Child Mental Health: पिछले कुछ सालों में बच्चों में मोबाइल एडिक्शन काफी बढ़ गया है, खासकर ऑनलाइन गेमिंग की लत उन्हें बर्बाद कर रही है, जिससे वो अपने पैरेंट्स से इमोशनली दूर होते जा रहे हैं.
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Online Gaming Addiction in Children: जल्दी ही बच्चों की गर्मियों की छुट्टियां शुरू होने वाली हैं और मां बाप के लिए सबसे बड़ी चिंता ये है कि पूरे दिन उन्हें संभालना पड़ेगा. अब इस दौरान कुछ मां-बाप अपने बच्चों को पार्क वगैरह में खेलने-कूदने के लिए ले जाएंगे और कुछ मां-बाप अपने बच्चों को मोबाइल फोन दे देंगे. आज हम ऐसे ही पैरेंट्स के लिए एक खास खबर लेकर आएं हैं, जो उनको ये बताएगी, कि वो अपने बच्चों को खुद से दूर करते जा रहे हैं. बच्चों और माता-पिता के बीच की दूरी की सबसे बड़ी वजह मोबाइल फोन है.
मोबाइल में क्या देखते हैं बच्चे?
आजकल मोबाइल फोन से बातचीत के अलावा, दो सबसे पसंदीदा काम किए जाते हैं. पहला ऑनलाइन गेमिंग और दूसरा है रील्स देखना. मोबाइल फोन का असली काम वैसे तो बात करना होता है, लेकिन पिछले कुछ सालों में गेमिंग और रील्स ने मोबाइन फोन को मनोरंजन का साधन बना दिया है. यही वजह है कि एंटरटेनमेंट पाने के लिए हर उम्र के लोग मोबाइल फोन से खुद को दूर नहीं कर पाते. इसे आप एक तरह की लत कह सकते हैं.
मोबाइल एडिक्शन को लेकर सरकार सचेत
बच्चों में भी ये एक बुरी लत बनता जा रहा है. हाल ही में केंद्र सरकार ने फैसला किया है कि वो ऑनलाइन गेमिंग की लत पर मनोवैज्ञानिक सर्वे करेगी. यानी वो ये जानने की कोशिश कर रही है कि इसका लोगों पर क्या मनोवैज्ञानिक असर पड़ रहा है. हम आपको डराना नहीं चाहते हैं, लेकिन इसका सबसे बुरा असर आपके पारिवारिक जीवन पर पड़ रहा है. जिसमें बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं.
मां-बाप से बिगड़ रहे हैं रिश्ते
हाल ही में अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन (American Medical Association) की एक स्टडी में बताया गया है कि जो बच्चे मोबाइल फोन की स्क्रीन के सामने ज्यादा समय बिताते हैं, माता-पिता के साथ उनके रिश्ते खराब होने की संभावना बढ़ जाती है. यानी अगर आप भी अपने बच्चों को समय बिताने के लिए मोबाइल दे देते हैं, तो आप अपने बच्चों को खुद से दूर करते जा रहे हैं.
इस स्टडी के नतीजे
1. स्टडी में बताया गया है कि जिन बच्चों का स्क्रीन टाइम हर दिन 2 घंटे से ज्यादा है, मां-बाप से उनके रिश्ते खराब होने की संभावना 20 फीसदी ज्यादा होती है.
2. मोबाइल स्क्रीन पर समय बिताने वाले बच्चे मोटापा और डिप्रेशन जैसी बीमारी के शिकार हो सकते हैं.
3. डराने वाली बात ये है कि भारत में 91 फीसदी बच्चे मोबाइल फोन पर ज़्यादा से ज़्यादा समय बिता रहे हैं.
4. स्टडी के मुताबिक सोशल मीडिया पर समय बिताने से रिश्तों पर सबसे अधिक नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.
5. यहां एक बात और बताई गई है कि टीवी देखने वाले बच्चों का उनके मां-बाप से रिश्तों पर कम प्रभाव पड़ता है.
