जब 41 साल तक कोई नहीं था दिल्ली का सीएम, फिर 1993 में नरसिम्हा राव सरकार ने बदली राजधानी की 'राजनीति'
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जब 41 साल तक कोई नहीं था दिल्ली का सीएम, फिर 1993 में नरसिम्हा राव सरकार ने बदली राजधानी की 'राजनीति'

Delhi Chunav Result: 1991 में केंद्र की नरसिम्हा राव सरकार ने संविधान में 69वां संशोधन किया जिसके जरिए दिल्ली को विशेष केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा दिया गया. इसके तहत दिल्ली विधानसभा की 70 सीटों का प्रावधान किया गया और मुख्यमंत्री का पद फिर से बहाल हुआ. 

जब 41 साल तक कोई नहीं था दिल्ली का सीएम, फिर 1993 में नरसिम्हा राव सरकार ने बदली राजधानी की 'राजनीति'

Delhi CM history: दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे जल्द ही सामने आने वाले हैं और दिल्ली को नया मुख्यमंत्री मिलने वाला है. इस राजनीतिक घटनाक्रम के बीच दिल्ली की प्रशासनिक स्थिति और मुख्यमंत्री पद का इतिहास जानना दिलचस्प होगा. क्या आप जानते हैं कि 1956 से लेकर 1993 तक दिल्ली में कोई मुख्यमंत्री नहीं था? पूरे 37 साल तक दिल्ली में विधानसभा चुनाव नहीं हुए. इस दौरान दिल्ली सीधे केंद्र सरकार के अधीन रही. लेकिन फिर 1993 में नरसिम्हा राव सरकार के एक बड़े फैसले ने दिल्ली की राजनीति को हमेशा के लिए बदल दिया. 

कैसे खत्म हुआ दिल्ली का मुख्यमंत्री पद?
1956 में जब भारत में राज्यों का पुनर्गठन हुआ, तब दिल्ली को 'सी' श्रेणी के राज्य से हटाकर केंद्रशासित प्रदेश बना दिया गया. इसका नतीजा यह हुआ कि 1952 में बनी दिल्ली विधानसभा को भंग कर दिया गया और मुख्यमंत्री का पद समाप्त कर दिया गया. अब दिल्ली सीधे केंद्र सरकार के अधीन आ गई. हालांकि, जनता इस फैसले से खुश नहीं थी और दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग उठने लगी. इसके समाधान के तौर पर 1957 में दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) की स्थापना की गई, लेकिन यह मुख्यमंत्री और विधानसभा का विकल्प नहीं था.

मेट्रोपॉलिटन काउंसिल का गठन और उसकी सीमाएं
1966 में सहकारिया आयोग की सिफारिशों के बाद ‘दिल्ली प्रशासनिक अधिनियम’ लागू किया गया. इसके तहत दिल्ली में विधानसभा की जगह 56 सदस्यीय ‘मेट्रोपॉलिटन काउंसिल’ बनाई गई, जिसका काम सिर्फ उपराज्यपाल को सुझाव देना था. इसका प्रमुख ‘चीफ एग्जिक्यूटिव काउंसिलर’ होता था, लेकिन उसके पास कोई ठोस प्रशासनिक शक्ति नहीं थी. 1967 में इस काउंसिल के लिए चुनाव हुए और विजय कुमार मल्होत्रा इसके पहले प्रमुख बने. इसके बाद कई बार इसके चुनाव हुए और कांग्रेस व जनता पार्टी बारी-बारी से सत्ता में आती रहीं, लेकिन जनता को अभी भी एक पूर्ण राज्य और शक्तिशाली मुख्यमंत्री की जरूरत महसूस हो रही थी.

कैसे लौटा दिल्ली का विधानसभा और मुख्यमंत्री पद?
1990 के दशक में इस मुद्दे पर बड़ा बदलाव आया. 1991 में केंद्र की नरसिम्हा राव सरकार ने संविधान में 69वां संशोधन किया जिसके जरिए दिल्ली को विशेष केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा दिया गया. इसके तहत दिल्ली विधानसभा की 70 सीटों का प्रावधान किया गया और मुख्यमंत्री का पद फिर से बहाल हुआ. इस नए प्रशासनिक ढांचे के तहत 1993 में पहली बार दिल्ली में विधानसभा चुनाव कराए गए.

1993 में हुआ पहला चुनाव, बीजेपी को मिली जीत
1993 में हुए पहले चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने मदन लाल खुराना को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाया. कांग्रेस, जो 1984 के सिख दंगों के चलते पहले से कमजोर स्थिति में थी, को इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा. बीजेपी ने 70 में से 49 सीटें जीतकर भारी बहुमत हासिल किया और 2 दिसंबर 1993 को मदन लाल खुराना दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री बने. इस चुनाव ने दिल्ली की राजनीति में बड़ा बदलाव किया और इसके बाद दिल्ली में मुख्यमंत्री पद की परंपरा फिर से शुरू हो गई.

आज भी जारी है पूर्ण राज्य की मांग
1993 में मुख्यमंत्री पद की वापसी के बावजूद दिल्ली अब भी पूर्ण राज्य नहीं बन सकी. मुख्यमंत्री को कई अहम फैसलों के लिए उपराज्यपाल और केंद्र सरकार पर निर्भर रहना पड़ता है. यही कारण है कि आज भी दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग उठती रहती है. हर चुनाव में यह मुद्दा चर्चा में रहता है. 1993 के बाद से दिल्ली की राजनीति कई बदलावों से गुजरी है.

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