सिर्फ 52 दिन ही दिल्ली की CM रहीं सुषमा स्वराज, बीजेपी में ही बन गए थे 3 गुट.. चली गई सत्ता
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सिर्फ 52 दिन ही दिल्ली की CM रहीं सुषमा स्वराज, बीजेपी में ही बन गए थे 3 गुट.. चली गई सत्ता

Delhi Chunav Result: पहले मदनलाल खुराना को हवाला मामले के आरोपों के चलते हटना पड़ा फिर साहिब सिंह वर्मा को प्याज की महंगाई और खराब प्रशासनिक छवि के कारण हटाया गया. 12 अक्टूबर 1998 को बीजेपी ने सुषमा स्वराज को दिल्ली की कमान सौंपी.

सिर्फ 52 दिन ही दिल्ली की CM रहीं सुषमा स्वराज, बीजेपी में ही बन गए थे 3 गुट.. चली गई सत्ता

Sushma Swaraj Delhi CM: दिल्ली विधानसभा चुनाव के परिणाम आ रहे हैं और राजधानी को जल्द ही नया मुख्यमंत्री मिलने वाला है. इस मौके पर हम आपको दिल्ली की राजनीति से जुड़े कुछ ऐसे रोचक तथ्य बता रहे हैं जो शायद अब तक आपकी नजरों में नहीं आए होंगे. इस कड़ी में बात करते हैं सुषमा स्वराज की जो महज 52 दिनों के लिए दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं और बीजेपी की अंदरूनी खींचतान और महंगाई की मार के चलते सत्ता से बाहर हो गईं. 

2 मुख्यमंत्रियों के बाद सुषमा स्वराज को कमान मिली
1993 में जब दिल्ली में पहली बार विधानसभा चुनाव हुए तो बीजेपी ने 70 में से 49 सीटें जीतकर सरकार बनाई. मगर पार्टी के भीतर गुटबाजी के चलते उसने लगातार तीन मुख्यमंत्री बदले. पहले मदनलाल खुराना को हवाला मामले के आरोपों के चलते हटना पड़ा फिर साहिब सिंह वर्मा को प्याज की महंगाई और खराब प्रशासनिक छवि के कारण हटाया गया. 12 अक्टूबर 1998 को बीजेपी ने सुषमा स्वराज को दिल्ली की कमान सौंपी लेकिन उनकी सरकार केवल 52 दिन ही चल पाई.

महंगाई और प्याज की कीमतों से बीजेपी को बड़ा झटका
जब सुषमा स्वराज मुख्यमंत्री बनीं उस वक्त देशभर में प्याज की कीमतें आसमान छू रही थीं. दिल्ली में प्याज 60-80 रुपये किलो बिक रहा था. जिससे जनता में जबरदस्त आक्रोश था. कांग्रेस ने इसका फायदा उठाया और प्याज की मालाएं पहनकर विरोध प्रदर्शन किए. सुषमा स्वराज ने जनता को सस्ते दामों पर प्याज उपलब्ध कराने की योजना बनाई लेकिन वह सफल नहीं हुई. महंगाई ने बीजेपी सरकार की लोकप्रियता को बुरी तरह गिरा दिया.

शीला दीक्षित बनीं कांग्रेस का मास्टरस्ट्रोक
बीजेपी ने सुषमा स्वराज पर दांव खेला. लेकिन कांग्रेस ने एक और महिला नेता शीला दीक्षित को दिल्ली में अपना चेहरा बना दिया. शीला दीक्षित की सहज और जमीन से जुड़ी राजनीति ने जनता को प्रभावित किया. कांग्रेस को 52 सीटें मिलीं. जबकि बीजेपी महज 15 सीटों पर सिमट गई. शीला दीक्षित ने दिल्ली में अपनी जड़ें इतनी मजबूत कर लीं कि वह लगातार तीन बार मुख्यमंत्री बनीं और 15 साल तक सत्ता में बनी रहीं.

बीजेपी की अंदरूनी गुटबाजी बनी हार की बड़ी वजह
बीजेपी की हार की एक और बड़ी वजह पार्टी के भीतर तीन गुटों का बनना था मदनलाल खुराना गुट, साहिब सिंह वर्मा गुट और सुषमा स्वराज गुट. चुनाव में ये गुटबाजी खुलकर सामने आ गई जिससे पार्टी कमजोर हो गई और जनता का भरोसा उठ गया. नतीजा यह हुआ कि 1998 में सत्ता कांग्रेस के हाथों चली गई और बीजेपी फिर कभी दिल्ली में सरकार नहीं बना सकी.

दिल्ली की सत्ता से 25 साल से बाहर बीजेपी
1998 में सत्ता गंवाने के बाद बीजेपी ने कई चुनाव लड़े लेकिन वह दिल्ली की सत्ता में वापसी नहीं कर सकी. सुषमा स्वराज के बाद 2013 में अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी ने उभरकर बीजेपी और कांग्रेस को पीछे छोड़ दिया.

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