली दस्तावेजों के आधार पर बनाई गई कंपनी जीपीआईसीपीएल और वीवो के बीच गहरा संबंध है. इसके अलावा जांच के दौरान ये भी पता चला कि वीवो ने भारत के दूसरे राज्यों में भी इसी मॉडस ऑपरेंडी का इस्तेमाल किया गया है.
ED ने अपने हलफनामे में साफ कर दिया कि अभी तक कि जांच से पता चला है कि ये सिर्फ मनी लॉन्ड्रिंग का मामला ही नहीं है बल्कि देश के आर्थिक ढांचे पर एक बड़ा प्रहार है. इस मामले की तह तक जनेब के लिए अभी काफी जांच की जरूरत है और ऐसे में इन कंपनियों के बैंक अकाउंट को ऑपरेट करने की इजाजत देने से जांच प्रभावित हो सकती है.
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