UP Madrasa Board: उत्तर प्रदेश के 17 लाख मदरसा छात्रों का क्या होगा? सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में यूपी सरकार का बड़ा कदम
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UP Madrasa Board: उत्तर प्रदेश के 17 लाख मदरसा छात्रों का क्या होगा? सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में यूपी सरकार का बड़ा कदम

UP Madrasa Board: मदरसा एक्ट रद्द करने के फैसले के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को सुनवाई हुई थी और आज यानी मंगलवार को यूपी सरकार ने मामले में अपनी दलील रखी है.

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लखनऊ: उत्तर प्रदेश के 17 लाख मदरसा छात्रों का क्या होगा? सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के बाद इस सवाल का जवाब और मदरसा के करीब 17 लाख मदरसा छात्रों को राहत भी मिली है. दरएसल, इसके अलावा मदरसा एक्ट को असंवैधानिक घोषित करने के इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. यूपी सरकार की ओर से इस फैसले पर कहा गया कि हमने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को स्वीकार किया है और उसके खिलाफ कोई अर्जी दाखिल न करने का फैसला लिया है. हालांकि जहां तक मदरसा एक्ट की वैधता का प्रश्न हैं तो हमने इलाहाबाद HC में भी एक्ट के समर्थन में दलील रखी थी. मदरसा एक्ट को लेकर हमारा रुख आज भी वही है. हमारा कहना है कि मदरसा एक्ट को पूरी तरह रद्द करने का फैसला ठीक नहीं था. इसके सिर्फ उन प्रावधानों की समीक्षा की जा सकती है जो मूल अधिकारों के खिलाफ जाते हैं एक्ट में जरूरी बदलाव किए जा सकते हैं लेकिन इसको पूरी तरह रद्द करना ठीक नहीं था.

सुप्रीम कोर्ट ने पूछा सुनवाई के दौरान पूछा था कि-
यूपी के मदरसा एक्ट को असंवैधानिक करार देने के इस मामले में सोमवार को याचिकाकर्ताओं की बहस पूरी हो गई थी और मंगलवार को उत्तर प्रदेश सरकार को इस मामले पर अपना पक्ष रखना था. इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई की थी. दरअसल हाईकोर्ट के इस फैसले में उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004 को असंवैधानिक करार दिया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि उस अधिनियम को हाई कोर्ट ने असंवैधानिक क्यों ठहराया, जबकि यह मुख्य रूप से एक नियामक कानून था.

एक धर्मनिरपेक्ष राज्य
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने मामले में पूछा था कि अधिनियम बहुत स्पष्ट है. यह सेवा की शर्तों के साथ ही नियमों के निर्माण आदि को तय करता है. मुख्य रूप से यह एक नियामक कानून है, ऐसे में किस आधार पर इसे असंवैधानिक बताया गया? हालांकि इस सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने ये माना था कि धार्मिक शिक्षा के लिए बोर्ड बनाने या सिर्फ एक विशेष धर्म और उससे संबंधित दर्शन के लिए स्कूल शिक्षा बोर्ड स्थापित करने की शक्ति एक धर्मनिरपेक्ष राज्य के पास नहीं है.

'असंवैधानिक' व धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन
इससे पहले इस साल पांच अप्रैल को तीन जजों की पीठ ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस फैसले पर रोक लगाई थी जिससे करीब 17 लाख मदरसा छात्रों को राहत मिली थी. मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने इस फैसले को रोका था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हाईकोर्ट के फैसले से 17 लाख छात्रों पर असर पड़ेगा और दूसरे स्कूल में छात्रों को ट्रांसफर करने का निर्देश देना ठीक नहीं. जानकारी दे दें कि उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 को हाईकोर्ट ने 22 मार्च को 'असंवैधानिक' व धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन करने वाला करार दिया था. 

मदरसे बंद करने के फैसले पर लगी थी रोक 
वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अपने फैसले में मदरसों के संबंध में जो एक और फैसला दिया वो ये था कि कोर्ट ने मदरसे बंद करने के फैसले पर केंद्र और राज्य सरकारों को रोक लगा दी. 7 जून और 25 जून को  राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने राज्यों को इससे संबंधित सिफारिश की जिसका केंद्र ने समर्थन किया और राज्यों से इस पर एक्शन लेने के लिए कहा था.

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