कोरोना ने बढ़ाया मोबाइल का यूज
कोरोना वायरस संक्रमण की महामारी के समय, बच्चों को ऑनलाइन क्लासेज के लिए प्रेरित किया गया, जिससे बच्चों को मोबाइल फोन या टैबलेट की आदत पड़ने लगी. पढ़ाई के लिए स्क्रीन टाइम बढ़ा तो इसके बाद गेमिंग और रील्स देखने के नाम पर भी वक्त बढ़ता चला गया. आज स्थिति ये है कि मां बाप अपने बच्चों को इस बात पर डांटते हैं कि वो दिनभर मोबाइल फोन में ही लगे रहते हैं.
बच्चों को बीजी रखने के लिए मोबाइल
Gen Z यानी साल 2000 के बाद पैदा हुए बच्चों को इस बात कोई अंदाजा नहीं होगा, कि Gen X यानी उनके दादा-दादी की जेनरेशन, Millennials यानी उनके मां बाप को ज्यादा समय तक बाहर खेलने के पर डांटा करती थी. अब धीरे धीरे स्थिति ये आ रही है कि मां बाप अपने बच्चों के हाथों में मोबाइल फोन देखकर गुस्से में आ जाते हैं, लेकिन ये बात भूल जाते हैं कि बच्चों को बिजी रखने के चक्कर में दरअसल, उन्होंने ही बच्चों को मोबाइल फोन या टैब थमाए थे.
मना करने पर चिढ़ जाते हैं बच्चे
हमने इस मुद्दे पर एक खास रिपोर्ट तैयार की है. हमने बच्चों के उनके फेवरेट खिलौने मोबाइल फोन को लेकर सवाल जवाब किए, यही नहीं हमने कुछ मां-बाप से भी बात की. उनका कहना है कि बच्चे खाना नहीं खाते मोबाइल में लगे रहते हैं, अगर कुछ कह दो तो चिढ़ जाते हैं.
पार्क में भीड़ कम
एक वो वक्त था जब परीक्षाएं खत्म होने के बाद खुले मैदानों और पार्कों में बच्चों की भीड़ जमा हो जाती थी, आज वो वक्त है जब पार्क और मैदान खाली हैं. यहां बच्चों की गिनती ना के बराबर है. ऐसा नहीं है कि बच्चे नाना नानी के घर चले गए हैं, बच्चे यही हैं, बस वो आजकल मोबाइल फोन के मैट्रिक्स में फंसे हुए हैं.
'मी टाइम' के चक्कर में पैरेंट्स
आजकल मां बाप में एक नया वेस्टर्न ट्रेंड चल रहा है. इसे कहते हैं मी टाइम (Me time) यानी खुद के लिए समय. उन्हें जब खुद के लिए समय चाहिए होता है तो घर में मौजूद बच्चे उनके साथ खेलना चाहते हैं. बस इसी मी टाइम के चक्कर में मां-बाप अपने बच्चों को मोबाइल थमा देते हैं. बच्चे भी बिजी हो जाते हैं और पैरेंट्स भी मी टाइम एन्जॉय करते हैं, लेकिन हम ऐसे मां-बाप से कुछ सवाल पूछना चाहते हैं.
मां-बाप इन बातों पर करें गौर
1. क्या आपके बच्चा चिड़चिड़ा होता जा रहा है?
2. क्या आपका बच्चा लोगों से कम बात करता है?
3. क्या आपका बच्चे अकेले रहना पसंद करता है?
4. क्या आपको अपने बच्चे में अक्सर घबराहट दिखाई देती है?
5. क्या वो बाहर खेलने जाता है?
6. क्या हमेशा वो मोबाइल फोन या टैबलेट में बिजी रहता है?
सावधान हो जाएं
अगर हमारे इन सारे सवालों के जवाब हां में हैं, तो हम आपको सावधान करना चाहते हैं, आपके बच्चे को मोबाइल फोन की खराब लत लग चुकी है. और वो आपसे और आपके प्रेम से दूर जाने लगा है. उसे गेमिंग डिसऑर्डर हो गया है। WHO के मुताबिक किसी व्यक्ति में गेमिंग डिसऑर्डर वो अवस्था है जब व्यक्ति का नियंत्रण खुद से हटने लगता है.
