Gurmukh Nihal Singh: सत्ता संभालते ही गुरमुख निहाल सिंह ने दिल्ली में शराबबंदी लागू कर दी. उनकी इस नीति की आलोचना और समर्थन दोनों मिले. शराबबंदी के फैसले के बाद राष्ट्रीय राजधानी में हड़कंप मच गया. स्थानीय व्यापारियों और शराब उद्योग से जुड़े लोगों ने इसका विरोध किया.
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Delhi Second Chief Minister: दिल्ली में विधानसभा चुनाव के नतीजे आने वाले हैं और जल्द ही राजधानी को नया मुख्यमंत्री मिलने वाला है. ऐसे में दिल्ली के राजनीतिक इतिहास को खंगालने पर कई दिलचस्प घटनाएं सामने आती हैं जिनमें से कुछ कम ही लोगों को पता होती हैं. ऐसी ही एक कहानी है गुरमुख निहाल सिंह की जो लंदन से लौटे थे और दिल्ली के दूसरे मुख्यमंत्री बने थे. उन्होंने 13 फरवरी 1955 को सत्ता संभाली थी लेकिन उनकी सबसे चर्चित नीति थी शराबबंदी. उनके इस फैसले से दिल्ली में जबरदस्त हंगामा मच गया था यहां तक कि प्रधानमंत्री नेहरू को भी दखल देना पड़ा था.
दिल्ली में शराबबंदी लागू कर दी
12 फरवरी 1955 को चौधरी ब्रह्मप्रकाश से जबरन इस्तीफा लिया गया था. इसके बाद गोविंद बल्लभ पंत ने अपनी पसंद के गुरमुख निहाल सिंह को दिल्ली का नया मुख्यमंत्री बनवा दिया. उस दौर में दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं थी, लेकिन मुख्यमंत्री की भूमिका महत्वपूर्ण थी. सत्ता संभालते ही गुरमुख निहाल सिंह ने दिल्ली में शराबबंदी लागू कर दी. उनकी इस नीति की आलोचना और समर्थन दोनों मिले. उनके बेटे और पत्रकार सुरेंद्र निहाल सिंह ने अपनी किताब Ink in My Veins में लिखा है कि यह फैसला बेहद साहसिक था लेकिन इसके नतीजे उलटे भी पड़ सकते थे.
पार्टी के अंदर भी दो गुट बन गए
शराबबंदी के फैसले के बाद राष्ट्रीय राजधानी में हड़कंप मच गया. स्थानीय व्यापारियों और शराब उद्योग से जुड़े लोगों ने इसका विरोध किया. पार्टी के अंदर भी दो गुट बन गए एक पक्ष गुरमुख निहाल सिंह के समर्थन में था तो दूसरा इसके खिलाफ. मामला इतना बढ़ा कि प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को खुद इस पर टिप्पणी करनी पड़ी. 26 जुलाई, 1956 को उन्होंने गुरमुख निहाल सिंह को पत्र लिखा जिसमें उन्होंने कहा कि शराबबंदी सही नीति हो सकती है. लेकिन इससे अवैध शराब तस्करी और निर्माण बढ़ने का खतरा बना रहता है. नेहरू ने यह भी लिखा कि स्वास्थ्य मंत्री राजकुमारी अमृत कौर ने बताया है कि कुछ इलाकों में अवैध शराब का कारोबार पहले ही शुरू हो चुका है.
राजनीतिक रूप से काफी विवादित
हालांकि इन सभी विरोधों के बावजूद गुरमुख निहाल सिंह अपने फैसले से पीछे नहीं हटे. शराबबंदी को लेकर कड़े कानून लागू किए गए. कांग्रेस नेता मोरारजी देसाई जो खुद भी शराबबंदी के समर्थक थे. इस फैसले को सही ठहराया. इसी दौरान यह अफवाह भी फैली कि गुरमुख निहाल सिंह ने अपने बेटे की शराब की लत से परेशान होकर यह कदम उठाया था. हालांकि इस बात की कभी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई. लेकिन यह सच है कि उनका यह फैसला राजनीतिक रूप से काफी विवादित रहा.
20 महीने बाद, 1 नवंबर 1956 को दिल्ली में बड़ा प्रशासनिक बदलाव हुआ. राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशें लागू कर दी गईं और दिल्ली विधानसभा को भंग कर दिया गया. इसके साथ ही गुरमुख निहाल सिंह का मुख्यमंत्री कार्यकाल समाप्त हो गया लेकिन उन्हें राजस्थान का पहला राज्यपाल नियुक्त कर दिया गया. उन्होंने दिल्ली के इतिहास में एक ऐसा अध्याय जोड़ा जो आज भी चर्चा में आता है.