Suppression of 1857 Revolt: उज्बेकिस्तान से आकर तलवारों के बल पर अपनी हुकूमत और लाखों लोगों का कत्लेआम करने वाले मुगल खानदान को भी आखिर में ऐसी ही भयानक मौत का सामना करना पड़ा. अंग्रेजों ने आखिरी मुगल बादशाह और उनके 29 शहजादों को पकड़कर ऐसी खौफनाक मौत दी कि लोग दहशत से भर उठे थे.
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Suppression of Mughal Emperor Zafar and 1857 Revolt by Britishers: देश पर कई वर्षों तक राज करने वाले क्रूर मुगल बादशाहों को भी एक दिन उसी नियति से गुजरना पड़ा था, जो उन्होंने अपनी तलवारों के बल पर भारतीयों के साथ की थी. देश के नए कब्जेदार अंग्रेजों ने आखिरी मुगल बादशाह जफर के परिवार वालों को इतनी भयंकर मौत दी थी कि दिल्ली के लोग कांप उठे थे. जफर के शहजादों और पोतों को एक-एक करके पकड़ा गया और नंगा करके सबके सामने गोलियां मार दी गई. अंग्रेजों ने मुगलों में इतना आतंक भर दिया था कि उनके वारिस अपनी जान बचाने के लिए दर-दर भटक रहे थे.
मुगल खानदान का दमन करने का आदेश
असल में 1857 में अंग्रेजों के कब्जे को खत्म करने के लिए भारतीयों का पहला संगठित विद्रोह हुआ था. इस विद्रोह का नेतृत्व आखिरी मुगल बादशाह जफर कर रहा था. अंग्रेजों ने अपनी दमनकारी नीति से इन विद्रोह को तो कुचल दिया लेकिन वे बगावत में जफर (Role of Zafar in 1857 Revolt) और उनके परिवार वालों की भूमिका से बुरी तरह भड़के हुए थे. कोलकाता से ब्रिटिश राज चलाने वाले लॉर्ड कैनिंग का अपने सभी मिलिट्री और सिविल अफसरों को निर्देश था कि मुगलों से किसी तरह का समझौता किए बिना उनसे बगैर शर्त सरेंडर करवाया जाए. वहीं जनरल विल्सन जफर और उनके वारिसों को जिंदा छोड़ने के लिए अनिच्छुक था.
जानबख्शी के आश्वासन के साथ जफर की गिरफ्तारी
ऊपरी आदेश पर अमल करते हुए कैप्टन हॉडसन अपने गोरखा सैनिकों के साथ सबसे पहले हुमायूं का मकबरा पहुंचा. वहां पर जफर अपने 3-4 हजार लोगों के साथ मौजूद था. हॉडसन ने अपने 2 मुस्लिम दूतों को अंदर भेजकर जफर (Mughal Emperor Zafar) को जान बख्शी का आश्वासन देकर सरेंडर करवाया और उसके बाद गिरफ्तार कर लिया. जब उसने यह सूचना जनरल विल्सन को दी तो वह जफर को जिंदा पकड़े जाने से नाराज हो गया. अपने दोनों सीनियर अधिकारियों की इच्छाओं को भांपते हुए कैप्टन हॉडसन ने जो खूनी खेल शुरू किया, उसे देखकर मुगलों के खानदान में दहशत फैल गई थी.
दोनों जवान बेटों की गोली मारकर हत्या
हॉडसन ने अपने सैनिकों के साथ सबसे पहले जफर (Mughal Emperor Zafar) के 18 साल के बेटे मिर्जा बख्तावर शाह और 17 साल के मिर्जा मियांदू को पकड़ा. जल्द ही उन्हें मौत की सजा सुना दी गई. गोरखा सिपाहियों को उन दोनों को गोली मारने का हुक्म दिया गया. गोरखा सैनिकों ने दोनों शहजादों को दर्दनाक मौत देने के लिए उनके पैरों में गोलियां मारी. जब वे गोली लगने के बाद दर्द से छटपटाने लगे तो सैनिकों के कंपनी कमांडर ने उनकी छाती में गोली मारकर जान ले ली.
तीन शहजादों को नंगा करके मारा गया
इसके बाद कैप्टन हॉडसन फिर से हुमायूं का मकबरा पहुंचा. वहां पर मुगल शहजादे मिर्ज़ा मुग़ल, खिजर सुलतान और अबूबक्र सैकड़ों लोगों की भीड़ के साथ मौजूद थे. हॉडसन ने उन्हें बिना शर्त सरेंडर करने के लिए कहा. अपने बाप जफर की तरह जान बख्श देने की उम्मीद में तीनों शहजादे बैलगाड़ी में बैठकर बाहर आ गए. कुछ मील आगे चलने के बाद हॉडसन ने उन्हें नीचे उतरने के लिए कहा. इसके बाद उन्हें नंगा होने का हुक्म दिया गया. उनके निर्वस्त्र होने के बाद हॉडसन ने तीनों को एक-एक कर गोली मार दी. उनके मरने के बाद हॉडसन ने उनकी उंगलियों से सोने की अंगूठी, बाजूबंद और जड़ाऊ तलवारें निकालकर अपने कब्जे में ली.
कोतवाली के सामने पड़ी रही थीं लाशें
इसके बाद तीनों की लाशों को दिल्ली कोतवाली के सामने फिंकवा दिया गया, जिससे शहर के लोग अंग्रेजों से बगावत करने का अंजाम देख सकें. दिल्ली में जिस जगह जफर के बेटों को मारा गया, उसे अब खूनी दरवाजा कहते हैं. कुल मिलाकर शाही खानदान के 29 शहजादे पकड़े और मारे गए. मुगल खानदान के इस सफाये ने हर किसी की रुह कंपा दी थी. मिर्जा गालिब ने इस कत्लेआम के बाद क़िला-ए-मुबारक को क़िला-ए-नामुबारक नाम दे दिया था.
सिख पहरेदार की वजह से 2 की बची थी जान
इस कत्लेआम के बीच जफर (Mughal Emperor Zafar) के दो बेटे मिर्जा अब्दुल्लाह और मिर्जा क्वैश अपनी जान बचाने में कामयाब रहे थे. वे दोनों भी भीड़ के साथ हुमायूं मकबरे में पनाह लिए हुए थे और बाद में अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार किए गए थे. उन दोनों को एक सिख सैनिक की पहरेदारी में रखा गया था. उन दोनों की हालत देखकर सिख सैनिक को उन पर दया आ गई और उसने अपना मुंह दूसरी ओर करते हुए कहा कि जितनी दूर भाग सकते हो भाग जाओ वरना यहां मारे जाओगे.
29 में से 15 शहजादों को मार दिया गया
इसके बाद मिर्ज़ा क्वैश फकीर का वेष बनाकर छिपता-छिपाता हुआ राजस्थान के उदयपुर में भागने में कामयाब रहा और वहीं पर 32 साल बाद उसकी मौत हुई. जबकि मिर्जा अब्दुल्लाह अंग्रेजों से बचते हुए राजस्थान की टोंक रियासत में पहुंचा. वहां पर वह भिखारी की तरह सड़कों पर इधर-उधर भटकता रहा और उसी हालत में मर गया. अंग्रेजों ने इस खूनी अभियान में पकड़े गए मुगल खानदान के 29 लोगों में से 15 की दर्दनाक हत्या कर दी थी. जबकि जफर (Mughal Emperor Zafar) समेत बाकी लोगो को रंगून, बनारस और कालापानी जैसी जगहों पर भेजा गया, जहां उन्हें स्थानीय आबादी का कोई समर्थन न मिल सके.
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