ऑनलाइन गेम्स
ज्यादातर बच्चों को मोबाइल फोन इसलिए चाहिए क्योंकि उन्हें उसमें ऑनलाइन गेम खेलना है. ऑनलाइन गेमिंग हर उम्र के लोगों के दिमाग पर असर डालती है. इसकी वजह से लोग पूरी दुनिया कटकर, एक वर्चुअल दुनिया में बिजी हो जाते हैं. हम कुछ बच्चों से बात की, उनकी मानें तो अगर कुछ बच्चे कहीं इकट्ठा हो भी जाते हैं तो दरअसल किसी गेम के जरिए वर्चुअल ही जुड़े रहते हैं.
मेंटल हेल्थ पर असर
स्क्रीन टाइम का सबसे बुरा असर मानसिक सेहत पर पड़ता है. इस बात का पता भी तब चलता है, जब किसी व्यक्ति का व्यवहार अचानक बदलने लगता है. बच्चे में इसका असर जल्दी दिखता है,क्योंकि वो उनके सीखने की उम्र होती है. कहते हैं ज्यादा चीनी भी शरीर के लिए जहर का काम करती है. मोबाइल फोन या टैबलेट अगर किसी समय में वरदान की तरह था, तो आज वो अभिशाप बन गया है. हम ये नहीं कहते कि सभी मां-बाप ऐसा करते हैं कुछ ऐसे भी हैं जो अपने बच्चों को अभी से ही मोबाइल फोन से दूरी बनाकर रखने, पार्क, मैदान में खेलने की आदत डलवा रहे हैं.
सरकार की स्टडी
ऑनलाइन गेमिंग का मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ रहा असर, सरकार की चिंता भी बना हुआ है. भारत सरकार अब बेंगलुरू के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेज (NIMHANS) के साथ मिलकर एक स्टडी करने जा रहे है. इसमें ऑनलाइन गेमिंग का हर उम्र के लोगों पर पड़ रहे बुरे असर की स्टडी की जाएगी. इसके आधार पर गाइडलाइंस तैयार की जाएंगी, ताकि बच्चे और बड़े, किसी मोबाइल फोन गेम को खेलने से गेमिंग डिसऑर्डर से पीड़ित ना हों.
बढ़ रहा है 'नोमोफोबिया'
एक मानसिक बीमारी होती है, जिसे कहते हैं नोमोफोबिया (Nomophobia) इसको आप नो मोबाइल फोन फोबिया (No Mobile Phone Phobia) भी कह सकते हैं. इस मानसिक बीमारी से पीड़ित लोग अपने मोबाइल फोन से दूर नहीं रह पाते. ऐसा होते ही उन्हें घबराहट होने लगती है, वो परेशान रहने लगते हैं. बच्चों को मोबाइल फोन से दूर रखिए, क्योंकि ऐसी स्थिति उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है.
मोबाइल की लत कैसे छुड़ाएं?
अब सवाल ये है कि ऐसा क्या किया जाए जिससे बच्चों में मोबाइल एडिक्शन कम हो जाए, तो हम आपको कुछ उपाय बताते हैं.
1. बच्चों के लिए मोबाइल फोन इस्तेमाल करने का टाइम निर्धारित करें.
2. सोने से कुछ घंटे पहले से ही उनका Screen time बंद कर दें, ये मोबाइल फोन भी हो सकता है और टैबलेट या लैपटॉप भी.
3. खाना खाने वक्त मोबाइल फोन का इस्तेमाल न करने दें.
4. बच्चों के साथ समय बिताएं, उनके साथ बातचीत करें, आउट डोर खेल खेलें.
5. और सबसे ज्यादा जरूरी उपाय यही है कि बच्चों के साथ खुद भी कम से कम मोबाइल फोन इस्तेमाल करें. अगर किसी घर में अनुशासन की तरह मोबाइल फोन का इस्तेमाल कम होगा, तो यकीनन उस घर के बच्चे भी मोबाइल फोन का इस्तेमाल कम से कम ही करेंगे.